नई दिल्ली . दिल्ली उच्च न्यायालय ने विधानसभा अनुसंधान केंद्र में फेलो के रूप में लगे पेशेवरों की सेवाओं को जारी रखने के अपने अंतरिम निर्देश को रद्द कर दिया है. 21 सितंबर को कोर्ट से इन फेलो को राहत मिली थी.
इनका अनुबंध विधानसभा सचिवालय द्वारा समाप्त कर दिया गया था. न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद की पीठ ने कहा कि उच्चतम न्यायालय द्वारा पूर्व के 5 जुलाई के समाप्ति पत्र पर रोक लगाने से इनकार करने के बाद उच्च न्यायालय के अंतरिम आदेश का कोई मतलब नहीं रह जाता है. पीठ ने कहा कि यह अदालत अपने 21 सितंबर 2023 के अंतिरम आदेश को हटा रही है.
पीठ ने साथ ही का कहा कि हालांकि याचिकाकर्ता के पास उचित स्पष्टीकरण प्राप्त करने के लिए उच्चतम न्यायालय का रुख करने का रास्ता है. पीठ का आदेश विधानसभा सचिवालय और अन्य प्राधिकारियों के एक आवेदन पर आया, जिसमें 21 सितंबर को पारित अंतरिम आदेश को इस आधार पर हटाने की मांग की गई थी कि मामला उच्चतम न्यायालय के समक्ष लंबित है.
उच्च न्यायालय में चुनौती दी गई थी न्यायमूर्ति प्रसाद ने कहा कि 5 जुलाई के पत्र को दिल्ली सरकार द्वारा केंद्र के अध्यादेश के खिलाफ अपनी याचिका के हिस्से के रूप में उच्चतम न्यायालय के समक्ष विशेष रूप से चुनौती दी गई थी. याचिकाकर्ता का तर्क था कि उच्च न्यायालय इस मुद्दे पर गौर कर सकता है क्योंकि उच्चतम न्यायालय द्वारा कोई आदेश पारित नहीं किया गया है. ऐसे में उच्च न्यायालय सुनवाई जारी रख सकता है.
437 सलाहकारों के अनुबंध को समाप्त किया था
उपराज्यपाल ने दिल्ली सरकार के तहत वैधानिक निकायों या दिल्ली विधानसभा में लगे 437 सलाहकारों के अनुबंध को समाप्त कर दिया था. 21 सितंबर को उच्च न्यायालय ने कई बर्खास्त फेलो की याचिका पर निर्देश दिया था कि दिल्ली असेंबली रिसर्च सेंटर के साथ उनकी सेवाएं 6 दिसंबर तक जारी रहेंगी और उन्हें वजीफा का भुगतान किया जाएगा.
सर्विस और अन्य विभागों ने रोक पर जताया एतराज
दिल्ली विधानसभा सचिवालय, सर्विस विभाग और वित्त विभाग ने अर्जी दायर कर हाई कोर्ट से अपने 21 सितंबर के आदेश में संशोधन और रोक हटाने का अनुरोध किया. तर्क यह दिया कि चूंकि मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है, ऐसे में हाई कोर्ट का याचिकाकर्ताओं को सर्विस से निकाले जाने से प्रतिवादियों को रोकना 5 जुलाई के आदेश पर रोक के समान ही है, जिसमें दखल देने से सुप्रीम कोर्ट पहले ही इनकार कर चुका है.