गरियाबंद। जिले के आदिवासी सीट आरक्षित बिंद्रानवागढ़ विधान सभा से कई रोचक तथ्य जुड़े हुए हैं. विधायक की जीत व प्रत्याशी के गांव को जुड़े एक रोचक तथ्य है जो चुनाव के समय चर्चा का विषय बना जाता है. भाजपा ने ज्यादातर प्रत्याशी पदर जुड़े गांव से ही बनाए, कांग्रेस के विधायक भी पदर से रहे.

विधान सभा का पहला चुनाव 1962 में हुआ प्रजातांत्रिक सोसलिस्ट पार्टी से डेंडूपदर निवासी खामसिंह कोमर्रा पहले निर्वाचित विधायक बने. कांग्रेस प्रत्याशी श्यामाकुमारी को हरा कर कोमर्रा दूसरी बार 1967 में जनसंघ से विधायक बन गए. तीसरी बार 1972 में भी कोमर्रा मैदान में थे लेकिन इस बार उन्हें छुरा घराने से निर्दलीय प्रत्याशी रही पार्वती कुमारी शाह से हार का सामना करना पड़ा था.1977 में मुनगापदर से बलराम पुजारी जनसंघ के प्रत्याशी रहे जिन्होंने कांग्रेस की प्रत्याशी बन चुकी पार्वती शाह को हराया. 1980 के चुनाव में भाजपा अस्तित्व में आ चुका था. मूनगापदर के बलराम पुजारी को अपना प्रत्याशी बनाया. इस साल कांग्रेस ने अपना प्रत्याशी अमलीपदर के ईश्वर सिंह पटेल को अपना प्रत्याशी बनाया. लेकिन जीत भाजपा की हुई.

1985 के चुनाव ने कांग्रेस के प्रत्याशी रहे ईश्वर सिंह पटेल विधायक चुने गए थे. 1990 में बलराम पुजारी के सामने कांग्रेस ने मूंगझर के महेश्वर सिंह कोमर्रा को खड़ा किया था,इस बार फिर पदर वाले पुजारी विधायक चुने गए.1993, व 1998 के चुनाव ने पदर की उपस्थिति नही थी ,लेकिन उसके बाद फिर से पदर की दावेदारी रही. 2003 के चुनाव में भाजपा ने गोहरापदर के गोवर्धन मांझी को प्रत्याशी बनाया था, लेकिन वे 1993 में विधायक रह चुके कांग्रेस के ओंकार शाह से हार गए. 2008 में मूनगापदर के डमरूधर पुजारी, 2013 में गोहरा पदर के गोवर्धन मांझी,और2018 में फिर से डमरुधर पूजारी विधायक बन कर पादर के मिथक को कायम रखा.

भाजपा, अभेद्य गढ़ बताती है बिंद्रानवागढ़ को

इस सीट के साथ भाजपा का अभेद्य गढ़ का एक प्रमाणिक मिथक भी जुड़ा हुआ है.आंकड़े बताते हैं की अब तक हुए 13 चुनाव में केवल 3 बार कांग्रेस अपना विधायक बना सकी है.राजनीतिक विश्लेषक एवम वरिष्ठ अधिवक्ता सुशील कुमार बेहेरा बताते हैं कि भाजपा के बागी कांग्रेस के जीत की वजह बनती है.उन्होंने बताया कि 1985 में भाजपा के डमी प्रत्याशी धनाशाय नागेश ने बगावत किया,कांग्रेस के ईश्वर सिंह पटेल जीते.1993 में भाजपा के चरण सिंह मांझी महज 1331 मतों से व 2003 मे गोवर्धन मांझी महज 8 हजार मतों से बागियों के कारण हारी थी,दोनो बार कांग्रेस से कुमार ओंकार शाह विधायक चुने गए थे.भाजपा अपने सीटो के 4 केटेगिरी में इस क्षेत्र को ए केटेगिरी में रखी हुई है.

गिरशुल के ठाकुर गौकरण सिंह पहले मनोनित विधायक

आजादी के बाद विधायिका अस्तित्व में आने के बाद बिंद्रानवागढ के लिए 1952 में प्रथम विधायक के रूप में गिरशुल के गोकरण सिंह ठाकुर को मनोनित किया गया था, इस समय राजिम भी इन्ही के अधीन था.1957 में दो क्षेत्र में विभक्त किया गया,राजिम के सामान्य सीट से पंडित श्याम चरण शुक्ल व बिंद्रानवागढ़ एसटी आरक्षित सीट के लिए श्यामा कुमारी को कांग्रेस ने मनोनित किया था.

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