रोहिंग्या घुसपैठिए विवाद पर कुछ दिन पहले कुछ पूर्व जजों और वकीलों ने CJI की 2nd December को रोहिंग्या शरणार्थियों पर सुनवाई के दौरान बड़ी टिप्पणी ‘क्या भारत सरकार ने रोहिंग्याओं को शरणार्थी घोषित किया है?’ पर आपत्ति जताई थी, रोहिंग्या शरणार्थियों के ऊपर टिप्पणी को लेकर Supreme Court के Chief Justice सूर्यकांत पर सवाल उठाने वालों को 40 से अधिक पूर्व Judges ने आड़े हाथ लिया है. हाल ही में High Court के Retired Judges, Senior Lawyers और Legal Scholars ने CJI के नाम ओपन लेटर लिखर उनकी टिप्पणी को अविवेकपूर्ण बताया था. इसके जवाब में अब 44 पूर्व जजों ने साझा बयान जारी किया है. उन्होंने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट का अपमान ठीक नहीं है. भारत की संवैधानिक व्यवस्था मानवता और सतर्कता दोनों की मांग करती है.पूर्व जजों ने कहा कि रोहिंग्या भारतीय कानून के तहत शरणार्थी के रूप में भारत नहीं आए थे.
ज्यादातर मामलों में उनकी एंट्री अवैध है. पूर्व जजों ने कहा कि भारत ने 1951 के संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी सम्मेलन या उसके 1967 के प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं. अवैध रूप से भारत में प्रवेश करने वाले लोगों ने आधार कार्ड, राशन कार्ड और अन्य भारतीय दस्तावेज कैसे बनवाए. यह बड़ा सवाल है.

CJI के सपोर्ट में उतरे पूर्व जजों ने कहा कि न्यायालय की निगरानी में एक SIT गठित हो और वो इस बात की जांच करें कि अवैध रूप से भारत में दाखिल करने वालों ने AADHAR CARD,RATION CARD कार्ड और अन्य पहचान पत्र कैसे प्राप्त किए. उन्होंने कहा कि म्यांमार में रोहिंग्याओं की स्थिति जटिल है और इसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. उन्हें लंबे समय से बांग्लादेश से आए अवैध प्रवासी माना जाता रहा है. उन्हें नागरिकता देने से इनकार किया जा रहा है. उन्होंने कहा कि भारत की संवैधानिक व्यवस्था मानवता और सतर्कता दोनों की मांग करती है. न्यायपालिका ने अपनी शपथ के अनुरूप कार्य किया है. यह दुर्व्यवहार उचित नहीं है.
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