पुरुषोत्तम पात्र, गरियाबंद. इस अंचल में अलेख महिमा पंथ को मानने वाले 30 हजार लोग रोजाना सूर्योदय और सूर्यास्त के पूर्व नियमित रूप से मुड़िया मारते हैं. मुड़िया, सूर्य नमस्कार योग प्रक्रिया है, जिसे 7 बार यानी आधा घंटा नियमित रूप से सुबह शाम करना होता है. पंथ के मानने वालों में महिला सदस्य भी शामिल हैं.

पंथ के प्रमुख बाबा उदय नाथ बताते हैं कि, 1998 में इसकी शुरुवात 20 से 30 लोगों से हुई थी. निराकार शून्य की आराधना करने वाले यह पंथ, योग साधना व संतुलित आहार पर केंद्रित है. पंथ में शामिल होने वाले को नशा और तामशी भोजन त्याग करना होता है. सूर्योदय से पहले उठना और सूर्यास्त के पहले भोजन करना होता है. दोनों ही बेला में मुड़िया मारा जाता है.

रोग मुक्त होने लगे लोग

बाबा उदय नाथ बताते है कि, अलेख महिमा में सन 2004 के बाद ज्यादातर वही लोग जुड़े जिन्हें शारीरिक कष्ट था. जुड़ने के बाद नियमों का पालन कड़ाई से करना होता है. इससे दिनचर्या में बदलाव आया, लोग स्वास्थ्य और निरोग होते गए. 30 हजार सदस्यों में 8 हजार महिलाएं 4 हजार बच्चो की संख्या है. सभी का उल्लेख पंजी में हैं. लोकप्रियता को देखते हुए काडसर के अलावा कदलीमुड़ा व मोखागुड़ा में भी अलेख गादी बनाया गया है. प्रत्येक हिन्दू पर्व पर गौ और पर्यावरण से जुड़े वृहद आयोजन साल में 6 बार आयोजित होता है. योग दिवस पर भी अनुयायी आश्रम में जुटते हैं.

योग समतुल्य मूड़िया का इतिहास 100 साल से ज्यादा पुराना

योग को गांव-गांव तक पहुंचाने भले ही इसका सरकारी अभियान कुछ साल पहले शुरू किया गया हो, लेकिन अलेख महिमा पंथ को मानने वाले लोग इसकी शुरुआत 100 साल से भी पहले कर चुके थे. ओडिशा के जुरूंगा गादी नामक स्थान से भीम भोई नाम के एक महात्मा ने इसकी शुरुआत की थी. उन्हीं के शिष्य बाबा उदय नाथ काडसर के जंगल में एक कुटिया बनाकर छत्तीसगढ़ में इस पंथ का विस्तार किया. आज बाबा उदय नाथ गौ सेवक के रूप में विख्यात हैं. उनका आश्रम अलेख महिमा गौ शाला के रूप में विकसित हुआ है, सनातनियों का इस आश्रम में आना जाना लगा रहता है.

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