पुरूषोत्तम पात्रा, गरियाबंद। देवभोग तहसील के चिचिया में वर्षों से काबिज जमीन के बजाए दूसरे के काबिज जमीन पर कब्जा दिखाकर आदिवासी परिवार को वन अधिकार पट्टा थमाया गया. मामला सुलझाने परिवार चक्कर काट रहा था. इस बीच दबंग सरपंच ने आदिवासी के काबिज जमीन को गोठान के लिए चयन करवा दिया. कलेक्टर को आवेदन देने पहुंचे परिवार का कहना है कि पिछले 30 सालों से जमीन के भरोसे जीवकोपार्जन चल रहा है. जमीन के भरोसे, गोठान नहीं इंसान को प्राथमिकता दिया जाए.

चिचिया के दसरथ ध्रुवा अपने पत्नी के साथ सोमवार को कलेक्टर नीलेश क्षीरसागर से अपने काबिज जमीन पर पट्टा दिलवाने की मांग लेकर पहुंचा था. ध्रुवा ने कलेक्टर को बताया कि वह देवभोग तहसील के पटवारी हल्का नम्बर 6 के खसरा क्रमांक 1302 के टुकड़े में काबिज था. 30 सालों से उसी खसरा के 3 एकड़ से ज्यादा जमीन पर कब्जा था, लेकिन अब उसमें सरपंच राजकुमार प्रधान द्वारा गोठान निर्माण करवाया जा रहा है. आदिवासी दंपती ने गोठान के बजाए इंसान को जमीन पर प्राथमिकता के आधार पर कब्जा दिलाकर गोठान निर्माण पर रोक लगाकर वास्तविक कब्जे के जमीन पर पट्टा दिलाने की मांग की है.

कलेक्टर ने गरीब की मांग को गम्भीरता से लेते हुए देवभोग जनपद सीईओ एमएल मंडावी को आवश्यक कार्रवाई करने निर्देश किया है. इस निर्देश के बाद स्थानीय अमला सक्रिय हो गया है. सीईओ मंडावी ने कहा कि रिकार्ड व वस्तुस्थिति की जांच के बाद उचित कदम उठाकर जिलाधीश को अवगत करा दिया जाएगा.

मौका जांचे बगैर थमा दिया गया पट्टा

खसरा क्रमांक 1302 मे काबिज दशरथ ध्रुवा सिस्टम का शिकार हो गया. वन भूमि काबिज लोगों को जब पट्टा दिया गया. उस समय पटवारी व पंचायत ने कब्जा स्थल का मुआयाना नहीं किया. यही वजह है कि दसरथ को खसरा 1276 का पट्टा दे दिया गया. उसके वास्तविक स्थल से लगभग 1 किमी दूर उक्त जमीन में दूसरे किसान के कब्जा का दावा है. अनपढ़ परिवार को जब गोठान निर्माण के लिए सरपंच राजकुमार द्वारा दुत्कारा गया. मानसिक प्रताड़ना दिया गया. राजस्व अमला बुलाकर बेदखल किया गया, तब उसे पता चला कि उसके साथ सिस्टम ने धोखा किया है. अब यह जानबूझ कर किया गया है या अनजाने में हुआ, पर आज एक आदिवासी परिवार को मानसिक प्रताड़ना झेलना पड़ रहा है.