रायपुर। छत्तीसगढ़ वन विभाग ने 11 साल पहले विश्व की पहली वन भैंसा का क्लोन बनाने का दावा कर सुर्खियां बटोरी थी. करीबन एक करोड़ रुपए खर्च कर उदंती सीतानदी टाइगर रिजर्व की वन भैंसा आशा के सोमेटिक सेल कल्चर से दीपआशा का जन्म 12 दिसंबर 2014 को नेशनल डेयरी रिसर्च इंस्टिट्यूट करनाल में हुआ था. आज जंगल सफारी में रखी गई दीपआशा के जन्म लेने के 11 साल बाद वन विभाग सीसीएमबी, हैदराबाद से क्लोनिंग के संबंध में जानकारी मांगी, जिसका जवाब हैरान करने वाला है.

यह भी पढ़ें : Breaking News : वन मंत्री केदार कश्यप के भतीजे की सड़क दुर्घटना में मौत…

दीपआशा वन भैंसा है या मुर्रा भैंसा? यह जानने के लिए उसका डीएनए सैंपल कुछ साल पहले सीसीएमबी, हैदराबाद और वाइल्ड लाइफ इंस्टिट्यूट ऑफ़ इंडिया, देहरादून भेजा गया, पर रिपोर्ट नहीं आई. कुछ लोगों का दावा है कि पोल नहीं खुल जाए इस लिए वन विभाग ने रिपोर्ट रुकवा दी है.

वन्यजीव प्रेमियों के डीएनए रिपोर्ट मंगाने दबाव के चलते छत्तीसगढ़ वन विभाग ने डीएनए रिपोर्ट बुलाने की बजाए 11 साल बाद मार्च 2025 में सीसीएमबी हैदराबाद से पूछा कि “क्या तकनीकी रूप से जंगली भैंस की क्लोनिंग विधि से ज़ेरॉक्स प्रतिलिपि बनाना संभव है, जहाँ क्लोनिंग के लिए अंडाशय और अंडाणु बूचड़खाने से प्राप्त किए जाते हैं?”

सीसीएमबी हैदराबाद ने कहा- संभव नहीं

वन्य जीव प्रेमी नितिन सिंघवी ने सूचना के अधिकार के तहत निकाले गए दस्तावेजों को हवाला देते हुए बताते हैं कि सीसीएमबी ने लम्बा जवाब दिया, जिसमेे लिखा है कि जंगली भैंस क्लोन (दीपआशा) के मामले में, संभवतः इसे घरेलू भैंस से कुछ mtDNA विरासत में मिला है, क्योंकि क्लोनिंग के लिए उपयोग किए गए अंडकोशिकाएं घरेलू भैंस से प्राप्त हुई थीं. पर जवाब के अंत में जो तकनीकी जवाब दिया उसका मतलब है कि “आज की तकनीक से लुप्तप्राय जानवर का क्लोन बनाकर उसका डीएनए जंगली (डोनर) जानवर से पूरी तरह मिलाना संभव नहीं है.“

पहले यह क्यों नहीं पूछा सवाल

नितिन सिंघवी के साथ अन्य वन्यजीव प्रेमियों में रोष है कि 11 साल पहले दीपआशा को पैदा करवाने के पहले ही सीसीएमबी से क्यों नहीं पूछा कि तकनीकी रूप से जंगली भैंस की क्लोनिंग विधि से ज़ेरॉक्स प्रतिलिपि बनाना संभव है कि नहीं? करोड़ों खर्च कर अब क्या जनता का मनोरंजन करने के लिए वन विभाग ये सब कर रहा है?

वन विभाग ने एक और रोचक प्रश्न पुछा कि यदि अंडाशय अस्वस्थ या प्रजनन आयु से अधिक की मादा भैंस से एकत्रित किए जाएं तो उसके अण्डाणु की गुणवत्ता क्या होगी? इसका स्पष्ट जवाब सीसीएमबी ने नहीं दिया. परन्तु प्रश्न यह उठ रहे हैं कि 11 साल बाद वन विभाग दीपआशा मुर्रा भैंसा है स्वीकारने की बजाये यह सब क्यों कर रहा है?

उदंती सीतानदी टाइगर रिजर्व की वन भैंसा आशा

डीएनए टेस्ट रिपोर्ट आएगी तो बदनामी होगी

दीपआशा को कैद से मुक्त कराने के लिए वर्षों से संघर्षरत रायपुर के नितिन सिंघवी ने प्रश्न किया कि दीपआशा दिखने में ही मुर्रा भैंस है, तो उसे बंधक बनाकर क्यों रखा गया है? उसे छोड़ क्यों नहीं दिया जाता? दीपआशा कोई वन भैंसा नहीं है, बल्कि एक आम घरेलू मवेशी है. चिड़ियाघरों में घरेलू मवेशी रखने की अनुमति नहीं है. दीपआशा ने अपनी आधी ज़िंदगी सलाखों के पीछे गुज़ारी दी है; अगर उसे प्राकृतिक जीवन जीने दिया जाता, तो वह अपने जीन पूल को बढ़ाने का कर्तव्य निभाती, जिसकी प्रकृति हर जीव से अपेक्षा करती है.

आखिर आमजन क्यों नहीं देख सकते आशादीप को

सिंघवी ने आरोप लगाया कि उन्होंने कई बार दीपआशा के डीएनए टेस्ट कराने के मांग की है, उसे छोड़ने के लिए कई पत्र लिखे है, परन्तु वन विभाग करोड़ों रुपए खर्च करने के बाद बदनामी के दर से डीएनए टेस्ट टेस्ट कराने का प्रयत्न नहीं कर रहा है, और अब सीसीएमबी का जवाब आ गया है तो उसे छोड़ देना चाहिए या फिर वन विभाग को बताना चाहिए कि दीपआशा को कैद में रख कर क्या मजा आ रहा है और आमजन उसे क्यों नहीं देख सकते.