रायपुर. अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति ने 8 जनवरी को ग्रामीण भारत बंद करने का ऐलान किया है. इस आंदोलन में पूरे छत्तीसगढ़ के किसान और आदिवासी शामिल होंगे. केंद्र की भाजपा व राज्य की कांग्रेस सरकार की कृषि व किसान विरोधी नीतियों के खिलाफ गांव बंदी करके अपनी आवाज बुलंद करेंगे. प्रदेश में किसानों, आदिवासियों व दलितों के बीच काम करने वाले 20 संगठनों और 35 किसान नेताओं की आज हुई बैठक में यह फैसला किया गया.
इन किसान संगठनों ने पूरे राज्य के किसानों से अपील की है कि वे 8 जनवरी को सब्जी, दूध, मछली, अंडे व अन्य कृषि उत्पादों को शहरों में लाकर न बेचे और ग्रामीण व्यवसायी शहरों में जाकर खरीदारी न करें. इस दिन गांवों की दुकानें और काम-काज बंद रखें और गांव बंदी करके सड़क रोकें. केंद्र व राज्य सरकारों की किसान विरोधी नीतियों के खिलाफ मंडियों, जनपदों व पंचायतों सहित विभिन्न सरकारी कार्यालयों पर धरना, प्रदर्शन व सभाएं आयोजित करें.
आंदोलनकारी किसान संगठनों ने केंद्र व राज्य सरकारों के समक्ष 18 सूत्रीय मांग पत्र भी पेश किया है, जिसमें स्वामीनाथन आयोग के सी-2 लागत का डेढ़ गुना मूल्य पर फसल खरीदी करने और इसके लिए कानून बनाने, 60 वर्ष से अधिक आयु के किसानों को न्यूनतम 5000 रुपये मासिक पेंशन देने, कानून बनाकर किसानों को कर्जमुक्त करने, फसल बीमा में नुकसानी का आंकलन व्यक्तिगत आधार पर करने, विकास के नाम पर किसानों की जमीन छीनकर उन्हें विस्थापित करने पर रोक लगाने और अनुपयोगी पड़ी अधिग्रहित जमीन को वापस करने, वनाधिकार कानून, पेसा और 5वीं अनुसूची के प्रावधानों को लागू करने, मनरेगा में हर परिवार को 250 दिन काम और 600 रुपये रोजी देने, मंडियों में समर्थन मूल्य सुनिश्चित करने, सोसाइटियों में किसानों को लूटे जाने पर रोक लगाने, जल-जंगल-जमीन के मुद्दे हल करने और सारकेगुड़ा कांड के दोषियों पर हत्या का मुकदमा कायम करने की मांगें प्रमुख हैं.
किसान नेताओं ने कांग्रेस की बघेल सरकार को आड़े हाथों लेते हुए बैठक में आरोप लगाया गया कि दो साल का बकाया बोनस देने, सभी किसानों का कर्ज माफ करने जैसे चुनावी वायदों को इस सरकार ने एक साल में भी पूरा नहीं किया है। सरकार ने किसानों का धान का रकबा षड़यंत्रपूर्वक घटा दिया है और उन्हें अपनी फसल बेचने के लिए बिचौलियों के रहमो-करम पर छोड़ दिया गया है. इससे राज्य में सोसाईटियों में धान की खरीदी में भगदड़ की स्थिति बन गई है. अनाप-शनाप बिजली बिल थमाकर किसानों को प्रताड़ित किया जा रहा है.
इन किसान संगठनों ने केंद्र सरकार के नागरिकता कानून और जनसंख्या व नागरिकता रजिस्टर बनाने की योजना का भी विरोध किया है और कहा है कि मोदी सरकार विदेशियों को तो नागरिकता देना चाहती है और इस देश के किसानों और दलित-आदिवासियों से नागरिकता के सबूत मांग रही है, जो हमें स्वीकार नहीं है. सभी किसान नेताओं ने राजनांदगांव जिला किसान संघ द्वारा आयोजित “राज करहीं मजदूर-किसान” अभियान का समर्थन करते हुए प्रदेश के किसानों से भी अपील की है कि वे इस बार पंचायत चुनावों में किसान विरोधी रूख लेने वाली कांग्रेस-भाजपा से सीधे जुड़े उम्मीदवारों की हार को सुनिश्चित करें, ताकि पंचायतों की ताकत का उपयोग किसान-आदिवासियों के पक्ष में किया जा सके.
इन संगठनों ने विभिन्न मांगों को लेकर ट्रेड यूनियनों के आह्वान पर 8 जनवरी को ही प्रस्तावित मजदूरों की राष्ट्रीय हड़ताल को समर्थन देने का निर्णय लिया है.
किसान संगठनों की इस बैठक में छग किसान सभा के संजय पराते, नंद कुमार कश्यप; किसानी प्रतिष्ठा मंच के विजय भाई; छग प्रगतिशील किसान संगठन के आई के वर्मा, राजकुमार गुप्ता; जिला किसान संघ राजनांदगांव के सुदेश टीकम; अभा क्रांतिकारी किसान सभा के तेजराम विद्रोही, मदनलाल साहू; छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के आलोक शुक्ला, रमाकांत बंजारे; छमुमो मजदूर कार्यकर्ता समिति के कलादास डहरिया; राष्ट्रीय किसान समन्वय समिति के एस आर नेताम, पारसनाथ साहू; किसान संघर्ष समिति कुरूद-धमतरी के लीलाधर साहू, बिसाहूराम साहू, चंद्रहास साहू, पुरूषोत्तम वाघेला; छग स्वाभिमान मंच के सुमिरन गुप्ता; दलित आदिवासी मंच की राजिम केतवास; आदिवासी एकता महासभा के बाल सिंह, कृष्ण कुमार; छग किसान महासभा के नरोत्तम शर्मा; आदिवासी महासभा के मनीष कुंजाम; छग प्रदेश किसान सभा के सत्यनारायण कमलेश; किसान जन जागरण मंच बसना के सोहन पटेल; किसान-मजदूर संघर्ष समिति के लोकनाथ नायक; किसान संघ कांकेर के गिरवर साहू; और कल्याण सिंह ठाकुर, राधेश्याम शर्मा, नंद किशोर बिस्वाल और लक्ष्मीलाल पटेल सहित अनेक किसान नेता शामिल थे.