रायपुर. छत्तीसगढ़ में स्थित एनएचएमएमआई नारायणा अस्पताल के डॉक्टरों ने ओड़ीसा के बच्चे को एक नया जीवन दिया है. ओड़ीसा के बालांगीर में डॉक्टरों ने कैंप लगाया था. जिसमें स्क्रिनिंग के दौरान एक 13 वर्षीय बच्चे में टेट्रालॉजी ऑफ फेलोट की बीमारी पाई गई. ये एक ऐसी बीमारी है जिसमें दिल के दो निचले हिस्से के बीच बड़ा छेद और फेफड़ो की नस सिकुड़ जाती है.

बच्चा ओपन हार्ट सर्जरी करने के योग्य भी नहीं था और बच्चे का वजन काफी कम था, ऐसे में विशेषज्ञों की टीम ने आरवीओटी स्टेंटिंग प्रक्रिया के तहत इलाज करने की योजना बनाई. इलाज के जरिए एक स्टेंट के साथ दिल और फेफड़ों के बीच एक कनेक्शन बनाया गया. इलाज के प्रक्रिया में विशेषज्ञ के कौशल और टीम वर्क की आवश्यकता होती है. इस प्रक्रिया के लिए कोई स्टेंट भी मार्केट में उपलब्ध नहीं है, इसलिए शरीर के अन्य स्थानों (पेरिफेरल स्टेंट) का इस्तेमाल किया गया.

इलाज की प्रक्रिया डॉ. सुमंत शेखर पाढ़ी और डॉ. किंजल बख्शी ने की. डॉ. राकेश चंद/डॉ. नीलिमा दास ने दिए गए एनेस्थीसिया की क्रिया के तहत प्रोसीजर किया. जिसके तुरंत बाद बच्चे का ऑक्सीजन लेवल 60% से बढ़कर लगभग 90% हो गया. प्रोसीजर के 48 घंटे बाद ही बच्चे को अस्पताल से छुट्टी मिल गई. जानकारी के मुताबिक छत्तीसगढ़ में यह दूसरी प्रक्रिया थी.

कार्डियक एनेस्थेसिया के एचओडी डॉ. राकेश चंद ने कहा कि इलाज की प्रक्रिया काफी जटिल है. इलाज की प्रक्रिया को बयान नहीं किया जा सकता. हमने एक स्टैंड का उपयोग कर बच्चे के दिल और फेफड़े को कम्यूनिकेट करने की कोशिश की है.

डॉक्टरों ने बताया कि छत्तीसगढ़ में ये दूसरा केस है. हमने 9 साल पहले भी रायपुर में एक बच्चे का उपचार किया है. ये बच्चा उड़ीसा का रहने वाला है, जहां कैंप में जांच के दौरान बच्चे की दुर्लभ बीमारी पहचान में आई. जिसको हमने यहां लाकर इलाज किया है.

कार्डियोलाजिस्ट डॉ. किंजल बक्शी ने कहा कि राहुल 13 साल का बच्चा है, जो जन्म से नीला था. टेट्रोलॉजी ऑफ फेलोट नाम की बीमारी से ग्रसित बच्चा ओपन हॉर्ट सर्जरी के योग्य नहीं था. जिसके बाद हमने इलाज की दूसरी प्रक्रिया अपनाई. हमने बहुत ही नॉर्मल तरीके से दिल और फेफड़ों के बीच में एक स्टैंड लगाया, जिसके बाद फेफड़ों में खून की सप्लाई बढ़ी है.

इंटरवेशन सीनियर कंसलटेंट डॉ. एस एस पाढ़ी ने बताया कि इलाज की प्रक्रिया में काफी रिस्क था, क्योंकि बच्चे का ऑक्सीजन लेवल पहले ही 60 था. अगर इलाज के दौरान बच्चे को बेहोश करते तो उसका ऑक्सीजन लेवल और कम हो जाता. इसलिए हमने नींद की दवा देकर बच्चे का सही तरीके से इलाज किया.

रायपुर में आयोजित प्रेस वार्ता में एनएच एमएमआई हॉस्पिटल रायपुर के फैसिलिटी डायरेक्टर नवीन शर्मा, डॉ. सुमंत शेखर पाढ़ी, एवं डॉ. किंजल बख्शी, डॉ. अरुण अंडप्पन (सलाहकार-कार्डियक निश्चेतना), डॉ. राकेश आर चंद, (प्रमुख – कार्डियक निश्चेतना) उपस्थित रहे.