रायपुर. राहुल गांधी को रायपुर से गए 24 घंटे से ज़्यादा का वक्त हो चुका है. लेकिन हर तरफ राहुल गांधी चर्चाओं में है. राहुल के बहाने छत्तीसगढ़ के कांग्रेस के नेता चर्चा में हैं. पार्टी के अंदर राहुल के दौरे के बाद कद छोटा हुआ तो कई नेताओं का बढ़ गया.

इनके बढ़े नंबर

राहुल गांधी से 3 साल पहले भूमिपूजन कराकर उन्हीं के हाथों लोकार्पण कराकर भूपेश ने शानदार नेतृत्व का परिचय दिया है. इससे पहले कांग्रेस भवन करीब 80 साल पहले रायपुर में बना था. भूपेश ने इस मामले में अपने कुशल रणनीतिकार होने का सबूत पेश किया. इस कार्यक्रम के बाद बाकी कांग्रेस नेताओं की तुलना में भूपेश के नंबर आलाकमान की नजर में जरुर कुछ बढ़ गए होंगे.

 

जिस शख्स की देखरेख में ये भवन निर्मित हुआ उसका कद भी ज़्यादा बढ़ा. इसके निर्माण का जिम्मा पार्टी के कोषाध्यक्ष रामगोपाल अग्रवाल के ऊपर था. कांग्रेस इसका उद्घाटन 20 अगस्त को राजीव गांधी की जंयती पर कराना चाहती थी. लेकिन व्यस्तता के चलते 10 अगस्त को इसके उद्घाटन की तारीख तय हुई. रामगोपाल अग्रवाल के सामने राहुल गांधी का वक्त मिलने के बाद तय समय में इसका काम पूरा कराने की चुनौती थी.  रामगोपाल अग्रवाल ने खड़े होकर काम को अपनी देख-रेख में पूरा कराया. इसके अलावा जिस तरीके से कार्यकर्ताओं से फंड जुटाने का मैकेनिज्म उन्होंने विकसित किया, उसने दिखा दिया कि वे एक मैनेजर की भूमिका में कितने सक्षम है. ये काम उन्होंने तब किया जब पार्टी में संसाधनों का टोटा है. सत्ता से पार्टी 15 साल से दूर है. उद्घाटन के मौके पर भूपेश बघेल ने उनकी राहुल गांधी के सामने पीठ थपथपाई. राहुल गांधी ने उनका अभिवादन किया. कई लोग कहते हैं कि रामगोपाल नहीं होते तो कांग्रेस का भवन नहीं बन पाता.

 

इस कड़ी में अगला नाम मेयर प्रमोद दुबे का है. प्रमोद दुबे ने स्थानीय स्तर पर संसाधनों को जुटाने में अहम भूमिका निभाई. आखिरी समय में जब भवन को तयशुदा वक्त में पूरा करना था तो मोर्चा प्रमोद दुबे ने संभाला. उन्होंने सारे संसाधन और व्यावहारिक दिक्कतों को स्थानीय स्तर पर दूर किया.

 

 

 

 

भवन निर्माण से जुड़े इन नेताओं के अलावा एक नेता का कद पार्टी में अचानक बढ़ गया. ये नेता पार्टी में व्यापारियों के बीच सबसे बड़े नेता के तौर पर उभरा. अर्से से शहर कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष इंदरचंद धाड़ीवाल अलग-थलग पड़े थे. बाइपास सर्जरी के बाद सक्रिय राजनीति एक तरह से उन्होंने छोड़ दी थी लेकिन अचानक उन्होंने ऐसा काम कर दिखाया जिसकी कांग्रेस को अर्से से ज़रुरत थी. दरअसल, राहुल के दौरे से पहले कांग्रेस के प्रभारी महासचिव से व्यापारियों से बातचीत का ज़िम्मा व्यापार प्रकोष्ट के अध्यक्ष कन्हैया अग्रवाल को दिया गया. लेकिन कन्हैया के कार्यक्रम में ज़्यादातर व्यापारी वही जुटे जो कांग्रेस से ताल्लुक रखते हैं.

इस बात को लेकर प्रदेश की स्टेट लीडरशिप फ्रिकमंद थी. अगर राहुल गांधी के कार्यक्रम में उम्मीद के मुताबिक व्यापारी नहीं जुटते तो पार्टी की भद्द पिट जाती. लिहाज़ा पार्टी ने इंदरचंद धाड़ीवाल को ज़िम्मा सौंपा. धाड़ीवाल को राहुल के कार्यक्रम से तीन दिन पहले पार्टी कार्यालय में कोषाध्यक्ष रामगोपाल अग्रवाल की तरफ से  बुलावा आया. रामगोपाल अग्रवाल ने उनसे कहा कि 3 दिन बाद राहुल गांधी का कार्यक्रम है जिसमें सभी व्यापारिक संगठन को इकट्ठा करना है. पार्टी में ये काम आप ही कर सकते हैं.

धाड़ीवाल इसके पहले जनसंवाद कार्यक्रम के दौरान सदर बाज़ार में पार्टी नेताओं की एक छोटी बैठक वहां के व्यापारियों से करा चुके थे. लिहाज़ा पार्टी ने अपने पुराने व्यापारी नेता को याद किया. धाड़ीवाल ने भी निराश नहीं किया. करीब 175 कार्ड उन्होंने फौरन छपवाए और कम समय में न सिर्फ रायपुर बल्कि प्रदेश के कई जगहों से व्यापारियों को बुला लिया. व्यापारियों के साथ राहुल गांधी की ये मीटिंग बहुत ही सफल रही. ख़बर है कि धाड़ीवाल को जल्द ही इसका ईनाम मिलने वाला है.

इनके नंबर हुए कम

लेकिन इस दौरे ने पार्टी के कई नेताओं का कद घटा दिया. सबसे ज़्यादा नुकसान पार्टी के संचार विभाग के अध्यक्ष शैलेष नितिन त्रिवेदी को हुआ. उनके रवैये से पत्रकारों की बिरादरी का बड़ा तबका नाराज़ हुआ. इसका खामियाजा पार्टी को भी उठाना पड़ा. उनके एक कथित बयान से पत्रकारों का वो तबका नाराज़ है जो दिन-रात कांग्रेस बीट की ख़बरें कवर करता है. कांग्रेस के एक बड़े नेता ने नाम न लिखने की शर्त पर बताया कि राहुल गांधी के कार्यक्रम के कॉर्डिनेशन नहीं मिलने से वो तनाव में थे जिसके बाद वो काफी तनाव में आ गए थे.

 

इसके अलावा पानी की अव्यवस्था की जानकारी उन्होंने शैलेष नितिन त्रिवेदी को दी तो शैलेष ने कथित रुप से अपना पल्ला झाड़ लिया. महिला मीडियाकर्मी उनके इस रवैये से आहत हैं. कुछ पत्रकार राहुल गांधी से न मिलाए जाने से और कुछ उनके कार्यक्रम में न बुलाए जाने से नाराज़ हैं.

 

इसके अलावा पार्टी के व्यापार प्रकोष्ठ के प्रदेश अध्यक्ष कन्हैया अग्रवाल को कार्यक्रम में नहीं बुलाए जाने से ये चर्चा है कि पार्टी में उनके नंबर कटे हैं. पार्टी नेतृत्व व्यापारिक नेता के तौर पर उनके कामकाज से संतुष्ट  नहीं है.