नई दिल्ली . विकास परियोजनाओं के चलते एक जगह से दूसरी जगह प्रत्यारोपित किए जाने वाले पेड़ों का जीवन खतरे में पड़ जाता है. प्रत्यारोपण के बाद केवल पैंतीस फीसदी पेड़ ही जिंदा बच पाते हैं. दिल्ली ट्री अथॉरिटी की हालिया बैठक में इसका खुलासा किया गया है. बैठक में प्रत्यारोपण के लिए ज्यादा कारगर तकनीकों को अपनाने का फैसला लिया गया.
राजधानी में अलग-अलग विकास कार्यों के लिए पेड़ों को काटे या हटाए जाने की जरूरत पड़ती रहती है. दिल्ली सरकार ने इस समस्या के समाधान के लिए दिसंबर, 2020 में वृक्ष प्रत्यारोपण नीति की शुरुआत की थी. इसमें पेड़ों को एक जगह से उखाड़कर दूसरी जगह पर लगाए जाने की व्यवस्था की गई. पेड़ों के प्रत्यारोपण के लिए चार एजेंसियों का पैनल नियुक्त किया गया है. बीते लगभग तीन साल में अब तक चार हजार से ज्यादा पेड़ों को एक जगह से हटाकर दूसरी जगह पर प्रत्यारोपित किया गया है. हालांकि, प्रत्यारोपित किए गए पेड़ों के बचने को लेकर सवाल खड़े किए जाते रहे हैं. इसे देखते हुए प्रत्यारोपण के बाद पेड़ों की स्थिति पर व्यापक सर्वे कराया गया. ट्री अथारिटी की पिछले सप्ताह हुई बैठक में अन्य मुद्दों के साथ-साथ वृक्ष प्रत्यारोपण की स्थिति की समीक्षा की गई थी.
बैठक में बताया गया कि प्रत्यारोपण के बाद केवल 35 फीसदी पेड़ ही बच पा रहे हैं. वृक्ष प्रत्यारोपण नीति लागू करने के लक्ष्य से यह काफी कम है. माना जा रहा था कि इस तरह से प्रत्यारोपित करके 80 फीसदी पेड़ों की जान बचाई जा सकेगी. प्रत्यारोपण के बाद पेड़ अगर लगातार दो गर्मी और दो सर्दी के सीजन में बचा रहता है तभी माना जाएगा कि प्रत्यारोपण सफल हुआ है. बैठक में प्रत्यारोपण के बाद पेड़ों के बचे रहने की दर को बेहद कम बताते हुए इसे बढ़ाने के लिए ज्यादा गुणवत्ता पूर्ण तकनीकों को अपनाने का फैसला लिया है.
अभी इस तक तकनीक को अपनाया जा रहा
विशेषज्ञों के मुताबिक, प्रत्यारोपण से पहले पेड़ के चारों तरफ एक गोल घेरे में गड्ढा खोद दिया जाता है. इसकी कई सारी जड़ें कट जाती हैं, जबकि कुछ मुख्य जड़ों को बचाए रखने का प्रयास किया जाता है. कटी हुई जड़ों की जगह पर ग्रोथ हारमोन्स लगाए जाते हैं. ताकि, प्रत्यारोपण के बाद जड़ों का विकास तेजी से हो. जबकि, पेड़ों की कई डाल भी काट दी जाती हैं ताकि पेड़ कम पोषण में भी जिंदा रहे. इसके बाद उसे वहां से निकालकर अन्य जगहों पर स्थापित किया जाता है.