रायपुर. अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति के अध्यक्ष व नेत्र विशेषज्ञ डॉ. दिनेश मिश्र ने लक्ष्मीनारायण कन्या शाला रायपुर में व्याख्यान देते हुए कहा विज्ञान की शिक्षा एवं प्रौद्योगिकी के कारण देश में वैज्ञानिक उपलब्धियां बढ़ रही हैं. शिक्षा के क्षेत्र में भी तकनीक का प्रभाव बढ़ा है. ऑन लाइन पढ़ाई, इंटरनेट से वर्क फ्रॉम होम का भी चलन कोरोना काल से पर्याप्त विकसित हुआ है, वहीं दूसरी ओर वैज्ञानिक उपकरणों, अनुसन्धानों, सुविधाओं को अपनाने के बावजूद भी वैज्ञानिक दृष्टिकोण न विकसित होने के कारण आज भी भी देश के अनेक हिस्सों में अंधविश्वास और सामाजिक कुरीतियों के चलते अक्सर अनेक निर्दोष लोगों को प्रताड़ना का शिकार होना पड़ता है, जिससे निदान के लिए आम जन में वैज्ञानिक दृष्टिकोण के विकास की अत्यंत आवश्यकता है. इसलिए आवश्यक है कि विज्ञान पढ़ें, समझें, और वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाएं.

डॉ. दिनेश मिश्र ने कहा आपसी चर्चा, तर्क और विश्लेषण वैज्ञानिक दृष्टिकोण के लिए जरूरी है. वैज्ञानिक दृष्टिकोण का सम्बंध तर्कशीलता से है, वैज्ञानिक दृष्टिकोण हमारे अंदर अन्वेषण की प्रवृत्ति विकसित करता है,तथा विवेकपूर्ण निर्णय लेने में सहायता करता है, इस लिए वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास होना हमारे संविधान का महत्वपूर्ण अंश है. वैज्ञानिक दृष्टिकोण के अनुसार वही तथ्य ग्रहण करने योग्य है जो प्रयोग और परिणाम से सिद्ध की जा सके.

डॉ. दिनेश मिश्र ने कहा कि आज भी कुछ लोग अंधविश्वास के कारण हमेंशा शुभ-अशुभ के फेर में पड़े रहते है. यह सब हमारे मन का भ्रम है. शुभ-अशुभ सब हमारे मन के अंदर ही है. किसी भी काम को यदि सही ढंग से किया जाए, मेहनत, ईमानदारी से किया जाए तो सफलता जरूर मिलती है. उन्होंने कहा कि 18वीं सदी की मान्यताएं व कुरीतियां अभी भी जड़े जमायी हुई है जिसके कारण जादू-टोना, डायन, टोनही, बलि व बाल विवाह जैसी परंपराएं व अंधविश्वास आज भी वजूद में है. जिससे प्रतिवर्ष अनेक मासूम जिन्दगियां तबाह हो रही है. उन्होंने कहा कि ऐसे में वैज्ञानिक जागरूकता को बढ़ाने और तार्किक सोच को अपनाने की आवश्यकता है. उन्होंने आगे कहा कि अंधविश्वास को कुरीतियों के विरूद्ध समाज के साथ विद्यार्थियों को भी एकजुट होकर आगे आना चाहिए.

डॉ. मिश्र ने कहा विभिन्न प्राकृतिक आपदाएं हर गांव में आती है, मौसम परिवर्तन व संक्रामक बीमारियां भी गांव को चपेट में लेती है, वायरल बुखार, मलेरिया,पीलिया, दस्त जैसे संक्रमण भी सामूहिक रूप से अपने पैर पसारते है. ऐसे में ग्रामीण अंचल में लोग कई बार बैगा-गुनिया के परामर्श के अनुसार विभिन्न टोटकों, झाड़-फूंक के उपाय अपनाते है. जबकि प्रत्येक बीमारी व समस्या का कारण व उसका समाधान अलग-अलग होता है, जिसे विचारपूर्ण तरीके से ढूंढा जा सकता है. कोरोना जैसी महामारी का हल व उपचार वैक्सीन बनाने एवं उसे लोगों तक उपलब्ध कराने में चिकित्सा विज्ञान की बड़ी भूमिका रही है. उन्होंने कहा कि बिजली का बल्ब फ्यूज होने पर उसे झाड़-फूंक कर पुनः प्रकाश नहीं प्राप्त किया जा सकता न ही मोटर सायकल, ट्रांजिस्टर बिगड़ने पर उसे ताबीज पहिनाकर नहीं सुधारा जा सकता. रेडियो, मोटर सायकल, टी.वी., ट्रेक्टर की तरह हमारा शरीर भी एक मशीन है जिसमें बीमारी आने पर उसके विशेषज्ञ के पास ही जांच व उपचार होना चहिए.

