‘डियर मॉम, आई एम लिविंग दिस हाउस, बिकॉज यू ऑल आर टेकिंग केयर ऑफ… (छोटे भाई का नाम), यू ऑल आर नॉट टेकिंग केयर टू मी, आई केन लिव ऑन मी’ 10 साल के बच्चे ने जीएसटी अधिकारी मां से नाराज होकर घर छोड़ दिया, उसने मां के नाम इंग्लिश में चार लाइन का खत लिखा. Also Read: Girlfriend ऐसा भी षड्यंत्र रचेगी, प्रेमी ने सपने में भी नहीं सोचा होगा… ब्रेकअप करने के लिए बहाने बनाती रही गर्लफ्रेंड, फिर भी नहीं माना BF तो पिला दिया जहर
इसमें छोटे भाई से ही ज्यादा प्यार करने की शिकायत की. बच्चे के लापता होने की सूचना पर पुलिस व जीआरपी अलर्ट हो गई. करीब 12 घंटे में पुलिस की टीमों ने उसे रतलाम से बरामद कर लिया. ये पूरा मामला कोटा के आरकेपुरम थाना क्षेत्र का है.
मासूम को रविवार कोटा लाकर परिजनों को सुपुर्द किया. जैसे ही बच्चे ने मां को देखा, दोनों लिपटकर फफक पड़े.
कक्षा चौथी में पढ़ता है मासूम
जानकारी के मुताबिक 10 वर्षीय बच्चा कक्षा 4 में पढ़ता है. शनिवार को सुबह करीब 10 बजे वह घर से निकल गया था. घर से निकलने से पहले मासूम ने
खत छोड़ा था, जिसमें इंग्लिश में लिखा था,
‘डियर मॉम, आई एम लिविंग दिस हाउस, बिकॉज यू ऑल आर टेकिंग केयर ऑफ… (छोटे भाई का नाम), यू ऑल आर नॉट टेकिंग केयर टू मी, आई केन लिव ऑन मी’ पुलिस की जांच में पता चला है कि बच्चे की मां जीएसटी में अधिकारी हैं और छोटा भाई 5 साल का है. पिता सेना में थे और कुछ महीने पहले ही उनका देहांत हुआ था.
खत्म होते संयुक्त परिवार और अकेलापन बच्चों में बढ़ा रहा डिप्रेशन
इन दिनों बच्चे हद से ज्यादा नाजुक होते जा रहे हैं. छोटी सी बात होने पर वे डिप्रेशन का शिकार हो जाते हैं, आखिर क्यों? इस सवाल का जवाब हमें अपने बचपन और हमारे बच्चों के बचपन के अंतर को जानने से ही मिलेगा. शिक्षाविद् टिम्सी राय बता रही हैं बच्चों में डिप्रेशन की शिकायतों के मुख्य कारणों के बारे में
इन कारणों से बच्चे हो जाते हैं डिप्रेस
हम संयुक्त परिवारों में रहते थे. माता-पिता के प्यार के अलावा हमें दादा-दादी, चाचा-चाची, बुआ वगैरह का प्यार मिला. घरों में हमेशा चहल पहल और रौनक बनी रहती थी. लेकिन आज हमारे बच्चे छोटे एकल परिवारों में रह रहे हैं, जहां पिता के साथ-साथ मां भी दिनभर बाहर काम करती है. खाली घरों में बच्चों की देखभाल आया कर रही है.
हमारे घरों पर बहुत से रिश्तेदारों का आना जाना लगा रहता था. उनके लिए घर के साथ-साथ हमें अपने दिल में भी जगह बनानी पड़ती थी. सुख सुविधा के अभाव में हम अनजाने में ही सही, मेहनती और जिम्मेदार बनते चले गए. अब बच्चों को न तो मेहमान दिखते हैं और न ही अभाव. उनके लिए हर चीज एक ऑर्डर पर हाजिर होती है.
भाई-बहनों के साथ जब भी हमें डांट या मार पड़ती थी तो हमें कभी भी दुख या अपमान का एहसास नहीं होता था, क्योंकि जब अपनों का साथ होता है तो दर्द का पता ही नहीं चलता. सजा भी मजेदार लगती है. लेकिन आज अकेलेपन में छोटी सी डांट भी बच्चों को चुभने लगी है. उन्हें लगता है कि बहुत बड़ी बेइज्जती हो गई है.
उन दिनों परिवार में कोई न कोई बड़ा जरूर होता था, जैस चाचू /बड़ी मम्मी /भाभी आदि, जिनके साथ हम अपनेदिल की हर बात बेझिझक कह सकतेथे. जो बात हम माता-पिता से भी कहने में डरते, उनसेबिना हिचकिचाहट कह पाते, लेकिन आज इस सूने से घर में ऐसा कोई नहीं है जिसके पास बच्चों को समझने या सुनने की फुर्सत हो जिससे वो अकेलापन महसूस करता है.
जब भी हम बोर होते, आसानी से बाहर जा सकतेथे और ताजी हवा में घंटों खेल सकतेथे. लेकिन अब ज्यादातर वक्त बच्चे गैजेट्स से चिपके हुए हैं. पैरेंट्स भी डर के कारण बच्चों को अकेले बाहर नहीं भेजते. तुलनात्मक रूप से हम सुरक्षित वातावरण में पले-बढ़ेथे, पर हमारे बच्चे प्रदूषण और मिलावट के वातावरण में रह रहे हैं. इससे उनमें नकारात्मक विचार पैदा होते हैं.