पवन दुर्गम, बीजापुर। 1200 जवानों की सुरक्षा केे बीच 9 करोड 60 लाख की लागत से बनाई गई 12 किमी की पक्की सड़क पर निर्माण पूरा हुए अभी चंद महीने ही बीते हैं कि एक-दो नहीं बल्कि 712 बडे-बडे गडढे हो गए हैं. भ्रष्टाचार की इस पराकाष्टा को देखने के लिए आपको बीजापुर आना होगा, जहां जवानों की शहादत पर भी जिम्मेदार अपनी तिजोरी भरने से बाज नहीं आ रहे.

छत्तीसगढ़ और तेलंगाना सीमा पर बसे धुर नक्सली क्षेत्र पामेड समेत एक दर्जन से अधिक गांवों को आजादी के सात दशक बाद सड़क मार्ग से जोड़ने की कवायद आज से एक साल पहले शुरू हुई थी. नक्सलियों के प्रभाव को देखते हुए सड़क निर्माण से पहले तेलंगाना के चेरला के कालीवेरू और चेलमेला के साथ तिप्पापुरम, तोंगगुडा, सहित पामेड में सीआरपीएफ, सीएएफ, कोबरा, डीआरजी और जिला बल के करीब 1200 सशस्त्र जवानों को तैनात किया गया. 12 किलोमीटर सड़क के लिए एक थाने के साथ ही 5 बेस कैम्प स्थापित किए गए. अनुपात निकालें तो 10 मीटर के सड़क निर्माण में लगे कर्मचारी और मशीनरी की सुरक्षा के लिए यहां एक जवान की तैनाती की गई थी.

सडक निर्माण के दौरान सुरक्षा में लगे जवानों पर माओवादियों ने छह बार हमला भी किया. इन माओवादी हमलों में एक जवान शहीद हुआ और तीन बुरी तरह जख्मी भी हुए. 11 फरवरी 2018 को सड़क सुरक्षा के दौरान सहायक आरक्षक सोनधर हेमला का पैर माओवादियों के लगाये प्रेशर आईईडी में पड़ा, जिसके ब्लास्ट होते ही जवान की मौके पर ही मौत हो गई. इसके बाद 3 फरवरी 2018 को सड़क सुरक्षा में ही लगे प्रधान आरक्षक अरविंद कुमार माओवादियों के लगाये प्रेशर आईईडी में ही आकर बुरी तरह से जख्मी हो गया. इसके बाद 10 मार्च 2018 को प्रेशर आईईडी की ही चपेट में आकर दो जवान जख्मी हुए. इतनी कुर्बानियों के बाद भी जवानों के हौसले पस्त नहीं हुए, वो सडक निर्माण की सुरक्षा में डटे रहे. मगर उन्हें क्या पता था कि उनकी कुर्बानियों पर भ्रष्टाचार का चादर लपेटा जाएगा.

दरअसल, सड़क निर्माण के चंद महीनों बाद ही सडक में जगह-जगह गडढे होने लगे हैं. हमारे संवाददाता पवन दुर्गम ने 12 किलोमीटर की सडक पर बने एक एक गडढे की गिनती की. जो आंकडा निकलकर सामने आया वो बेहद चौंकाने वाला है. 12 किलोमीटर की इस सड़क पर 100-200 नहीं बल्कि पूरे 712 गड्ढे हो चुके हैं. इतना ही नहीं बल्कि बरसाती नाले पर बनाया गया एक पुल तक बह गया, जिसे बाद में ग्रामीणों और जवानों ने पत्थरों से भरकर आवागमन दुरूस्त किया. अब जरा आप इस सड़क के निर्माण में हुए भ्रष्टाचार का अंदाजा लगाइए कि निर्माण के चंद दिनों बाद ही इस सडक के मरम्मत की नौबत तक आ गई है.

इलाके के ग्रामीण भी सड़क निर्माण कार्य में बरती गई लापरवाही और किये गये भ्रष्टाचार से काफी आहत और दुखी हैं. सड़क निर्माण का ठेका जिला कांग्रेस कमेटी के उपाध्यक्ष जयकुमार नायर की कंस्ट्रक्शन कंपनी को मिला है. ठेकेदार राजनीतिक दल से जुड़ा है, लिहाजा अब राजनीतिक बयानबाजी भी शुरू हो गई है. बीजापुर के भाजपा जिला महामंत्री श्रीनिवास मुदलियार का कहना है कि संबंधित कंस्ट्रक्शन कंपनी के साथ ही विभाग के खिलाफ कार्रवाई की जल्द ही मांग करेंगे. वहीं कांग्रेस के जिला अध्यक्ष लालू राठौर का कहना है कि इस मामले में कार्रवाई की मांग को लेकर वो स्थानीय विधायक विक्रम शाह मंडावी से बात करेंगे.

वहीं सडक निर्माण का जिम्मा जिन सब इंजीनियर पर था, उन पीएस तंवर का कहना है कि काफी दिनों से वो फील्ड ही नहीं गये हैं. सबसे हैरान कर देने वाली बात यह है कि सड़क का मरम्मत कार्य भी शुरू हो चुका और इंजीनियर को इसकी जानकारी ही नहीं और न ही वे लम्बे समय से फील्ड के दौरे पर गये हैं. अब समझिये कि इंजीनियर की गैर मौजूदगी में मजदूरों के भरोसे किया जा रहे मरम्मत कार्य में कितनी गुणवत्ता होगी.

इस सडक के निर्माण कार्य के लिए जिला निर्माण समिति को कार्य एजेंसी बनाया गया है. जिला निर्माण समिति के अध्यक्ष जिले के कलेक्टर खुद होते हैं. बता दें कि इस सड़क का निर्माण 9 करोड 60 लाख रुपए से करवाया जाना था, जिसमें से 8 करोड 60 लाख रुपए का भुगतान कंस्ट्रक्शन कंपनी को कर दिया गया है. कलेक्टर केडी कुंजाम का कहना है कि अभी सड़क का निर्माण कार्य पूर्ण नहीं हुआ है. उनके मुताबिक कुछ जगहों पर ही सड़क खराब हुई है. बडा सवाल यह है कि 712 बडे गडढे क्या कलेक्टर के लिए कुछ ही जगह होते हैं. वहीं कलेक्टर कहीं भी जिम्मेदारों पर कार्रवाई की बात नहीं कह रहे हैं.