100 Years Of RSS: भारत (India) में कोई अहिंदू नहीं है। भारत में सभी हिंदू (Hindu) है। मुसलमानों-ईसाइयों (Muslims and Christiansके पूर्वज हिंदू थे। यहां के सभी मुसलमान और ईसाई भी उन्हीं हिंदू पूर्वजों के वंशज हैं। शायद वे भूल गए हैं या उन्हें भुला दिया गया है। ) ये बड़ा दावा आरएसएस (RSS) के सरसंघचालक मोहन भागवत (Mohan Bhagwat) ने किया है। साथ ही उन्होंने कहा कि संघ सत्ता के लिए नहीं, बल्कि समाज की सेवा और संगठन के लिए काम करता है।
बेंगलुरु में आयोजित कार्यक्रम ‘100 साल का संघ: नए क्षितिज’ कार्यक्रम में RSS प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि भारत की आत्मा हिंदू संस्कृति है। संघ सत्ता या प्रमुखता नहीं चाहता। संघ का उद्देश्य सिर्फ एक है कि समाज को संगठित कर भारत माता की महिमा बढ़ाना। पहले लोग इस बात पर विश्वास नहीं करते थे, लेकिन अब करते हैं। इस मौके पर आरएसएस के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले और कई सामाजिक हस्तियां मौजूद थीं।
सरसंघचालक ने कहा कि हमारा राष्ट्र ब्रिटिशों की देन नहीं है। हम सदियों से एक राष्ट्र हैं। दुनिया के हर देश की एक मूल संस्कृति होती है। भारत की मूल संस्कृति क्या है? कोई भी परिभाषा दें, वह आखिर में ‘हिंदू’ शब्द पर ही पहुंचती है। भारत में कोई ‘अहिंदू’ नहीं है। हर व्यक्ति चाहे जाने या न जाने, भारतीय संस्कृति का पालन करता है। इसलिए हर हिंदू को यह समझना चाहिए कि हिंदू होना मतलब भारत के प्रति जिम्मेदारी लेना है।
भारत का हिंदू राष्ट्र होना किसी बात के विरोध में नहीं है। यह हमारे संविधान के खिलाफ नहीं, बल्कि उसके अनुरूप है। संघ का लक्ष्य समाज को जोड़ना है, तोड़ना नहीं।
हिंदू ही भारत के लिए जिम्मेदार- आरएसएस प्रमुख
उन्होंने कहा कि जब यह सवाल उठाया जाता है कि आरएसएस हिंदू समाज पर क्यों ध्यान केंद्रित करता है, तो इसका उत्तर यह है कि हिंदू ही भारत के लिए जिम्मेदार हैं। उन्होंने कहा, “ऐसा नहीं है कि अंग्रेजों ने हमें राष्ट्रीयता दी, हम एक प्राचीन राष्ट्र हैं। दुनिया में हर जगह लोग इस बात पर सहमत हैं कि हर राष्ट्र की अपनी मूल संस्कृति होती है। वहां कई निवासी हैं, लेकिन एक मूल संस्कृति है। भारत की मूल संस्कृति क्या है? हम जो भी वर्णन करते हैं, वह हमें हिंदू शब्द की ओर ले जाता है।
आरएसएस के लिए रास्ता आसान नहीं रहा
भागवत ने कहा कि आरएसएस के लिए रास्ता आसान नहीं रहा है। उन्होंने कहा कि संगठन को लगभग 60-70 वर्षों तक कड़े विरोध का सामना करना पड़ा, जिसमें दो प्रतिबंध और स्वयंसेवकों पर हिंसक हमले शामिल हैं। उन्होंने कहा, “दो प्रतिबंध लगे। तीसरा भी लगा, लेकिन वह कोई खास प्रतिबंध नहीं था। विरोध हुआ, आलोचना हुई। स्वयंसेवकों की हत्या की गई। हर तरह से कोशिश की गई कि हम फलने-फूलने न पाएं। लेकिन स्वयंसेवक अपना सब कुछ संघ को देते हैं और बदले में कुछ नहीं चाहते। इसी आधार पर हमने इन सभी परिस्थितियों पर काबू पा लिया है और अब ऐसी स्थिति में हैं कि समाज में हमारी कुछ विश्वसनीयता है।
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