-विकास शर्मा
आज एक ख़बर मीडिया के विभिन्न माध्यमों में एक साथ तैरने लगा. समाचार अप्रत्याशित तो नहीं पर सबको गहरे दुख में डालने वाला था. पूर्व प्रधानमंत्री पंडित अटल बिहारी वाजपेयी का देहअवसान मानों लाखों लोगों के लिए किसी छत्रछाया के हट जाने जैसा है. अटल जी अस्वस्थ तो लंबे अरसे से थे पर वो तो अटल थे. मौत से उनकी तो बहुत पहले से ठन रही थी. पर आज उन्होंने मौत को हराया नहीं. उनका नजरिया साफ़ था. कविता उन्होंने गंभीर अस्वस्थता के बीच अमेरिका में 1994 में लिखी थी पर ये संघर्ष आज तक चलता रहा. मौत से ठन गई. मौत से ठन गई. जूझने का मेरा इरादा न था, मोड़ पर मिलेंगे इसका वादा न था, सामने आकर यूँ खड़ी हो गई. मानो जिंदगी से बड़ी हो गई. मैं जी भर जिया. मन से मरू. लौट कर आऊंगा कूच से क्यों डरु.
भारत रत्न अटल जी की चर्चा एक साथ तीन पीढ़ियों के लोगों में रोमांच और उत्साह का संचार कर देती है. ऐसा राजनेता जो मेरे बचपन से ही मेरे मन में बड़ी स्थाई छवि निर्मित करता रहा. किशोर अवस्था में उन्हें एक प्रखर नेता के तौर पर और जल्द ही प्रतिपक्ष का एकमात्र चेहरा बनकर उभरते देखा. नब्बे के दशक के उत्तरार्ध में देश के सर्वप्रिय नेता के तौर पर स्थापित हुए और जल्द ही प्रधानमंत्री के तौर पर काँटों भरा ताज वो बड़ी सहजता से स्वीकार करते हैं और उतनी ही शालीनता से स्वच्छ राजनीति के लिए 13 दिन में पद का त्याग भी कर देते हैं. तीन बार प्रधानमंत्री रहे और देश में गठबंधन की सरकार के बीच राजनीति में राजधर्म का शानदार उदारहण पेश किया.
कवि, पत्रकार और राजनेता अटल जी का संपूर्ण व्यक्तित्व उन्हें सर्वप्रिय नेता के साथ ही युवाओं के लिए प्रेरणा के तौर पर स्थापित करता है. उनके विचार जितने साफ, उनकी भाषण शैली उतनी ही बेबाक और आकर्षक रही. अटल जी का व्यक्तित्व मेरे लिए प्रेरणा है. ये मेरे लिए अधिक गौरव की बात है कि ऐसी शख्सियत के साथ मेरा नाम जुड़ता है जो काजल की कोठरी वाली इस राजनीति में बेदाग और अविश्वास वाले राजनीतिक दौर में अजातशत्रु बनकर उभरे.
मुझे सौभाग्य मिला अटल जी की शैली में भाषण करने का. ये ऐसी योग्यता थी जो बिना किसी विशेष योग्यता के भी मुझे औरों के बीच विशिष्ट पहचान दिलाती थी. हर आम और खास मुझे लघु अटल, मिनी अटल या वाजपेयी जी कहकर पुकारता है तो मेरी खुशी का ठिकाना नहीं होता है. स्कूल के दिनों में न जाने कब मेरी भाषण शैली अटल जी के जैसी होने लगी. न कोई विशेष अभ्यास, न ही प्रयास , बस यूँ ही आत्मसात होने लगे अटल जी. वे मुझे अपनी शैली से ज्यादा विचारों से आकर्षित करते थे.
हिन्दी, हिन्दू, हिन्दुस्तान का विचार जितना व्यापक उतना ही दूरदर्शी है. जय जवान, जय किसान और जय विज्ञान का नारा उनकी प्रगतिशीलता को दर्शाता है. इन सबके बीच मैं 1998 से कई मंचों पर भाषण करता रहा, उनकी कविता का पाठ चलता रहा . इन सबके बावजूद अपने प्रेरक अटल जी से मिलने की प्रबल इच्छा पूरी नहीं हो पा रही थी. कई वर्षों बाद साल 2009 को 25 दिसंबर के दिन उनके जन्मदिवस पर दिल्ली स्थित उनके निवास पर उन्हें बधाई देने जाने का अवसर मिला वो भी प्रदेश के माननीय मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह जी के साथ.
