कर्ण मिश्रा, ग्वालियर। कहते हैं कि अगर कुछ कर गुजरने का जज्बा हो, तो आसमान छूने से आपको कोई ताकत नहीं रोक सकती। जहां पूरी दुनिया आज विश्व विकलांग दिवस मना रही है। वहीं भारत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आव्हान पर आज के दिन को विकलांग दिवस नहीं बल्कि दिव्यांग दिवस के रूप में मनाया जाता है।
दिव्यांगों के लिए हैं मिसाल
ग्वालियर शहर की हेमसिंह की परेड स्थित शासकीय सिविल अस्पताल संचालित है। यहां पदस्थ डॉ विक्रम सिंह देश के उन सभी दिव्यांगों के लिए मिसाल हैं जो अपनी दिव्यांगता के चलते खुद को असहाय मायूस और कमजोर समझते हैं। डॉ विक्रम सिंह हौसला, जज्बा और काम के प्रति समर्पण की जीती जागती मिसाल है। डॉ विक्रम सिंह शरीर से लगभग 90% दिव्यांग है। वह चलने फिरने उठने बैठने में भी असमर्थ हैं। यहां तक कि उन्हें हाथ चलाने में भी अब दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। लेकिन इन सबके बावजूद वह इस कठिन दौर में भी अपने डॉक्टरी पेशे के बरकरार रख समाज को स्वस्थ रखने में जुटे हैं। वह रोजाना समय पर अपनी ड्यूटी पर पहुंच जाते हैं। अपनी दिव्यांगता के चलते वह अकेले अस्पताल में बने अपने केविन तक नहीं पहुंच सकते इसलिए उन्होंने अपनी कार को ही अपना डॉक्टर चैंबर बना लिया है। वह अस्पताल के पास ही नीम के पेड़ के नीचे अपनी कार में बैठकर ही मरीजों का इलाज हर रोज करते हैं।
इलाज से संतुष्ट होते मरीज
इलाज कराने अस्पताल पहुंचने वाले मरीज भी डॉ विक्रम सिंह के इलाज से संतुष्ट होते है। उनका कहना है कि डॉक्टर साहब उनकी बीमारी को आराम से समझते है, फिर दवाई देते है। उनके इलाज से आसपास की एक बड़ी आबादी स्वास्थ्य लाभ ले पाती है। सिविल हॉस्पिटल के प्रभारी डॉ हेमन्त कुमार का कहना है कि डॉ विक्रम दिव्यांग होने के बावजूद कभी भी अपने कार्य के प्रति लापरवाह नहीं रहे, वह समय से पहले अस्पताल आते हैं और अस्पताल का समय पूरा होने के बावजूद भी रुकते हैं और मरीजों को इलाज देते हैं।
डॉ विक्रम सिंह के निर्देशों का पालन कर सरकारी अस्पताल के पर्चे पर जानकारी लिखने का काम अस्पताल के ही रिटायर्ड कर्मचारी रईस करते हैं। डॉ विक्रम मरीजों की परेशानी को सुनते हैं समझते हैं और फिर दवाइयां सहित जांच करने संबंधी जानकारी मरीज को बताते हैं। वहीं दूसरी ओर रईस डॉक्टर साहब के बताए हुए निर्देशों पर उसे पर्चे पर लिखते हैं। रईस का कहना है कि डॉक्टर साहब के कहने पर वह उनके साथ हर रोज उनकी कार में बैठकर उनकी मदद करते हैं। उनके जज्बे को देखकर उन्होंने भी प्राथमिक उपचार संबंधी सर्टिफिकेट कोर्स किया है।
डॉक्टर बनने का देखा था सपना
डॉ विक्रम सिंह का कहना है कि, वह बचपन से ही डॉक्टर बनने का सपना देखते थे। लेकिन शारीरिक दिव्यांगता के बावजूद के वह कभी कमजोर नहीं पड़े, उन्होंने ग्वालियर के गजराराजा मेडिकल कॉलेज से अपनी एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी की। इसके बाद साल 2013 में उनकी पोस्टिंग हेम सिंह की परेड स्थित सिविल अस्पताल में हुई। तभी से वह अपनी सेवाएं यहां दे रहे हैं। शुरुआत में वह अपनी व्हीलचेयर पर बैठकर खुद चलकर अस्पताल आते थे।
लेकिन बीच में हुए एक हादसे के बाद वह पूरी तरह से हाथ और पैरों से लाचार हो गए। इसके बाद उन्होंने अपनी गाड़ी में बैठकर इलाज करने का यह तरीका अपनाया। डॉ विक्रम सिंह का कहना है मरीजो के दर्द के आगे उनका दर्द कुछ भी नही है,जो भी दिव्यांग खुद को असहाय समझते हैं उन्हें खुद को कभी कमजोर नहीं समझना चाहिए, परेशानियां तो जीवन में बहुत आती है लेकिन अपनी हिम्मत बनाकर रखना चाहिए इसलिए प्रयास करते रहे तो कोई भी चीज असंभव नहीं होती है दिव्यांग सब कुछ कर सकते हैं।
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बहरहाल डॉ विक्रम सिंह के लिए यह पंक्ति बिल्कुल सटीक बैठती है,”जितना कठिन संघर्ष होगा, नाम उतना ही जबरदस्त होगा”।यही कारण है कि शरीर से दिव्यांग होने के साथ ही वह इंसानियत की भी जीती जागती मिसाल है।
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