जनवरी 2025 में प्रयागराज में होने वाला महाकुंभ दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक मेला होगा. जिसमें लाखों श्रद्धालु शामिल होंगे. इसी दौरान कई लोग महामंडलेश्वर बनने की इच्छा लेकर अखाड़ों में आवेदन कर रहे हैं. लेकिन अखाड़ों ने ऐसे कई लोगों के आवेदन को खारिज कर दिया है, जो संत बनने के लिए जरूरी शर्तों को पूरा नहीं करते थे.

अखाड़ों का कहना है कि संत बनने के लिए व्यक्ति को गृहस्थ जीवन त्याग करना पड़ता है, यानी वह परिवार से बिल्कुल अलग होकर संन्यास की जीवनशैली अपनाएं. हालांकि कई लोगों ने अखाड़ों को गलत जानकारी दी थी, जिसमें यह दावा किया गया था कि वे गृहस्थ नहीं हैं और परिवार से दूर रहते हैं. लेकिन जांच में पाया गया कि इनमें से 79 लोग परिवार सहित रहते थे और उनके बच्चे भी थे. अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष रविंद्र पूरी महाराज ने बताया कि अखाड़ों की परंपरा के अनुसार संन्यासी और नागा साधु वही हो सकते हैं जिनका जीवन पूरी तरह से गृहस्थ जीवन से मुक्त हो और उनका आहार भी शुद्ध हो. जब इन लोगों की जांच की गई तो पता चला कि उनका आहार अलग था और वे परिवार के साथ रहते थे. जो कि अखाड़े की परंपरा के खिलाफ है.

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रविंद्र पूरी ने यह भी कहा कि महाकुंभ के समय कई लोग साधु बनने की इच्छा जताते हैं, क्योंकि यह एक धार्मिक और लोकप्रिय आयोजन होता है. लेकिन उन्होंने यह स्पष्ट किया कि साधु बनने के लिए व्यक्ति को पहले अपना गृहस्थ जीवन छोड़ना पड़ता है. आज कल कुछ लोग कथा वाचन और अन्य धार्मिक कार्यों के माध्यम से संत बनने का प्रयास करते हैं, लेकिन उनके उद्देश्य मुख्य रूप से यश, पैसा और वैभव प्राप्त करने के होते हैं. इन लोगों से सावधान रहने की जरूरत है.

परिवार का करना होता है त्याग

महामंडलेश्वर बनने की प्रक्रिया के बारे में रविंद्र पूरी ने बताया कि इसे एक गंभीर और पवित्र प्रक्रिया माना जाता है. जिसमें सबसे पहले ब्रह्मचारी दीक्षा दी जाती है और अंत में संन्यास लेने के बाद व्यक्ति पूरी तरह से संन्यासी जीवन अपनाता है. इस प्रक्रिया के बाद व्यक्ति का संबंध परिवार से समाप्त हो जाता है और वह पूरी तरह से संत की तरह जीवन जीने के लिए प्रतिबद्ध होता है. इसलिए अखाड़ों ने उन सभी लोगों के आवेदन खारिज कर दिए हैं जो परिवार के साथ रहते थे और संन्यास की परंपरा का पालन नहीं कर सकते थे.