रायपुर. राजधानी के अंबेडकर अस्पताल में कार्डियोथोरेसिक एवं वैस्कुलर सर्जरी विभाग के डॉक्टरों ने एक मरीज के फेफड़े से 3.25 किलोग्राम का ट्यूमर ऑपरेशन के जरिए निकाला है. जबकि मरीज ऑपरेशन करने की स्थिति में नहीं थी, फिर भी डॉक्टरों ने रिस्क लेकर सफलतापूर्वक ऑपरेशन किया. इस ट्यूमर को मेडिकल भाषा में “पलमोनरी स्पिंडल सेल कॉर्सिनोमा” कहा जाता है. इसका दूसरा नाम “सॉर्कोमेटॉइड कार्सिनोमा या स्यूडोसार्कोमा” है. सामान्य भाषा में इसे फेफड़ों का कैंसर कहते हैं.
एसीआई के कार्डियोथोरेसिक वैस्कुलर सर्जरी विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. कृष्णकांत साहू के नेतृत्व में हुए इस ऑपरेशन में बेहद जटिलता व कठिनातापूर्वक मरीज के दायें फेफड़े के निचले हिस्से को ट्यूमर सहित काट कर बाहर निकाला गया. मरीज अभी स्वस्थ्य है एवं डिस्चार्ज के लिए तैयार है. डॉ. कृष्णकांत साहू के मुताबिक यह कैंसर बहुत ही दुर्लभ किस्म का होता है जो 1 हजार लोगों में से केवल 0.3 प्रतिशत लोगों को होता है.
सांस फूलने व कमजोरी की शिकायत के साथ पहुंची थी मरीज
राजधानी के दलदल सिवनी, मोवा में रहने वाली 45 वर्षीय महिला सांस फूलने एवं कमजोरी की शिकायत के साथ एसीआई में डॉ. कृष्णकांत साहू के पास एक निजी अस्पताल से रिफर होकर आई थी. इसकी प्रारंभिक जांच पहले ही हो चुकी थी जिसमें स्पष्ट हो गया था कि महिला को दायें फेफड़े के नीचे स्थित लोब (लोवर लोब ऑफ राइट लंग) में ट्यूमर है, लेकिन यह ट्यूमर बहुत बड़ा हो गया था और फेफड़े के साथ-साथ फेफड़े की मुख्य नस जिसको ’पलमोनरी आरटरी एवं पलमोनरी वेन’ कहते हैं, को अपनी चपेट में ले लिया था. साथ ही दायें भाग की मुख्य सांस नली तथा हृदय के कुछ भाग को अपनी चपेट में ले लिया था. सीटी स्केन देखकर समझ आ गया था कि इस ट्यूमर को निकालना आसान नहीं है या हो सकता है कि ऑपरेशन को बीच में अबैन्डन (छोड़ना या टालना) करना पड़े क्योंकि मरीज का जीवित रहना ज्यादा जरूरी है.
दूसरी सबसे बड़ी चुनौती थी कि मरीज के मात्र दायें फेफड़े के सबसे नीचे वाले लोब (भाग) को ही निकालना था. यदि यह नहीं कर पाते तो पूरा दायां फेफड़ा निकालना पड़ता जिसको न्युमोनेक्टॉमी कहते हैं. उस स्थिति में मरीज ऑपरेशन के बाद वेन्टिलेटर से बाहर नहीं आ पाता क्योंकि ऑपरेशन के दौरान एवं ऑपरेशन के पहले कराये गये टेस्ट में पल्मोनरी फंक्शन टेस्ट (पीएफटी) में एक फेफड़े से उसका ऑक्सीजन सैचुरैशन मेन्टेन नहीं हो पा रहा था. ऐसी स्थिति में डॉक्टरों के पास एक ही विकल्प था कि या तो दायें फेफड़े का एक ही भाग निकालें या फिर ऑपरेशन को बीच में ही छोड़ दें जिससे कम से कम मरीज जीवित रहे. फिर डॉ. कृष्णकांत साहू एवं डॉ. निशांत सिंह चंदेल ने मिलकर बड़ी मशक्कत के बाद उसके दायें फेफड़े के निचले हिस्से को ट्यूमर सहित काट कर बाहर निकाला.
ऑपरेशन में शामिल रहे विशेषज्ञों की टीम
ऑपरेशन में शामिल रहे विशेषज्ञों की टीम में डॉ. कृष्णकांत साहू, डॉ. निशांत सिंह चंदेल, डॉ. कामेन्द्र (पी.जी. डॉक्टर) एनेस्थेटिस्ट – डॉ. ओ. पी. सुंदरानी, डॉ. मुकुन्दन, नर्सिंग स्टॉफ – राजेन्द्र साहू शामिल रहे.