Column By- Ashish Tiwari , Resident Editor

कलेक्टर का काॅलर

सूखा पत्ता भी बस्तर जाकर हरियाली ओढ़ आता है. मगर तबादले में किसी अफसर को सरगुजा भेज दिया जाए तो इसे लेकर नजरिया मैदानी इलाकों सा ही बनता है. अब सरगुजा, बस्तर तो है नहीं, बावजूद इसके कुछ अफसर हैं, जो वहां जाकर बस्तर पैटर्न पर काम करते दिखते हैं. सरगुजा के एक जिले में ऐसे ही कलेक्टर पहुंच गए. सुदूर बस्तर के एक जिले की कलेक्टरी का अनुभव था. सरगुजा भी बस्तर सा लगने लगा. बस्तर में जो करते थे, यहां भी करने लगे. जिला हाथी प्रभावित था. हाथियों को ही साधन मान लिया. डीएफओ को बुलाया. हाथियों के लिए कॉलर आईडी खरीदी का प्रस्ताव बनाने कह दिया. यह भी बताया कि खरीदी किससे करनी है. डीएफओ रोड़ा बन गए. तकनीकी अड़चन का पहाड़ा पढ़ दिया. कलेक्टर तो बस्तर का तौर तरीका समझते थे, जहां कागजों पर मीनारें तन जाती थी. जाहिर था उन्होंने नया रास्ता ढूंढ लिया. ट्राइबल डिपार्टमेंट के असिस्टेंट कमिश्नर खरीदी का जरिया बने. कॉलर आईडी खरीद ली गई. जिन हाथियों को जंगली, आतंकी कहने से अफसरशाही थोड़ा भी गुरेज नहीं कर करती, उन हाथियों को बगैर विभागीय मदद के कॉलर आईडी पहना दी गई. ना ट्रेंकुलाइज किया गया और ना ही दूसरी विशेषज्ञता की जरूरत पड़ी. बताते हैं कि कागजों में हाथियों को करीब दो करोड़ रुपए की कॉलर आईडी पहना दी गई. कुछ अरसा बाद कलेक्टर का तबादला हो गया. वह कलेक्टर नहीं रहे, मगर उनकी कॉलर अब भी ऊंची है.. हाथी भी वैसे ही हैं, जैसे पहले थे..

शीतयुद्ध

है तो जंगल विभाग, मगर यहां सब कुछ मंगल हो यह जरूरी नहीं. अब इस मामले को समझिए. कई सीनियर अफसरों को सुपरसीड करते हुए 1990 बैच के आईएफएस श्रीनिवास राव को राज्य शासन ने पहले प्रभारी पीसीसीएफ बनाया और बाद में पीसीसीएफ प्रमोट होते ही हेड ऑफ फॉरेस्ट. सीनियर अफसर एक-दूसरे का मुंह ताकते रह गए. अब इन अफसरों में से एक ने हिम्मत जुटाकर सूचना का अधिकार लगा दिया है. ये अफसर हैं 1988 बैच के आईएफएस सुधीर अग्रवाल. सुधीर ही सीनियरिटी में पहले पायदान पर थे. यदि श्रीनिवास की लॉटरी ना खुलती, तो संभवतः पीसीसीएफ यही बनते. बहरहाल सूचना का अधिकार लगाते हुए सुधीर अग्रवाल ने श्रीनिवास राव को हेड आफ फॉरेस्ट बनाए जाने की प्रक्रिया से संबंधित सभी दस्तावेज मांगे हैं. इधर सुधीर अग्रवाल ने सूचना का अधिकार लगाया, उधर उनके अधिकार क्षेत्र में घुसपैठ हो गई. एक आदेश निकालकर राज्य के अभयारण्यों का कंट्रोल पीसीसीएफ(हाफ) को मिल गया. अब स्थिति यह है कि अरण्य भवन में शीर्ष अफसरों के बीच टकराव के हालात बन गए हैं. इस टकराव के बीच चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन का जिम्मा संभाल रहे सुधीर अग्रवाल ने सीधे एक चिट्ठी शासन को लिख दी है. इस चिट्ठी में उन्होंने अपने अधीन एक रेंजर की पदस्थापना किए जाने की मांग की है. सुधीर अग्रवाल और श्रीनिवास राव का दफ्तर एक ही बिल्डिंग में है. सामान्य बातचीत में यह प्रस्ताव दिया जा सकता था, लेकिन नौबत शासन को चिट्ठी लिखने तक की आ गई. इससे समझा जा सकता है कि यह शीतयुद्ध का शंखनाद है. वैसे बताते चले कि महाराष्ट्र में कुछ इस तरह की ही पदस्थापना कर दी गई थी. सीनियर आईएफएस अफसर ने कैट का रुख किया और कैट ने सरकार का आदेश पलट दिया. मुमकिन है कि सूचना के अधिकार से मिले दस्तावेजों को आधार बनाकर सुधीर अग्रवाल भी कैट का रुख अख्तियार कर ले. फिलहाल खतरे का बादल मंडरा रहा है. अब यह बादल बरसेगा या फिर हवा में बह जाएगा, फिलहाल यह कहना मुश्किल है.

