अम्बिकापुर. अगर आपने पहाड़ों को उजड़ते देखा है और उजड़े पहाड़ को हरा-भरा होते देखना चाहते हैं तो सरगुजा चले जाईये. दरिमा से मैनपाट के रास्ते एक पहाड़ है मड़वा पहाड़. इसका बड़ा हिस्सा उजाड़ है, दूसरा हरा-भरा. जो इस पहाड़ का हरा-भरा हिस्सा है वो हर किसी को चौंकाता है. तीन साल पहले ये भी पहाड़ के बाकी हिस्सों की तरह वीरान था. फिर कैसे तीन सालों में हरा क्षेत्र बढ़ रहा है, वो भी बिना किसी सरकारी और गैर सरकार फंड के.

पहाड़ को हरा-भरा बनाने की एक मुहिम चल रही है जिसमें वहां के स्थानीय लोग, शहर के लोग, एक सामाजिक संस्था और सरकार की भागीदारी है. आपको ये जानकर आश्चर्य होगा कि इस पहाड़ को हराभरा करने की इस मुहिम की शुरुआत गांव के चार-पांच साल के बच्चों ने की थी. धीरे-धीरे इस मुहिम में सभी साथ जुड़ते चले गए और पहाड़ को हरा-भरा बनाने का ये अनूठा अभियान शुरु हो गया.

तीन साल पहले इस गांव में शिक्षाकुटीर नाम की संस्था ने एक स्कूल खोला और पहाड़ को हराभरा करने के मकसद से वहां की कम्यूनिटी को जोड़ा. स्कूल ने बच्चों से फीस नहीं ली. बल्कि उनके माता पिता को इसके बदले पहाड़ में फीस के बदले एक पेड़ लगाने और उसे साल भर जिंदा रखने का ज़िम्मा दिया. लेकिन स्कूल के अभिभावकों का कहना था कि पहाड़ में पौधों का ज़िंदा रहना मुश्किल है क्योंकि वहां मिट्टी है नहीं. बारिश के बाद मिट्टी की नमी भी खत्म हो जाती है. समस्या के समाधान के लिए संस्था ने पौधों को ज़िंदा रखने में एक्सपर्ट वाइब्रेंट नेचर फर्म की सहायता ली.

बाइब्रेंट नेचर ने सबसे पहले वहां पौधों के लिए दो से ढाई फीट खुदाई कराई. जिसमें नीचे से मिट्टी डलवाया. उसके बाद स्कूल के बच्चों ने अपने नेम प्लेट के साथ पौधे लगाए, उनके माता-पिता ने चारों ओर घेरा किया. इसके बाद पौधों को ज़्यादा से ज़्यादा पानी मिले इसके लिए मरीज़ों को चढ़ाई जाने वाली खाली स्लाइन की बोतलें मंगवाई. इन बोतलों में पानी डलवाकर पौधों तक पानी बूंद-बूंद पहुंचाया गया.

पहले साल पहाड़ पर करीब 50 पौधे लगवाए जिसमें से एक भी पौधा नहीं मरा. इसके बाद गर्मियों में पौधे लगवाए गए. ताकि उसकी ग्रोथ बारिश से पहले इतनी हो जाए कि बारिश का वो अधिकतम फायदा उठा सके.

शिक्षाकुटीर ने लोगों में पेड़ के प्रति जागरुकता लाने के लिए ‘सेव हिल सेव लाइफ’ का एक कार्यक्रम किया जिसमें जल, जंगल, ज़मीन और वृक्षारोपण के क्षेत्र में काम करने वाले सामाजिक कार्यकर्ताओं, वन अधिकारी, सिंचाई विशेषज्ञों को लोगों को बुलाकर एक गोष्ठी का आयोजन किया.

कार्यक्रम को बढ़ावा देने अगले साल इस अभियान में दो कार्यक्रम को जोड़ा जिसमें शहर के उन लोगों को जोड़ा. जिन्हें पर्यावरण से प्यार है. सालाना तीन सौ रुपये की दर पर उनसे वृक्षारोपण कराया गया और ये गारंटी दी गई कि उनके लगाए पौधे पांच साल तक लगातार बढ़ेंगे. इसके बाद वाइब्रेंट नेचर ने इन पैसों से वहां पर एक मासिक तनख्वाह पर एक चौकीदार नियुक्त किया जो उन पौधों की रखवाली करे और नमी से पैदा घास को बढ़ने दे.

संस्था ने इसी दौरान वन विभाग और जिला प्रशासन को वहां प्लांटेशन के लिए प्रस्ताव दिया. वन विभाग ने प्लांटेशन का प्रस्ताव को पारित तो करा लिया. लेकिन बारिश का सीज़न इस प्रक्रिया में बीत गया. अगले साल इस काम में कोई सरकारी नियम की हीलाहवाली न हो सके लिहाज़ा संस्था ने गांववालों को बोलकर सुराज अभियान में प्लांटेशन का आवेदन डलवा दिया.

अगले साल इस मुहिम में सरकार भी उतर आई. अब पहाड़ को बचाने की मुहिम संस्था, समुदाय, सिविल सोसाइटी और सरकार शामिल है. पूरे साल भर इस कार्यक्रम को सफल बनाए रखने के लिए एक व्यक्ति को देखरेख का ज़िम्मा दिया गया है. जो लगातार उसकी देखभाल कर रहा है. लेकिन संस्था के सदस्यों का कहना है कि अभी भी पहाड़ का बड़ा हिस्सा उजाड़ है. उसे ठीक करने की जरुरत है. सबने मिलकर एक बड़ी पहल तो की है. लेकिन काम पूरी तरह सफल तब तक नहीं हो सकता है जब तक वहां वाटर बॉडी बनाया न जाए. संस्था ने जिला प्रशासन से दो साल पहले आग्रह किया था कि पहाड़ की तलहटी में एक बड़ा तालाब या बांध बनवा दिया जाए और एक तालाब पहाड़ के ठीक ऊपर पाट में बना दिया जाए जिससे वहां पानी की उपलब्धता बनी रहे. लेकिन जनपद पंचायत के अधिकारियों ने वहां आकर खानापूर्ति कर ली. उसके बाद ये कोशिश खटाई में पड़ गई.

गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि पहले इस पहाड़ में इतना घना जंगल था कि राजा-महाराजा यहां शिकार करने आते थे लेकिन आसपास के गांव के लोगों ने अपनी ज़रुरत के लिए जंगलों की कटाई करके उसे वीरान बना दिया था. अब उम्मीद है कि ये पहाड़ पूरी तरह से हरा-भरा हो जाएगा. गांव में अभी मिट्टी का कटान होने से बालू आ जाता है. शिक्षाकुटीर के लोगों ने कहा है कि जिस दिन इस नाले से बालू की जगह पानी बहने लगेगा समझना आपका पहाड़ फिर से ज़िंदा हो गया है.