रायपुर। चुनाव क्या-क्या नहीं करा देता है. कार्यकर्ता को नेता और नेता को कार्यकर्ता बना देता है. जिस नेता के कार्यकर्ता जिंदाबाद के नारे लगाते हैं वह नेता खुद नारा लगाता है. नेता झंडा उठाता है, नेता फिर नेता कहां रह जाता है. पता ही नहीं चलता कब नेता मोटर-कार से उतर सड़क पर आ जाता है.
इन दिनों चुनाव में अब यही सब रंग दिख रहे हैं. नेता सच में नेता जैसे नहीं आम आदमी सा दिख रहा है. नेता फिर मंदिर भी जाते हैं. नेता आरती भी गाते हैं. भगवान के सामने नेता भक्त बन जाते हैं. खैर नेताओं के रंग में आज सब रंग कांग्रेस के नेताओं की. उन नेताओं की जो अल्हड़-मलंग दिखे, उन नेताओं की जो राजनीति के बड़े सितारे हैं… बात उन नेताओं की जिन्होंने छत्तीसगढ़ के बाहर मध्यप्रदेश में झण्डे गाड़े हैं. लेकिन चुनाव है तो इन्हीं नेताओं के हाथ झण्डे भी हैं और इन्हीं नेताओं की जुबां जिंदाबाद के नारे भी.
कहानी है राजधानी रायपुर में जनसंवाद में दिखे नजारे की. इस नजारे को देख कर आम आदमी जान गए हैं कि चुनाव आ गया है…कार्यकर्ता भी मान गए हां अब नेताओं को उनकी जरूरत है. कहानी की शुरुआत नेताओं की भक्ति से. राधाकृष्ण का मंदिर था. मंदिर में कांग्रेस के दिग्गज हाथ जोड़े खड़े थे. भगवान से सत्ता सुख की मांग कर रहे थे. तभी प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भूपेश बघेल ने पूरी ताकत के साथ शंख बजाया. इस शंख के साथ जैसे लगा युद्धघोष हो गया है.
मंदिर से निकले तो रविन्द्र चौबे के हाथ कांग्रेसी झण्डे थे. चौबे जी झण्डा लहरा-लहरा बड़े जोर से जिंदाबाद के नारे लगा रहे थे. सड़क पर चुनाव प्रचार का पूरा जोर लगा रहे थे. ऐसे ही प्रयास कांग्रेस के तमाम दिग्गज करते दिखें. कुछ दूर आगे निकले तो अब बारी महंत जी की थी. महंत जी ने मौका हाथ से जाने न दिया. बालूसाय हाथ में आते ही बघेल को खिला दिया. बालूसाय की मिठास, एकता का संदेश सारे नेताओं को दे रहे थे विशेषकर महंत और बघेल को. उनके बीच कोई कड़वाहट नहीं है सब बालूसाय की तरह मीठा है. सच कहे तो चुनाव के बहाने आज इन आंखों ने बहुत कुछ देखा है.
आम आदमी के सामने फिलहाल खामोशी है, सवालों के साथ लिए हुए मुस्कुराहट है….फिलहाल अगर बोल है तो छत्तीसगढ़ी के ये शब्द अउ का भाय …..ये कुछ नोहय….चुनाव ताय.