डॉ. मिश्र ने विभिन्न सामाजिक कुरीतियों एवं अंधविश्वासों की चर्चा करते हुए कहा कि पालक व शिक्षक अपने बच्चों को भूत-प्रेत, जादू-टोने के नाम से नहीं डराएं, क्योंकि इससे उनके मन में काल्पनिक डर बैठ जाता है जो उनके मन में ताउम्र बसा होता है. बल्कि उन्हें आत्मविश्वास, निडरता के किस्से कहानियां सुनानी चाहिए. जिन व्यक्तियों में आत्मविश्वास व मन में निर्भयता होती है उन्हें न ही नजर लगती है और न कथित भूत-प्रेत बाधा लगती है. यदि व्यक्ति कड़ी मेहनत, पक्का इरादा का काम करें तो कोई भी ग्रह, शनि, मंगल, गुरू उसके रास्ते में बाधा नहीं बनता.

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डॉ. दिनेश मिश्र ने कहा कि देश में जादू-टोना, तंत्र-मंत्र, झाड़-फूंक की मान्यताओं एवं डायन (टोनही ) के संदेह में प्रताडऩा तथा सामाजिक बहिष्कार के मामलों की भरमार है. डायन के सन्देह में प्रताडना के मामलों में अंधविश्वास व सुनी-सुनाई बातों के आधार पर किसी निर्दोष महिला को डायन घोषित कर दिया जाता है तथा उस पर जादू-टोना कर बच्चों को बीमार करने, फसल खराब होने, व्यापार-धंधे में नुकसान होने के कथित आरोप लगाकर उसे तरह-तरह की शारीरिक व मानसिक प्रताड़ना दी जाती है. कई मामलों में आरोपी महिला को गांव से बाहर निकाल दिया जाता है. बदनामी व शारीरिक प्रताड़ना के चलते कई बार पूरा पीडि़त परिवार स्वयं गांव से पलायन कर देता है. कुछ मामलों में महिलाओं की हत्याएं भी हुई है या वे स्वयं आत्महत्या करने को मजबूर हो जाती है. जबकि जादू-टोना के नाम पर किसी भी व्यक्ति को प्रताडि़त करना गलत और अमानवीय है. वास्तव में किसी भी व्यक्ति के पास ऐसी जादुई शक्ति नहीं होती कि वह दूसरे व्यक्ति को जादू से बीमार कर सके या किसी भी प्रकार का आर्थिक नुकसान पहुंचा सके. जादू-टोना, तंत्र-मंत्र, टोनही, नरबलि के मामले सब अंधविश्वास के ही उदाहरण हैं. महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, ओडीसा, झारखण्ड, बिहार, आसाम सहित अनेक प्रदेशों में प्रतिवर्ष टोनही/डायन के संदेह में निर्दोष महिलाओं की हत्याएं हो रही है, जो सभ्य समाज के लिए शर्मनाक है. नेशनल क्राईम रिकॉर्ड ब्यूरो ने सन् 2001 से 2015 तक 2604 महिलाओं की मृत्यु डायन प्रताडऩा के कारण होना माना है. जबकि वास्तविक संख्या इनसे बहुत अधिक है अधिकतर मामलों में पुलिस रिपोर्ट ही नहीं हो पातीं. हमने जब आर टी आई से जानकारी प्राप्त की तब हमें बहुत ही अलग आंकड़े प्राप्त हुए. झारखंड में 7000, बिहार में 1679 छत्तीसगढ़ में 1357, ओडिशा 388 में, राजस्थान 95 में, आसाम में 102 मामलों की प्रमाणिक जानकारी है. जबकि कुछ राज्यों से जवाब ही नहीं मिला. पर समाचार पत्रों में लगभग सभी राज्यों से ऐसी घटनाओं के समाचार मिलते हैं, जो दुःखद व चिंतनीय है.

