विधि अग्निहोत्री, रायपुर/निमिष तिवारी, खल्लारी।  

गिरकर उठना उठकर चलना यह क्रम है संसार का,

कर्मवीर को फर्क ना पड़ता किसी जीत या हार का

कर्मों का रोना रोने से कभी कोई ना जीता है

संबल और विश्वास में है अपने दृढ़ आधार का

कर्मवीर को फर्क ना पड़ता किसी जीत या हार का

यह क्रम है संसार का………..

 संसार में सुख पूर्वक जीने का एक ही रास्ता है कर्म. गीता का सार भी यही है कि हे मनुष्य ! तू फल की चिंता किये बिना बस कर्म कर. महासमुंद जिले के बागबाहरा निवासी 35 वर्षीय आदिवासी युवक लुकेशवर ध्रव ने भी क्रम से अपनी किस्मत बदलने की ठानी.

लुकेश्वर की कहानी इसलिए दिलचस्प है क्योंकि लुकेश्वर दिव्यांग है. बचपन में बाएं पैर से पोलियोग्रस्त होने के कारण लुकेश्वर 50% दिव्यांग हैं. लुकेश्वर ने खल्लारी हॉयर सेकंडरी स्कूल से कला विषय के साथ 12 वीं तक पढ़ाई की है वह आगे भी पढ़ाई जारी रखना चाहता था लेकिन गरीबी ने आगे पढ़ने के सारे रास्ते बंद कर दिये. 9 सदस्यों का एक बड़ा परिवार था और घर की आमदनी केवल ड़ेढ़ एकड़ के खेत से होती थी. पिता की उम्र भी लगभग 60 बरस थी. पिता और भाई को अकेले खेत में मेहनत करता हुआ देख लुकेश्वर काफी परेशान होता. वह पिता और भाई का हाथ बटांना चाहता था, पर दिव्यांगता हर बार आड़े आ जाती. लुकेश्वर का घर कच्चा था तो बारिश का मौसम आते ही परिवार की मुसिबतें बढ़ जाती. छत से इतना पानी टपकता की परिवार रात-रात भर सो नहीं पाता. ये लोग बारी-बारी से जागकर घर के सामान को गिला होने से बचाते. आय का साधन सिर्फ खेती थी जिससे परिवार का पेट भर जाए इतना ही काफी था. ऐसे में घर की मरम्मत करा पाना लगभग नामुमकिन था. वह चाह कर भी परिवार की मदद नहीं कर पा रहा था. ऐसा नहीं है कि लुकेश्वर ने अपने हालात बदलने की कोशिश नहीं कि, उसने शिक्षाकर्मी, पंचायत कर्मी, पोस्ट ऑफिस और रेलवे की परिक्षाओं में अपनी किस्मत आज़माई पर यहां भी लुकेश्वर को निराशा हाथ लगी.

 लेकिन लुकेश्वर ने भी ठान लिया था कि परिवार को आर्थिक संकट से बाहर निकालनें में अपना योगदान जरूर देगा. उसने कंप्यूटर की शिक्षा लेने के लिए महासमुंद आने का फैसला किया. कंप्यूटर की पढ़ाई के साथ-साथ वह अपना खर्च उठाने के लिए सेल का काम भी करता. जहाँ उसे 900 रूपये प्रतिमाह मिलते. इतने कम वेतन में पढ़ाई और रहने का खर्च उठाना संभव नहीं था. इसलिए लुकेश्वर मन मारकर गांव वापस आ गया. वापस गांव आने के बाद लुकेश्वर के माता पिता ने उसका विवाह करवा दिया .. शादी हो जाने के बाद लुकेश्वर के लिए कुछ न कुछ काम करना बहुत जरूरी हो गया था. क्योंकि उसे अब अपने साथ-साथ अपनी पत्नी का पेट भी भरना था. उसे कुछ नहीं सूझ रहा था कि वह क्या करे. वह निराश होकर अवसाद की स्थिति में पहुँच चुका गया था.

एक सुबह उसने एक अखबार में मुख्यमंत्री कौशल विकास योजना के बारे में पढ़ा, कौशल योजना के बारे में पढ़कर उसने इसके बारे में ज्यादा जानकारी के लिये अपने क्षेत्र के जनपद सदस्य से संपर्क किया. जनपद सदस्य ने उसे कौशल विकास योजना की पूरी जानकारी दी और उससे फार्म भरवाकर बागबाहरा जनपद कार्यालय में जमा करवा दिया. फार्म भरने के कुछ माह बाद ही बागबाहरा के विकास आशा सेवा संस्था की अध्यक्ष पूजा तिवारी ने लुकेश्वर से संपर्क किया. लुकेश्वर ने बागबाहरा की विकास आशा सेवा संस्था में कौशल विकास योजना के तहत 6 माह तक मोटर वाइंडिंग और इलेक्ट्रॉनिक रिपेरिंग का प्रशिक्षण प्राप्त किया. प्रमाण पत्र मिल जाने के बाद उसने अपने कुछ दोस्तों और शुभचिंतको से आर्थिक मदद लेकर अपने गांव से 3 किलोमीटर दूर स्थित भीमखोज गांव में बस स्टैंड के पास किराये की दुकान में अपना व्यवसाय प्रारंभ किया. अपने काम में महारत रखने वाले लुकेश्वर ने बहुत कम समय में ही आसपास के ग्रामों में अपनी अलग पहचान बना ली है. अब लुकेश्वर अपने व्यवसाय से 10 से 12 हजार रुपये प्रतिमाह कमा रहा है.

निराशा के भंवर में फंसकर डूबते लुकेश्वर को मुख्यमंत्री कौशल विकास योजना ने नई उड़ान दी है, लुकेश्वर के सपनों को कौशल विकास योजना ने सच कर दिखाया है. अब लुकेश्वर के बुजुर्ग माता पिता को खेतों में पसीना नहीं बहाना पड़ता, लुकेश्वर ने अपनी कमाई से खेत में बोर खुदवा दिया है और अपने छोटे भाई को उन्नत खेती करने के लिए आर्थिक मदद कर रहा है. पुराने जर्जर मकान से भी छुटकारा मिल गया है अब लुकेश्वर के माता पिता, पत्नी, बेटी और उसके छोटे भाई का परिवार नये पक्के मकान में खुशहाल जिंदगी जी रहे हैं.

कभी बेरोजगारी का दंश झेलने वाला लुकेश्वर आज अपनी दुकान में 4 युवकों को रोजगार दे कर उन्हें काम सिखा रहा है. आज के दौर में जहां दोनों पैरों से सक्षम उच्च शिक्षा प्राप्त नौजवान अपने पैरों में खड़े नहीं हो पा रहे हैं वहाँ मुख्यमंत्री कौशल विकास योजना की मदद से एक पैर से 50 प्रतिशत विकलांग लुकेश्वर ने अपने जीवन की सबसे कठिन दौड़ जीत ली है. लुकेश्वर गौरव ग्राम बी.के.बाहरा का वास्तविक गौरव बन गया है.