अभय मिश्रा, मऊगंज। जिले के नईगढ़ी और हनुमना जनपद शिक्षा केंद्र में शिक्षा विभाग का बड़ा आरओ घोटाला उजागर हुआ है। करीब 35 लाख रुपये से अधिक की सरकारी राशि विद्यालयों में आरओ लगवाने के नाम पर कागजों पर ही खर्च दिखा दी गई। जिले के 600 से ज्यादा विद्यालयों में आज तक बिजली का कनेक्शन तक नहीं है,फिर भी विभाग के अधिकारियों ने उन्हीं स्कूलों में 15,941 कीमत के आरओ लगाए जाने का दावा कर दिया।
असलियत यह है कि अधिकांश विद्यालयों में आज तक आरओ लगाए ही नहीं गए हैं। जहां लगाए दिखाए गए हैं वहां बिजली तक नहीं है। अब सवाल यह है कि जब बिजली नहीं, तो आरओ चल कैसे रहे हैं? और जब आरओ लगाए ही नहीं गए, तो बिल पास किसकी अनुमति से हुए?
कैसे हुआ घोटाला?
सूत्रों के मुताबिक, ब्लॉक स्रोत समन्वयकों ने सप्लायरों के साथ फर्जी बिल और वाउचर तैयार कराए₹3,500 कीमत वाले आरओ को ₹15,941 में दिखाकर भुगतान करा लिया गया। कुछ बिल तो खाली फॉर्म पर हस्ताक्षर करवाकर बाद में भरे गए, ताकि रकम मनमानी लिखी जा सके।यानी सरकारी खजाने को लूटने का पूरा सिस्टम तैयार किया गया,जहां कागज़ों पर काम हुआ और ज़मीन पर हकीकत शून्य रही।

शिक्षकों ने खोली पोल
हनुमना जनपद शिक्षा केंद्र के माध्यमिक विद्यालय देवरा हरिजन बस्ती और बघेला स्कूल में आज तक आरओ नहीं लगाए गए हैं।जब इन विद्यालयों के शिक्षकों से बात की गई तो उन्होंने साफ कहाकि हमारे स्कूल में आज तक कोई आरओ नहीं लगा। लेकिन सुनने में आया है कि कागज़ों में बिल पास हो चुका है।
भ्रष्टाचार पर इनाम, कार्रवाई शून्य
हैरत की बात यह है कि इस पूरे भ्रष्टाचार के बावजूद किसी भी अधिकारी पर कार्रवाई नहीं की गई। बल्कि जिस व्यक्ति के नाम पर आरोप लगे उसे पदोन्नति देकर खंड शिक्षा अधिकारी (BEO) बना दिया गया। मामला विधानसभा में मामला उठने पर भी विभाग ने गलत जानकारी देकर शिकायतों को दबा दिया।

नियमों को ताक पर – रिश्तेदारी तंत्र सक्रिय
इसी घोटाले की जड़ में रिश्तेदारी और संरक्षण का जाल भी शामिल है। हनुमना बीआरसी पद पर एक अपात्र व्यक्ति को नियम विरुद्ध बैठाया गया है। सूत्रों के मुताबिक, उसने विकलांगता प्रमाण पत्र के सहारे नौकरी हासिल की। जबकि इस पद के लिए अधिकतम आयु सीमा 56 वर्ष तय है। वहीं उसकी रिश्तेदार सुनैना त्रिपाठी, कस्तूरबा गांधी छात्रावास में तीन साल से अधिक समय से पदस्थ हैं,जबकि नियमानुसार किसी अधीक्षक को तीन वर्ष से अधिक एक ही स्थान पर नहीं रखा जा सकता।
प्रशासनिक लापरवाही या सुनियोजित लूट?
यह पूरा मामला केवल एक घोटाला नहीं,बल्कि शिक्षा विभाग में व्याप्त सड़ांध और मिलीभगत की तस्वीर है। बिना बिजली के स्कूलों में फर्जी आरओ,फर्जी बिलों से सरकारी धन का दुरुपयोग,और भ्रष्ट अफसरों को पदोन्नति का पुरस्कार।
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