कर्ण मिश्रा, ग्वालियर। भगवान कृष्ण द्वापर युग में जब अपनी मुरली की तान छेड़ते थे तो सारी गाय उस संगीत को सुनकर दौड़ी चली आती, मुरली की तान में इतनी ताकत है कि इसे सुनकर गंभीर घायल और बीमार गाय स्वस्थ हो जाती है। जी हां ग्वालियर की आदर्श गौशाला में आने वाली गंभीर घायल और बीमार गोवंशों को इलाज के दौरान मुरली की धुन सुनाई जाती है। गौशाला के संत दावा करते हैं कि इस प्रयोग से 60 फीसदी से ज्यादा मरणासन्न गाय ठीक होकर अपने पैरों पर खड़ी हो जाती है। पढ़िए पूरी खबर…
भगवान कृष्ण का गायों से विशेष प्रेम था। कहा जाता है कि द्वापर युग में भगवान कृष्ण जब बांसुरी की धुन सुनाते थे तो गाय दौड़ कर उनके आसपास चली आती थी। गायों के लिए मुरली की धुन आज भी जिंदगी देने वाली साबित हो रही है। जी हां ग्वालियर नगर निगम की आदर्श गौशाला में करीब 9 हजार से ज्यादा गोवंश है। इस गौशाला में रोजाना 100 से ज्यादा गंभीर घायल और मरणासन्न गाय मौजूद रहती है। जिनको इलाज के जरिए नई जिंदगी देने की कवायद की जाती है।
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गायों की म्यूजिक थेरेपी
गौशाला स्थित औषधालय में इन बीमार घायल गंभीर मरणासन्न गायों का इलाज किया जाता है। वैसे तो डॉक्टर इन गायों का इलाज करने के लिए आते हैं, लेकिन इलाज के साथ ही इन गायों के लिए म्यूजिक थेरेपी भी इस्तेमाल की जाती है। साधक आते हैं और इलाज के दौरान इन गायों को मुरली की धुन सुनाते हैं।
मुरली की धुन से ठीक होने का दावा
गौशाला के प्रबंधक संत ने लल्लूराम डॉट कॉम से बात करते हुए दावा किया है कि इलाज के दौरान मुरली की धुन सुनने से गायों को बहुत लाभ हुआ है। यहां आने वाली गंभीर घायल मरणासन्न गायों में 60 प्रतिशत से अधिक गाय मुरली की धुन और इलाज से ठीक होकर अपने पैरों पर खड़ी हो जाती है।
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दवा के साथ दुआ
ग्वालियर की आदर्श गौशाला में इलाज के लिए रोजाना करीब 8 से 10 गाय बाहर से आती है। इनमें से आधी गाय घायल हालत में गंभीर और मरणासन्न जैसी रहती है। गायों के इलाज के लिए नगर निगम के डॉक्टरों की टीम तो आती ही है। साथ ही करीब एक दर्जन से ज्यादा सेवादार लोग हैं जो इन गायों की सेवा के लिए गौशाला में चले आते हैं। इन लोगों का कहना है कि गायों को दवा के साथ दुआ मिलने से वह जल्द ठीक हो जाती है और कहते हैं कि द्वापर युग में जब भगवान कृष्ण गाय कों मुरली सुनाते थे तो वह प्रसन्न हो जाती थी झूम उठती थी।
गौ सेवक अजय ने बताया कि आज के दौर में इन गंभीर घायल गायों को जब इलाज के दौरान बांसुरी सुनाई जाती है तो उन्हें एक सकारात्मक माहौल मिलता है और वह अपनी बीमारी से लड़ने में मजबूत होती है और जल्द ठीक हो जाती है। कहा जाता है कि दवा के साथ दुआ मिलती है, तो बीमारी जल्द ठीक हो जाती है यह सिर्फ इंसान ही नहीं बल्कि बेजुबानों के ऊपर भी लागू होती है। यही वजह है कि द्वापर से लेकर आज कलयुग में भी मुरली की तान सुनकर गाय ठीक हो रही है।
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