पी. रंजन दास, बीजापुर। लगभग छह लाख एकड़ सिंचाई के उद्देश्य से गोदावरी पर तेलंगाना सरकार ने उच्चस्तर बांध का निर्माण कराया है. यह बांध छत्तीसगढ़ के उस छोर पर बना है, जहां से बीजापुर जिले की सीमा लगती है. इसी सरहद से लगे बीजापुर जिले के अटकूपल्ली ग्राम पंचायत के आश्रित ग्राम कांदला समेत आधा दर्जन गांवों के लिए वरदान नहीं बल्कि अभिशाप बन चुका है.

7 नवंबर को पहले चरण में होने जा रहे मतदान के मद्देनजर बीजापुर विधानसभा में ना सिर्फ भाजपा बल्कि कांग्रेस की नजर भी कांदला गांव के मतदाताओं पर है. वजह है दोनों ही दलों से गांव वालों की नाराजगी. दरअसल, 2018 विधानसभा चुनाव से पहले ताड़लागुड़ा के समीप गोदावरी पर तेलंगाना सरकार की तरफ से बांध का काम जोर-शोर से चालू था. तब सूबे में भाजपा का राज था और विधायक भी भाजपा से थे.

तब विपक्ष में रहते वर्तमान विधायक विक्रम शाह मंडावी ने बांध के विरोध का मुद्दा जोर-शोर से उठाया था. साल 2018 में चुनाव में तख्ता पलट होने के बाद विक्रम विधायक बने, लेकिन विधायक बनने के बाद बांध का मुद्दा ठंडे बस्ते में चला गया. इधर, सत्ता से बेदखल होकर विपक्ष में आई भाजपा ने भी कांदला गांवों के हालातों और बांध के निर्माण को रोकने कोई आवाज नहीं उठाई.

चुनावी माहौल में कांदला का हाल जानने लल्लूराम डॉट कॉम संवाददाता गांव पहुंचे तो ग्रामीणों ने सिंचाई के अभाव में सूखती फसल, पीने योग्य पानी की किल्लत, बिजली की आंख मिंचौली, मृत मवेशियों की गिनती गिनाने लगे. तलांडी सुधन राव, श्रीनिवास सडमेक, मुड़ियम गनपत, तलांडी हीरैया, मट्टी राममूर्ति, तलांडी चंद्रैया, सडमेक नागेश, तलांडी जगदीश, तलांडी संतोष आदि का कहना था कि बांध के चलते ना सिर्फ कांदला बल्कि अन्य गांव भी डुबान में आ गए. लगातार दो सालों से वे बाढ़ का दंश झेल रहे हैं.

बाढ़ के चलते जानमाल की रक्षा के लिए पहाड़ियों पर जाकर रहने मजबूर है. गांव में जब बाढ़ आई थी विधायक-कलेक्टर उनकी सुध लेने पहुंचे थे, गांव वालों की मांग थी कि उन्हें विस्थापित कर अन्य कहीं बसाया जाए, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. जान बचाने हाइवे किनारे जंगल में जाकर बसे तो वन कर्मियों द्वारा उन्हें खदेड़ा गया. गुहार लगाने के बाद भी प्रशासन की मदद को आगे नहीं आया.

फसल पर मंडराता है खतरा

बाढ़ के चलते खरीफ के मौसम में सैकड़ों एकड़ फसल पर तबाही का खतरा मंडराता है और जब बारिश टल जाती है तो सिंचाई संसाधनों के अभाव में सूखे का. बाढ़ के दौरान उनके दर्जनों मवेशी मारे गए. आलम यह है कि नदी किनारे बसा कांदला गांव में पीने के साफ पानी की आपूर्ति भी अपर्याप्त है. गांव में जल जीवन मिशन के तहत पानी पहुंचाने में कार्रवाई की रफतार भी धीमी है. गिनती के हैंडपंप हैं, ज्यादातर हैंडपंप में पीने योग्य पानी नहीं आता.

नेताओं को पुराने वादों की दिलाएंगे याद

ताड़लागुड़ा नेशनल हाइवे से करीब पांच किमी भीतर कांदला गांव को जोड़ने पक्की सड़क दूभर है, उस पर गड्ढे-नाले की परेशानी अलग.
हालातों से त्रस्त कांदला के ग्रामीणों के मुताबिक, चुनाव उनके लिए बेहद मायने रखते हैं, लेकिन अपने इन हालातों के लिए सत्तापक्ष के नेताओं को सीधे जिम्मेदार भी मानते हैं. ग्रामीणों की मानें तो उनके गांव प्रचार के लिए कोई राजनीतिक दल अब तक नहीं पहुंचा. जो भी पहुंचेगा पहले वे उनसे पुराने किए वायदों का हिसाब जरूर मांगेंगे, लेकिन नाराजगी के बाद भी वोट करने अवश्य जाएंगे.