बारीपदा. समाज में व्याप्त रूढ़ीवादी सोच में ऐसी मान्यता है कि महिलाएं श्मशान नहीं जाती हैं या दाह संस्कार में भाग नहीं लेती हैं, लेकिन मयूरभंज जिले के बारीपदा ब्लॉक के हटिकोट गांव की लक्ष्मी इस भ्रम को तोड़ने में कामयाब रही हैं. लक्ष्मी पिछले 12 वर्षों से बारीपदा बरुनी श्मशान घाट पर दाह संस्कार कर रही हैं. वह अब तक 3,000 से अधिक शवों का अंतिम संस्कार कर चुकी हैं.

पति और 5 छोटे बच्चों को लेकर लक्ष्मी की दुनिया है. उनके अनुसार, उनके पति को श्मशान सेवा संघ द्वारा दाह संस्कार की जिम्मेदारी सौंपी गई थी, इसलिए वह भी बीच-बीच में श्मशान घाट पर आती-जाती रहती थी. पहले तो दाह संस्कार देखकर डर लगता था, लेकिन जब उन्हें अपने पति का यह काम करना पड़ा तो वह बिल्कुल भी परेशान नहीं हुई. इसके बजाय उन्होंने इसे अपना कर्तव्य माना और हमेशा के लिए दाह-संस्कार का काम अपने हाथ में ले लिया. अब तो यह आदत बन गयी है.

लक्ष्मी ने कहा, भले ही इस काम में वेतन कम है, लेकिन लोगों की अंतिम यात्रा के दौरान उनके साथ खड़े रहना उन्हें बहुत संतुष्टि देता है. कभी-कभी मृतक के परिजन अपनी इच्छा से लक्ष्मी को कुछ पैसे दे देते हैं. लक्ष्मी ने कहा कि उन्होंने कभी किसी से दाह संस्कार के लिए एक पैसे नहीं मांगे, इसलिए, न केवल दाह संस्कार, बल्कि गोदाम से मिल तक लकड़ी लाना, मिल में लकड़ी की व्यवस्था करना, सभी काम करती हैं. श्मशान सेवा संघ के अध्यक्ष विजय कुमार लेंका और सदस्य अजीत कुमार दास ने कहा कि लक्ष्मी जैसी महिला को, जो इतनी बहादुरी का काम आसानी से कर सकती है, हम जितना भी सलाम करें, कम होगा.