सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court )ने एक हत्या के मामले में महत्वपूर्ण निर्णय सुनाया. निचली अदालत और उच्च न्यायालय द्वारा दोषी ठहराए गए व्यक्ति को सुप्रीम कोर्ट ने बरी कर दिया. 15 साल पुराने इस मामले की सुनवाई के दौरान न्यायाधीशों ने कहा कि 2010 में घटित अपराध के पीछे कोई स्पष्ट उद्देश्य नहीं प्रस्तुत किया गया.
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जस्टिस बी वी नागरत्ना और जस्टिस सतीशचंद्र शर्मा की पीठ ने यह स्पष्ट किया कि निचली अदालत और उच्च न्यायालय ने वैभव को दोषी ठहराने के लिए केवल परिस्थितिजन्य साक्ष्यों का सहारा लिया, जबकि अपराध के पीछे के उद्देश्य का पता नहीं लगाया गया.
पुलिस का आरोप है कि वैभव ने अपने मित्र को रिवॉल्वर से गोली मारी. हालांकि, वैभव ने अपनी सफाई में कहा कि मंगेश ने गलती से खुद को गोली मारी थी. उसने यह भी बताया कि उसने डर के मारे घटनास्थल को साफ कर शव को हटा दिया.
पीठ ने स्पष्ट किया कि हाईकोर्ट ने दोषी की पहचान करने और निचली अदालत के निर्णय को बनाए रखने में त्रुटि की है, क्योंकि प्रस्तुत किए गए परिस्थितिजन्य साक्ष्य असंगत हैं. इसके परिणामस्वरूप, आईपीसी की धारा 302 (हत्या) और शस्त्र अधिनियम के एक प्रावधान के तहत उसकी दोषसिद्धि को रद्द कर दिया गया. हालांकि, पीठ ने आईपीसी की धारा 201 (साक्ष्यों को गायब करने) के तहत उसकी दोषसिद्धि को बरकरार रखा और उसे जेल की सजा सुनाई, जिसे वह पहले ही भुगत चुका है.
आरोपी और पीड़ित चंद्रपुर जिले के बागला होम्योपैथी मेडिकल कॉलेज के छात्र थे, जो अक्सर अपने दोपहिया वाहनों पर एक साथ यात्रा करते थे. 16 सितंबर, 2010 को, वे मंगेश के स्कूटर पर कॉलेज से निकले, एक स्टॉल पर चाय पी और फिर दोपहर में वैभव के घर पहुंचे.
जब मंगेश के पिता को शाम को यह जानकारी मिली कि उनका बेटा घर नहीं आया है, तो उन्होंने उसकी खोजबीन शुरू की और अंततः गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराई. अगले दिन मंगेश का शव मिला, जिसके बाद वैभव के खिलाफ मामला दर्ज किया गया, क्योंकि वह अंतिम समय में मंगेश के साथ था.
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