एक मुठ्ठी चावल

महादेव एप की चर्चा इन दिनों जोरों पर है. चर्चा खत्म ही नहीं हो रही. नई-नई बातें चर्चा में उठती दिखती हैं. राजनीतिक रुप से घिरे लोगों को लेकर चर्चाओं की कोर्ट कचहरी चलती रहेगी. मगर महादेव एप में जिन पुलिस अफसरों के नाम आए हैं, उनके होश फाख्ता हो गए हैं. पत्रकारों की एक टोली इस पर चर्चा कर रही थी. इस बीच एक ने कहा कि- एक सीनियर पुलिस अफसर की दिन रात की नींद हराम हो गई है. उनका अधिकांश वक्त पूजा पाठ में लग रहा है. ईश्वर के प्रति यकायक उनकी आस्था बढ़ गई है. पिछले दिनों शहर के बाहरी हिस्से में रहने वाले एक पंडित से मिल आए. कहते हैं कि पंडित जजमान के हाथ लाए गए एक मुठ्ठी चावल से उसका अगला-पिछला सब कुछ बता देता है. अफसर एक मुठ्ठी चावल लेकर पंडित के पास पहुंचे थे. बातचीत का मजमून मालूम नहीं. फिलहाल राहत की बात है.

दे दना दन

एक प्राधिकरण के अध्यक्ष नियम-कानून के इतने ऊपर उठ चुके हैं कि अब उन्हें जमीन दिखाई नहीं पड़ती. अध्यक्ष महोदय हवा में गोते लगा रहे हैं. जमीन पर तब आते हैं जब उन्हें एहसास कराया जाता है कि भाई आप नेता है. जनता के बीच रहिए. बहरहाल प्राधिकरण में किसी प्रस्ताव को स्वीकृत कराने की अपनी प्रक्रिया है. मगर अध्यक्ष ने दे दना दन स्टाइल में खुद ही लाखों रुपए के कई काम मंजूर कर लिए. कुछ-कुछ लाख करते करते स्वीकृत राशि करोड़ों में जा पहुंची है. अब अफसर उनके कारनामों की फाइल बना रहे हैं. पता नहीं कब इसकी जरूरत पड़ जाए. चुनाव के पहले या चुनाव के बाद..

लिहाज खत्म..

एक वक्त था पुलिस में लिहाज बाकी था. अब खत्म हो गया है. अफसरों ने अपनी ट्रेनिंग में क्राइम प्रिवेंशन की थ्योरी पढ़ी थी. स्कूल में पढ़े किसी मैथेमेटिक्स फार्मूले की तरह अफसर इसे भूल गए. अफसर ये भूल गए कि अपराधियों से मिल जाना, खुद अपराधी हो जाना होता है. पुलिस बिरादरी की एक पूरी पीढ़ी जाने अनजाने अपराधी बन रही है. दिक्कत इस बात की है कि अपराधी हो जाने का ख्याल भी उनके मन में नहीं बस रहा. हाल फिलहाल की बात है. जुएं के एक बड़े फड़ पर पुलिस ने दबिश दी. गणेश उत्सव के बंदोबस्त के बीच पुलिस फड़ पर जा पहुंची. कुछ बड़े जुआरी जुआं खेलते पकड़े गए. पुलिस ने बड़ी रकम जप्त कर ली. डीएसपी स्तर के एक अफसर थाने के अपने कमरे में फड़ चलाने वाले शख्स के साथ गुफ्तगू करने लगे. टीआई समेत बाकी पुलिसकर्मी बाहर कर दिए गए. अफसर अपनी मेज पर नोटों की सेज सजाकर एक-एक नोट गिनने लगा. कैल्कुलेशन खत्म हुआ. एफआईआर में बरामद रकम आधी कर दी गई. यकीनन ये कोई नई बात नहीं. बात सिर्फ इतनी नई है कि पुराने दौर के पुलिस अफसरों में लिहाज था. अपने अधीनस्थ कर्मियों की थोड़ी चिंता कर लेते थे.

