2013 Muzaffarnagar Riots: उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में साल 2013 में हुए साम्प्रदायिक हिंसा के 10 आरोपियों को सबूत के आभाव में बरी कर दिया गया है। उस समय हुए आशु हत्याकांड के बाद भड़के दंगे में 60 लोगों क मौत हो गई थी। वहीं, 40 हजार से ज्यादा लोग बेघर हो गए थे। मामले की सुनवाई कर रही स्थानीय अदालत ने सभी अभियुक्तों को दोषमुक्त कर दिया है।    

आरोपियों में गौरव, अमरपाल, रॉकी, रतन, दिनेश, योगेश, अभिषेक, रूबी, कपिल कुमार और मनोज कुमार शामिल हैं। अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश अंजनी कुमार सिंह ने सभी 10 आरोपियों को बरी करते हुए कहा कि अभियोजन पक्ष अपने आरोप साबित करने में विफल रहा है। आदेश पिछली 26 सितंबर को पारित किया गया था और दो दिन बाद उपलब्ध कराया गया। 

शिकायतकर्ता और मृतक की मां गवाही में मुकरे
अभियोजन पक्ष ने बताया कि SIT जांच के दौरान 11 लोगों को आरोपी बनाया गया था। मामले के लंबित रहने के दौरान सचिन नाम के आरोपी की मौत हो गई थी। अधिवक्ता शिवराज सिंह मलिक ने बताया कि सुनवाई के दौरान शिकायतकर्ता इमराना और आशु की मां वकीला समेत दो गवाह मुकर गए और दावों का समर्थन नहीं किया।

छेड़छाड़ से शुरू हुआ था विवाद

बता दें कि  27 अगस्त 2013 को जाट और मुस्लिम समुदाय के बीच झड़प शुरू हुआ था। कवाल गांव में कथित तौर पर एक जाट समुदाय लड़की के साथ एक मुस्लिम युवक ने छेड़खानी की। उसके बाद लड़की के दो ममेरे भाइयों गौरव और सचिन ने उस मुस्लिम युवक को पीट-पीट कर मार डाला। जवाबी हिंसा में मुस्लिमों ने दोनों युवकों की जान ले ली।

दोनों पक्षों ने अपनी अपनी महापंचायत बुलाई. इसके बाद ही बड़े पैमाने पर हिंसा शुरू हो गई। नंगला मंदौड़ में हुई महापंचायत में भारतीय जनता पार्टी के स्थानीय नेताओं पर आरोप लगा कि उन्होंने जाट समुदाय को बदला लेने को उकसाया। इसके बाद 07 सितंबर को महापंचायत से लौट रहे किसानों पर जौली नहर के पास दंगाइयों ने घात लगाकर हमला किया। दंगाइयों ने किसानों के 18 ट्रैक्टर और तीन मोटरसाइकिलें फूंक दीं। प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक उन लोगों ने शवों को नहर में फेंक दिया। छह शवों ढूंढ निकाला गया। इस दंगे में एक फोटोग्राफर और पत्रकार समेत 60 लोगों की मौत हुई।

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