
गोरखपुर. गोरक्षपीठाधीश्वर व मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि एक संत का अपना व्यक्तिगत जीवन नहीं होता. वह देश व धर्म के लिए समर्पित होता है. देश और समाज की आवश्यकता ही संत की प्राथमिकता होती है. महंत दिग्विजयनाथ ऐसे ही संत थे. उन्होंने अपने समय की चुनौतियों के लिए संघर्ष किया.
सीएम योगी युगपुरुष ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ महाराज की 54वीं और राष्ट्रसंत ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ महाराज की 9वीं पुण्यतिथि के उपलक्ष्य में आयोजित साप्ताहिक श्रद्धाजंलि समारोह के अंतर्गत सोमवार (आश्विन कृष्ण तृतीया) को महंत दिग्विजयनाथ की पुण्यतिथि पर अपनी भावाभिव्यक्ति कर रहे थे. उन्होंने कहा कि महंत दिग्विजयनाथ का संबंध राजस्थान के मेवाड़ के उस राणा कुल से है, जिसने देश के स्वाभिमान के लिए लड़ते हुए अपना जीवन मातृभूमि को समर्पित कर दिया. उन्होंने यहां पर अनेक धार्मिक राजनीतिक अनुष्ठानों से जुड़कर कर समाज के लिए कुछ नया करने का प्रयास किया.
शिक्षा पर रहा ब्रह्मलीन महंत का सर्वाधिक जोर
मुख्यमंत्री ने कहा कि हमारे ऋषि मुनियों के आश्रमों में विज्ञान के शोध होते थे इसलिए राक्षसगण उस पर आक्रमण करते थे. महंत दिग्विजयनाथ ने गोरक्षपीठ से जुड़कर सबसे पहले शिक्षा पर जोर देते हुए महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद की स्थापना की. युवा पीढ़ी राष्ट्रभावना से ओत प्रोत हो, इसके लिए उन्होंने अपने संस्थानों का विस्तार किया. उनके द्वारा स्थापित शिक्षा परिषद एक विश्वविद्यालय की स्थापना में योगदान देने के साथ एक अपना विश्वविद्यालय स्थापित कर चुका है. साथ ही चार दर्जन शिक्षण प्रशिक्षण संस्थानों की स्थापना करके राष्ट्र व समाज से जुड़े ज्वलंत चुनौतियों के लिए युवा पीढ़ी को तैयार करने का काम कर रहा है.
नेतृत्व के साथ कदम मिलाकर चलें
मुख्यमंत्री ने कहा कि यह एक नया भारत है. इसमें नेतृत्व का ही नहीं, हम सभी का दायित्व है कि हम देश के नेतृत्व के साथ कदम से कदम मिलाकर चलें. इसके लिए हमें शिक्षा पर ध्यान देना होगा. राष्ट्रीय शिक्षा नीति इसके लिए एक संकल्प पत्र है. इसके आधार पर हम देश के साथ-साथ अपने जीवन के सपनों को साकार कर सकते हैं. महंत दिग्विजयनाथ न केवल शिक्षा में ही अपितु राजनीति के जरिए राष्ट्र के अभियान से जुड़े. उन्होंने बिखरे हुए नाथ योगियों को संगठित करने के लिए योगी महासभा का गठन किया. देश के उत्थान के लिए उन सभी आंदोलनों से जुड़कर उन्होंने कार्य किया, जिनके द्वारा समाज व राष्ट्र नई ऊंचाइयों को प्राप्त कर रही हो. सीएम ने कहा कि अपने पूर्वजों के लिए हम भारतीय पूरे 15 दिन कृतज्ञता ज्ञापित करते हैं. इसलिए हमसे अच्छा अपने महापुरुषों के प्रति भाव को कौन समझ सकता है. हम उनके मूल्यों व आदर्शों पर चलते हुए उनको विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं.
योग्य गुरु थे महंतद्वय – जगद्गुरु रामानंदाचार्य
इस अवसर पर जगद्गुरु रामानंदाचार्य डॉ. राजकमल दास वेदांती महाराज ने कहा कि ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ महाराज एवं महंत अवद्यनाथ महाराज, दोनों ही योग्य गुरु रहे. किसी व्यक्ति में योग्यता देखते ही पहचान लेते थे. अयोध्या से पधारे महंत कमलनयन दास महाराज ने कहा कि ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ व ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ ने रामजन्म भूमि और हिंदुत्व के लिए आगे आकर नेतृत्व किया. आज उनके संकल्प और तपस्या के फलस्वरुप प्रभु श्रीराम का भव्य मंदिर बन रहा है. यह उनके लिए सच्ची श्रद्धांजलि है. जूनागढ़ गुजरात से पधारे महंत शेरनाथ बापू ने कहा कि पूज्य महंतद्वय ने शिक्षा तथा चिकित्सा के माध्यम से समाज में अदभुत योगदान दिया. जबलपुर से पधारे महंत नरसिंह दास जी महाराज ने कहा कि जिस दिन राजसत्ता के शिखर पर धर्म सत्ता बैठेगी उसी दिन भारत विश्व गुरु बन जाएगा. ब्रह्मलीन युगपुरुष महंत दिग्विजयनाथ महाराज एवं राष्ट्रसंत ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ ने राष्ट्र को उन्नत करने के लिए शिक्षा व स्वास्थ्य सहित सभी आयामों पर कार्य किया.
गाजियाबाद से पधारे स्वामी नारायण गिरी महाराज ने कहा कि पूज्य दिग्विजयनाथ महाराज ने शिक्षा के क्षेत्र में अलख जगाई और पूज्य अवेद्यनाथ सामाजिक समरसता के साथ हिंदू जागरण के लिए प्रयास करते रहे. आज योगी आदित्यनाथ के रूप में दिग्विजयनाथ का दर्शन होता है जो कि उनके सपनों को साकार कर रहे हैं. अयोध्या से पधारे जगतगुरु स्वामी दिनेशाचार्य महाराज ने कहा कि गुरु की महिमा का वर्णन करना कठिन होता है. मां अपनी गोद में बैठाती है, पिता कंधों पर बैठाता है, किंतु गुरु सर्वप्रथम अपने शिष्य को स्वयं के पैरों पर खड़ा होना सिखाता है.
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महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद के अध्यक्ष प्रो उदय प्रताप सिंह ने कहा कि महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद की यात्रा 1932 से प्रारंभ हुई. धीरे-धीरे हम आगे बढ़ते गए आज लगभग पांच दर्जन संस्थाएं हो गई हैं, जो शिक्षा के क्षेत्र में विभिन्न आयामों से संबंधित है. इन 91 वर्षों में परिषद द्वारा दो विश्वविद्यालय की स्थापना हुई. आयुष विश्वविद्यालय की स्थापना में हमारा सहयोग है. उन्होंने कहा कि ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ ने मैकाले की शिक्षा नीति से लड़ाई लड़ने के लिए इसकी स्थापना की, बाद में वामपंथी विचारधारा से भी शिक्षा परिषद ने लड़ाई लड़ी. आज हम नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति को आदर्श रूप में लागू करने के लिए प्रयासरत है. राष्ट्रसंत ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ महाराज ने इस शिक्षा परिषद को अपेक्षाओं के अनुरुप पुष्पित व पल्लवित किया.
इस आयोजन में कई गणमान्य लोग उपस्थित थे.
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