डॉ. मिश्र ने कहा, आम लोग चमत्कार की खबरों व किस्सों के प्रभाव में आ जाते हैं. हम चमत्कार के रूप में प्रचारित होने वाले अनेक मामलों का परीक्षण व उस स्थल पर जांच भी समय-समय पर करते रहे हैं. चमत्कारों के रूप में प्रचारित की जाने वाली घटनाएं या तो सरल वैज्ञानिक प्रक्रियाओं के कारण होती है तथा कुछ में हाथ की सफाई, चतुराई होती है जिनके संबंध में आम आदमी को मालूम नहीं होता. कई स्थानों पर स्वार्थी तत्वों द्वारा साधुओं का वेश धारण चमत्कारिक घटनाएं दिखाकर ठगी करने के मामलों में वैज्ञानिक प्रयोग व हाथ की सफाई के ही करिश्में थे.

डॉ. मिश्र ने कहा भूत-प्रेत जैसी मान्यताओं का कोई अस्तित्व नहीं है. अनेक स्कूलों से छात्र छात्राओं के बेहोश होने, उन्हें छाया दिखने, आत्मा दिखने जैसी घटनाओं के समाचार आते रहते है, जिनमें से अधिकांश ग्रामीण क्षेत्र के स्कूलों के बच्चों के होते हैं. ऐसे अनेक स्कूलों में हमरा जाना भी हुआ है. भूत-प्रेत बाधा व भुतहा घटनाओं के रूप में प्रचारित घटनाओं का परीक्षण करने में उनमें मानसिक विकारों, अंधविश्वास तथा कहीं-कहीं पर शरारती तत्वों का हाथ पाया गया.

डॉ. मिश्र ने कहा, आज टेलीविजन के सभी चैनलों पर भूत-प्रेत, अंधविश्वास बढ़ाने वाले धारावाहिक प्रसारित हो रहे हैं. ऐसे धारावाहिकों का न केवल जनता पर विपरीत प्रभाव पड़ता है बल्कि छोटे बच्चों व विद्यार्थियों पर भी दुष्प्रभाव पड़ता है. इस संबंध में हमने राष्ट्रीय स्तर पर एक सर्वेक्षण कराया है जिसमें लोगों ने ऐसे सीरीयलों को बंद किए जाने की मांग की है. ऐसे सीरीयलों को बंद कर वैज्ञानिक विकास व वैज्ञानिक दृष्टिकोण बढ़ाने व विज्ञान सम्मत अभिरूचि बढ़ाने वाले धारावाहिक प्रसारित होना चाहिए. भारत सरकार के दवा एवं चमत्कारिक उपचार के अधिनियम 1954 के अंतर्गत झाड़-फूंक, तिलस्म, चमत्कारिक उपचार का दावा करने वालों पर कानूनी कार्यवाही का प्रावधान है. इस अधिनियम में पोलियो, लकवा, अंधत्व, कुष्ठरोग, मधुमेह, रक्तचाप, सर्पदंश, पीलिया सहित 54 बीमारियां शामिल हैं. लोगों को बीमार पड़ने पर झाड़-फूंक, तंत्र-मंत्र, जादुई उपचार, ताबीज से ठीक होने की आशा के बजाय चिकित्सकों से सम्पर्क करना चाहिए क्योंकि बीमारी बढ़ जाने पर उसका उपचार खर्चीला व जटिल हो जाता है.

डॉ. मिश्र ने कहा, अंधविश्वास, पाखंड एवं सामाजिक कुरीतियों का निर्मूलन एक श्रेष्ठ सामाजिक कार्य है जिसमें हाथ बंटाने हर नागरिक को स्वयं आगे आना चाहिए. विद्यार्थी भी इसमें सहयोग कर सकते हैं, लोगों में वैज्ञानिक चेतना बढाने में सार्थक भूमिका निभा सकते हैं.

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