मेरे लिए ये दोहरे सौभाग्य की बात थी. एक ओर अपने प्रेरणापुरूष अटल जी से मिलने का अवसर और दूसरी ओर हमारे सहज, सरल और सफल मुख्यमंत्री के साथ यह अवसर पाना. उस अवसर की स्मृति आज भी मुझे रोमांच और उत्साह से भर देती है. अटल जी के सामने लगभग 3-4 मिनट तक खड़े होकर उनकी ही शैली में उनकी कविता उन्हें सुनाना किसी बड़ी उपलब्धि से कम नहीं. मेरी खुशी का ठिकाना नहीं था . इस दौरान पूर्व उपप्रधामंत्री एवं लोकसभा में तत्कालीन नेता प्रतिपक्ष श्री लालकृष्ण आडवाणी, भारतीय जनता पार्टी के तत्कालीन अध्यक्ष श्री नितिन गडकरी, पार्टी के संगठन महामंत्री श्री सुरेश सोनी, पार्टी की वरिष्ठ नेता श्रीमती सुषमा स्वराज, श्री अनंत कुमार, श्री विजय गोयल जैसे देश की प्रमुख राजनीतिक हस्तियाँ मुझे एक टक देख रही थीं.
उस क्षण का स्मरण ही मुझे गौरव से भर देता है जब अटल जी ने मेरी कविता सुनने के बाद मुख्यमंत्री की ओर देखते हुए कहा “ वाह, आनंद आ गया”. मैंने उनके पैर छुए और आशिर्वाद लिया. इसके बाद उनके साथ इस अविस्मणीय अवसर को हमेशा के लिए स्थाई बनाने आडवाणी जी ने मुझे फोटोसेशन करने कहा. यह अवसर मेरे लिए किसी सेलिब्रिटी से मिलने की खुशी का नहीं था बल्कि इससे इतर मेरे लिए सम्मान का लम्हा था कि मेरे प्रेरक ने मेरे लिए प्रोत्साहन के शब्द कहे.
अटल जी से छत्तीसगढ़ के लोगों का जुड़ाव भी स्वाभाविक है. वो इस राज्य के निर्माता हैं . राज्य में अटल जी का आना-जाना साठ के दशक से रहा. उनके साथ काम करने और पार्टी कार्य के दौरान साथ रहने का अवसर पाए कुछ लोगों से कई किस्से सुनने मिलते रहे हैं. वो अटल जी के सहज व्यक्तित्व और विचारों के लिए अटल रवैय्ये के संस्मरण बताते हैं. आज उनके देह के अवसान ने उनके व्यक्तित्व के विभिन्न आयामों की चर्चा को जागृत कर दिया है. देश, प्रदेश और व्यक्तिगत मेरे लिए उनकी स्मृतियाँ कभी भी विस्मृत नहीं होंगी. उनके विचार और अंदाज मुझे समय- समय पर नई ऊर्जा और विश्वास से भरते रहेंगे.
आज उनकी ही पंक्ति के माध्यम से उन्हें मैं शब्दांजलि देना चाहता हूँ. ये उनके व्यक्तित्व का परिचय और मेरे लिए जीवन का दर्शन है-
टूटे मन के कोई खड़ा नहीं होता, छोटे मन से कोई बड़ा नहीं होता,
मन हार कर मैदान नहीं जीते जाते, न मैदान जीतने से मन ही जीते जाते हैं
आदमी को चाहिए कि वह जूझे, परिस्थितियों से लड़े, एक स्वप्न टूटे तो दूसरा गढ़े,
आदमी चाहे , जीतना भी ऊँचा उठे
अपने धरातल को न छोड़े, अंर्तयामी से मुँह न मोड़े,
धरती ही धारण करती है,कोई इस पर भार न बने,
मिथ्या अभिमान से न तने, आदमी की पहचान उसके धन या आसन से नहीं,
उसके मन से होती है,
मन की फकीरी पर कुबेर की संपदा भी रोती है,,
मेरे प्रमुख मुझे इतनी ऊँचाई कभी मत देना,
गैरों को गले न लगा सकूँ , इतनी रूखाई कभी मत देना…
विकास शर्मा ‘लघु अटल’
( अटल जी की इस दिन के बाद की कोई भी संपूर्ण फोटो सार्वजनिक नहीं की गई)