सुधीर दंडोतिया, भोपाल। मध्य प्रदेश ने राजस्थान से अपने हिस्से का 3900 क्यूसेक पानी मांगा है। दरअसल, शुक्रवार को चंबल जल बंटवारे को लेकर दोनों राज्यों की बैठक हुई। दोनों राज्यों ने चंबल पर अपनी अपनी सीमा में मौजूद बांध और जल भराव के आंकड़ों को साझा किया है। इस दौरान मध्य प्रदेश ने चंबल जल बंटवारे पर सख्ती दिखाते हुए राजस्थान से 3900 क्यूसेक पानी की मांग की है।
प्रदेश में मानसून के बाद शुक्रवार को चंबल घाटी की उपलब्धता और जल (Water) शेयरिंग पर एमपी और राजस्थान के जल संसाधन विभागों के अधिकारियों की बैठक हुई। वर्चुअल मोड में हुई बैठक में दोनों राज्यों ने चंबल पर अपनी-अपनी सीमा में मौजूद बांधों और जलभराव के आंकड़े साझा किए। चुनावी साल में मध्य प्रदेश ने चंबल जल बंटवारे पर सख्ती दिखाते हुए राजस्थान से 3900 क्यूसेक पानी की मांग रख दी है।
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मध्यप्रदेश और राजस्थान के बीच हुए एग्रीमेंट के मुताबिक, एमपी को कोटा बैराज से हर साल करीब 3900 क्यूसेक पानी मिलना चाहिए। जिससे चंबल संभाग के जिलों में सिंचाई होती है। विभागीय अधिकारियों के अनुसार नवंबर में दोनों राज्यों में रबी सीजन के दौरान सबसे ज्यादा पानी की डिमांड होती है, लेकिन राजस्थान 2800 से 2900 क्यूसेक पानी ही देता है। बहुत ज्यादा सख्ती दिखाने पर 3100 क्यूसेक ही पानी मिल पाता है। यानी करीब 1000 से 1100 क्यूसेक पानी पर अपने हिस्से में सिंचाई के लिए उपयोग करता है।
चंबल संभाग के जिलों तक जल संसाधन विभाग ने करीब 350 किलोमीटर लंबा नहरों का जाल बिछा रखा है। पूरा पानी नहीं मिलने से इन जिलों के अंतिम छोर तक पानी नहीं पहुंच पाता। इसमें ऊपरी हिस्से में पानी रोक नीचे के छोर तक पहुंचाया जाता है। सबसे ज्यादा लहार-अटेर वाला इलाका प्रभावित होता है।
राजस्थान हर साल 1200 क्यूसेक पानी रोकता है। नहरों में सीपेज का बहाना बनाकर पानी रोक देता है। दोनों राज्यों को इसके मेंटनेंस पर 50-50 प्रतिशत राशि खर्च करते हैं। कोटा बैराज दोनों राज्यों को कुल 6656 क्यूसेक पानी सिंचाई के लिए मिलता है। किसान हर साल स्थानीय स्तर पर पानी नहीं मिलने की शिकायत भी करते हैं, लेकिन उन्हें पूरा पानी नहीं मिल पाता।
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