कर्ण मिश्रा, ग्वालियर। मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ग्वालियर खंडपीठ की युगलपीठ ने प्राथमिक विद्यालय के चार शिक्षकों की याचिका खारिज करते हुए गंभीर टिप्पणी की है. हाईकोर्ट ने सुनवाई करते हुए प्रदेश में प्राथमिक शालाओं में भर्ती हो रहे शिक्षकों पर सवाल उठाया है. कोर्ट ने कहा कि प्राथमिक शालाओं में जो शिक्षक भर्ती हो रहे हैं, उनकी योग्यता कम है.
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दरअसल, हाईकोर्ट में प्राथमिक शाला में कार्यरत पांच शिक्षकों ने अपना डिप्लोमा पूरा करने के लिए याचिका दायर की थी. जिस पर कोर्ट ने आज सुनवाई की. इस दौरान कोर्ट ने कहा कि प्राथमिक शालाओं में मिलने वाली शिक्षा भारत की नींव है, इसलिए इस शिक्षा को मौलिक अधिकार का दर्जा दिया गया है. मध्य प्रदेश में प्राथमिक शालाओं में जो शिक्षक भर्ती हो रहे हैं, उनकी योग्यता कम है. प्राथमिक शालाओं में अक्षम लोग भर्ती हो रहे हैं. इसका नुकसान बच्चों को उठाना पड़ रहा है.
कोर्ट ने ये भी कहा कि हम आशा करते हैं कि इस भर्ती के स्टैंडर्ड में सुधार होना चाहिए, जिससे अच्छे लोग प्राथमिक शालाओं की ओर आकर्षित हों, उसके लिए वेतन और भत्ते अच्छे दिए जाएं. कोर्ट ने आदेश की कापी विधि व सामान्य प्रशासन विभाग को भेजने का आदेश दिया है.
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बता दें कि सीमा शाक्य, प्रशांत डंडौतिया, गनपत आदिवासी और सुनील कुमार प्राथमिक शाला में कार्यरत हैं. उन्होंने डीएलएड करने के लिए शासकीय कालेज में प्रवेश लिया था. उन्हें अपना डिप्लोमा कोर्स तीन साल में पूरा करना था, लेकिन तीन साल में ये पास नहीं हो सके. जिसके चलते अपना डिप्लोमा पूरा करने के लिए हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी. कोर्ट में याचिकाकर्ताओं की ओर से तर्क दिया गया था कि उनके आंतरिक परीक्षा के अंक दर्ज नहीं किए गए, इस वजह से फेल हो गए थे. उन्हें एक मौका और दिया जाए. यदि कोर्ट का लिटिगेशन नहीं होता तो उन्हें परीक्षा देने के लिए एक मौका मिलता. जहां कोर्ट ने पक्ष सुनने के बाद याचिका खारिज कर दी है.
काेर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि संविधान के अनुच्छेद 21-ए में प्राथमिक शिक्षा को मौलिक अधिकार के रूप में रखा गया है. जिन परीक्षाओं को पास करके शिक्षक बन रहे हैं, उनके पासिंग मार्क्स काफी कम हैं. उनके पासिंग मार्क्स अच्छे होने चाहिए. बोर्ड आफ सेकेंडरी एजुकेशन की ओर से अधिवक्ता गौरव मिश्रा ने पैरवी की.
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गौरतलब है कि प्रदेश में 64137 के लगभग प्राइमरी स्कूल हैं, जिनमें 2 लाख प्राइमरी शिक्षक कार्यरत हैं. इसके साथ ही 30 लाख बच्चे प्राइमरी स्कूल में पढ़ाई कर रहे हैं. ऐसे में हाईकोर्ट के द्वारा जताई गई इस चिंता के बाद मध्यप्रदेश सरकार इस पर किस तरह अपना रुख अख्तियार करती है यह देखना होगा.
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