कांग्रेस के ‘परवानी’?

चर्चा में दम है. कहा जा रहा है कि व्यापारियों के नेता अमर परवानी कांग्रेस की टिकट पर चुनावी मोर्चे पर खड़े होंगे. रायपुर उत्तर सीट से उनकी दावेदारी सबसे मजबूत आंकी गई है. ऐसा हुआ तो दो चक्के में घूम-घूम कर सुर्खियां बटोरने वाले कुलदीप जुनेजा का पत्ता कट जाएगा. पिछले दिनों अमर परवानी का जन्मदिन भी था. रायपुर उत्तर विधानसभा के इलाके में बधाई संदेश वाली तख्तियां सड़कों पर जिस तरह से टांगी गई, उससे लोगों को यह जन्मदिन की बधाई कम चुनावी प्रत्याशी का प्रचार ज्यादा लग रहा था. व्यापारी समुदाय में अमर परवानी लोकप्रिय चेहरा है. कहा जाता है कि पूर्व मुख्यमंत्री डाॅक्टर रमन सिंह के साथ उनकी अच्छी ट्यूनिंग रही है. इसकी वजह से बीजेपी के स्वाभाविक दावेदारों में परवानी के नाम का डर हमेशा रहा है. अब जब चर्चा कांग्रेस में जाने की है, तो ऐसे नेता थोड़ी राहत महसूस कर सकते हैं.

एमपी का फार्मूला

जे पी नड्डा, अमित शाह, बी एल संतोष, ओम माथुर, नितिन नबीन समेत आला नेताओं की मौजूदगी में हुई बीजेपी की बैठक में एक फार्मूला खींच दिया गया है. एमपी की तर्ज पर राज्य के सांसद- पूर्व सांसद को चुनावी मोर्चे पर लगाया जाएगा. पहली सूची में विजय बघेल को पाटन से प्रत्याशी बनाकर यह संकेत पहले ही दिया जा चुका है. बताते हैं कि केंद्रीय मंत्री रेणुका सिंह को भरतपुर-सोनहट से टिकट मिल सकता है. भरतपुर-सोनहट उनका मायका है. कुनकुरी से विष्णुदेव साय, पत्थलगांव से गोमती साय, बिलासपुर, लोरमी या कोटा से अरुण साव, दुर्ग शहर या वैशालीनगर से सरोज पांडेय को टिकट दी जा सकती है. रायपुर सांसद सुनील सोनी के नाम पर भी चर्चा तेज है कि उन्हें रायपुर उत्तर या दक्षिण से चुनाव लड़ाया जा सकता है. ऐसी स्थिति में कई बड़े नेता प्रभावित हो सकते हैं. ऐसे में उन नेताओं को लोकसभा चुनाव लड़ाने की सांत्वना दी जा सकती है. दिल्ली में पीएम मोदी की मौजूदगी में होने वाली बीजेपी संसदीय बोर्ड की बैठक में दूसरी सूची पर मुहर लगाई जाएगी. कहा जा रहा है कि सीटिंग एमएलए वाली सीटों के अलावा चार अन्य सीटों को छोड़कर बाकी सभी सीटों के लिए प्रत्याशियों के नाम का ऐलान कर दिया जाएगा.

टिकट का टंटा

कांग्रेस में टिकट का टंटा खत्म नहीं हो रहा. बैठक पर बैठक जारी है. अब सुना जा रहा है कि कांग्रेस करीब 40 सीटों पर नया चेहरा उतारेगी, इनमें से 22 ऐसी सीट हैं, जहां 2018 के चुनाव में पार्टी को हार का सामना करना पड़ा था. इस लिहाज से करीब-करीब 20 सीटिंग एमएलए की टिकट कटना तय माना जा रहा है. हालांकि कांग्रेस इसमें भी एक फार्मूला आ सकती है. सीटिंग एमएलए के परिवार के किसी दूसरे सदस्य को टिकट देकर चेहरा बदला जा सकता है और संभावित बगावत को पार्टी रोक भी सकती है.