नई दिल्ली। रामायण सिर्फ एक धार्मिक पुस्तक नहीं, बल्कि हिंदुओं के जीवन का अहम हिस्सा है. रामायण की चौपाईयां जीवन का मर्म सिखाती हैं. भगवान राम के प्रति लोगों की श्रद्धा अद्भुत है. उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम कहा जाता है. वहीं इस पर आधारित रामलीलाएं हमारी संस्कृति का हिस्सा हैं. कई पीढ़ियों से यह संस्कारों को अगली पीढ़ी में पहुंचाने का माध्यम भी रही हैं. ऐसे में जब दिल्लीवासियों को ये पता चला कि 180 से भी ज्यादा समय से आयोजित हो रही रामलीला इस साल नहीं हो पाएगी, तो वे बहुत निराश हो गए.

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लोग अब उन दिनों को याद कर रहे हैं, जब लोग पूरे परिवार के साथ इसे देखने जाया करते थे. आजादी की लड़ाई के दौरान तो ये लोगों को प्रेरित करने का काम करती थी. लेकिन इस साल श्री रामलीला कमेटी द्वारा आयोजित होने वाली रामलीला का आयोजन नहीं होगा. चांदनी चौक (Chandni Chowk) में आयोजित होने वाली यह रामलीला 180 वर्ष से भी ज्यादा समय से हर साल होती आई है.

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पिछले साल भी कोविड-19 के चलते रामलीला का आयोजन नहीं हो पाया था, लेकिन इस साल स्थितियां काबू में होने पर सभी को उम्मीद थी कि वे रामलीला का लुत्फ लेंगे. श्री रामलीला कमेटी का कहना है कि अधिकारियों ने रामलीला उत्सव के लिए अनुमति बहुत देर से दी, जिसके कारण इस बार भी आयोजन संभव नहीं हो पाया. दरअसल रामलीला की तैयारी के लिए एक महीने से भी ज्यादा का समय लगता है.

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चांदनी चौक की रामलीला मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर के शासनकाल में शुरू हुई थी. रामलीला सवारी और उत्सव चांदनी चौक से अजमेरी गेट तक होता था. लेकिन पिछले साल कोविड के चलते और इस साल परमिशन मिलने में देरी के कारण दिल्ली और आसपास के लोग इस भव्य रामलीला के दर्शन नहीं कर पाए.

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दिल्ली आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (डीडीएमए) ने 29 सितंबर को ही कोविड से जुड़े जरूरी मानदंडों, जैसे 50 फीसदी सीटिंग कैपेसिटी का पालन करते हुए रामलीला के मंचन की मंजूरी दे दी थी, लेकिन आयोजकों को उत्सव के लिए अलग से अनुमति लेनी थी.

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कमेटी के महासचिव राजेश खन्ना और श्री रामलीला कमेटी के अन्य सदस्यों का कहना है कि इतिहास में सिर्फ तीन बार ही ऐसा हुआ है, जब रामलीला का आयोजन नहीं हो पाया. पिछले वर्ष कोविड के कारण रामलीला नहीं हो पाई और इस वर्ष भी अनुमति मिलने में देरी के कारण ऐसा हुआ. इसके अलावा 1947-48 में देश के बंटवारे के दौरान रामलीला का मंचन नहीं हो पाया था. यह दिल्ली की सबसे पुरानी रामलीला है, जिसे मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर का भी समर्थन हासिल था. आमतौर पर रामलीला का आयोजन नवरात्र के पहले दिन से शुरू होता है, इस बार 7 अक्टूबर से रामलीला का मंचन शुरू होना था.