देश में राजनीतिक चंदे को लेकर अक्सर सवाल उठते रहे हैं। कभी चंदा लेने वाले दलों की पारदर्शिता पर सवाल उठते हैं तो कभी दानदाताओं की पहचान पर विवाद होता है। मीडिया रिपोर्ट ने बड़ा खुलासा किया गुजरात के 10 गुमनाम राजनीतिक दलों को पिछले 5 साल में 4300 करोड़ रुपये का चंदा मिला है। विशेषज्ञों का कहना है कि इतनी बड़ी राशि का चंदा मिलना राजनीतिक चंदा व्यवस्था की पारदर्शिता पर गंभीर सवाल खड़े करता है। खासकर तब, जब ये दल चुनावी राजनीति में बहुत सक्रिय या प्रभावशाली नहीं माने जाते। यह मामला एक बार फिर चुनावी चंदे के स्रोत और उपयोग को लेकर बहस छेड़ सकता है। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि ऐसे खुलासे बताता हैं कि चंदा व्यवस्था में कड़े सुधार और निगरानी तंत्र की ज़रूरत है।

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दिलचस्प बात यह है कि इतनी बड़ी राशि मिलने के बावजूद इन दलों की चुनावी मौजूदगी बेहद सीमित रही। इस अवधि में गुजरात में तीन बड़े चुनाव हुए — 2019 और 2024 के लोकसभा चुनाव तथा 2022 का विधानसभा चुनाव। इनमें इन 10 दलों ने कुल 43 प्रत्याशी उतारे, जिन्हें मिलाकर सिर्फ 54,069 वोट हासिल हुए। निर्वाचन आयोग में जमा रिपोर्ट से सामने आया है कि इन दलों ने अपनी चुनाव रिपोर्ट में खर्च महज ₹39.02 लाख दिखाया। लेकिन जब ऑडिट रिपोर्ट देखी गई तो उसमें ₹3500 करोड़ का खर्च दर्शाया गया। विशेषज्ञों का कहना है कि इतनी भारी-भरकम चंदा राशि और चुनावी प्रदर्शन में जमीन-आसमान का अंतर यह संकेत देता है कि राजनीतिक चंदे के जरिए कहीं न कहीं फंडिंग सिस्टम के दुरुपयोग की आशंका है।

23 राज्यों के दानदाताओं से चंदा मिला

दस्तावेज़ जमा कराने के मामले में भी असमानता सामने आई है। बीएनजेडी, सत्यवादी रक्षक और जन-मन पार्टी ने सभी वर्षों की दोनों रिपोर्ट (चुनाव रिपोर्ट और ऑडिट रिपोर्ट) जमा करवाई हैं। वहीं मानवाधिकार नेशनल नामक दल ने एक भी रिपोर्ट दाखिल नहीं की। विशेषज्ञों का कहना है कि यह आंकड़े राजनीतिक चंदे की प्रणाली में पारदर्शिता की कमी और दुरुपयोग की आशंका को उजागर करते हैं।

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सभी चुनावों को मिलाकर मिले 50 हजार वोट

जानकारी के अनुसार, इन दलों को 23 लोगों ने चंदा दिया। चौंकाने वाली बात यह है कि इतनी भारी-भरकम राशि मिलने के बावजूद चुनावी राजनीति में इन दलों की पकड़ बेहद कमजोर रही। इन दलों ने बीते पांच वर्षों में हुए लोकसभा और विधानसभा चुनावों में अपने-अपने प्रत्याशी उतारे। लेकिन सभी चुनावों को मिलाकर इन्हें कुल 54,069 वोट ही हासिल हुए।

ऑडिट रिपोर्ट में चुनावी खर्च ₹353 करोड़

पांच साल की ऑडिट रिपोर्ट में इन दलों ने कुल ₹352.13 करोड़ चुनावी खर्च मद में दर्शाया है। इनमें प्रमुख दलों का विवरण इस प्रकार है:

भारतीय जनपरिषद → ₹177 करोड़

सौराष्ट्र जनता पक्ष → ₹141 करोड़

सत्यावादी रक्षक → ₹10.53 करोड़

लोकशाही सत्ता पार्टी → ₹22.82 करोड़

मदर लैंड नेशनल → ₹86.36 लाख

रिपोर्ट के मुताबिक, अन्य दलों ने या तो अपनी चुनावी खर्च की जानकारी नहीं दी या फिर निर्वाचन आयोग के तय फॉर्मेट के अनुसार ब्योरा प्रस्तुत नहीं किया।

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सवालों के घेरे में पारदर्शिता

विशेषज्ञों का कहना है कि इतनी बड़ी चंदा राशि, बेहद सीमित वोट और खर्च के ब्योरे में गड़बड़ी यह संकेत देते हैं कि राजनीतिक चंदा व्यवस्था में गंभीर खामियां हैं। यह मामला एक बार फिर इलेक्टोरल फंडिंग सिस्टम की पारदर्शिता पर सवाल खड़ा करता है।

खर्च हुए 39.02 लाख रुपये, ऑडिट में दिखाया 3500 करोड़

राजनीतिक फंडिंग और चुनावी खर्च को लेकर बड़ी अनियमितताओं का खुलासा हुआ है। रिपोर्ट में दावा किया गया है कि गुजरात के 10 गुमनाम राजनीतिक दलों का चुनावी खर्च केवल ₹39.02 लाख रहा, जबकि ऑडिट रिपोर्ट में यही खर्च ₹3500 करोड़ दर्ज किया गया है।

शामिल दलों की सूची

लोकशाही सत्ता पार्टी, भारतीय नेशनल जनता दल, स्वतंत्र अभिव्यक्ति पार्टी, न्यू इंडिया यूनाइटेड पार्टी, सत्यावदी रक्षक पार्टी, भारतीय जनपरिषद, सौराष्ट्र जनता पक्ष, जन मन पार्टी, मानवाधिकार नेशनल पार्टी, गरीब कल्याण पार्टी का नाम शामिल है।

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