मनीष मारू, आगर मालवा। मां के भक्तों की आस्था का एक ऐसा मंदिर जहां मां के दर्शन मात्र से ही कष्टों का निवारण हो जाता है। यहां भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती है। देश विदेश के भक्‍तों सहित कई जाने माने नेता अभिनेता, मंत्रीगण तक इस वर्ष मंदिर में दर्शन कर चुके है। इस नवरात्रि में भी यहां प्रतिवर्ष अनुसार देश विदेश से लाखों भक्‍त दर्शन के लिए पहुंचेंगे। महाभारत काल में यही से पाण्डवों को विजयश्री का वरदान प्राप्त हुआ था। मध्यप्रदेश के आगर मालवा जिले के नलखेड़ा मे स्थित विश्‍व प्रसिद्ध तांत्रिक स्‍थली मां बगलामुखी के पावन धाम की विशेष रिपोर्ट, जो अपने आप में एक सिद्ध पीठ है…

उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर से सौ किलोमीटर दूर ईशान कोण में आगर मालवा जिला मुख्‍यालय से 35 किलोमीटर दूर नलखेडा में लखुन्दर नदी के तट पर पूर्वी दिशा में विराजमान है। मां बगलामुखी सभी कामों की सिद्धि दात्री मां बगलामुखी, जिनके एक और धन दायिनी महा लक्ष्म और दूसरी और विद्या दायिनी मां सरस्वती विराजित है।

तीन स्थानों पर विराजित

मां बगलामुखी की पावन मूर्ति विश्व में केवल तीन स्थानों पर विराजित है। एक नेपाल में दूसरी मध्य प्रदेश के दतिया में और एक यहां साक्षात नलखेडा में, कहा जाता है की नेपाल और दतिया में श्री श्री 1008 आद्या शंकराचार्य जी द्वारा मां की प्रतिमा स्थापित की गयी, जबकि नलखेडा में इस स्थान पर मां बगलामुखी पीताम्बर रूप में शाश्वत काल से विराजित है। प्राचीन काल में यहां बगावत नाम का गांव हुआ करता था। यह विश्व शक्ति पीठ के रूप में भी प्रसिद्ध है। मां बगलामुखी की उपासना और साधना से माता वैष्णोदेवी और मां हरसिद्धि के समान ही साधक को शक्ति के साथ धन और विद्या की प्राप्ति हो जाती है सोने जैसे पीले रंग वाली चांदी के जैसे सफेद फूलों की माला धारण करने वाली, चंद्रमा के समान संसार को प्रसन्न करने वाली इस त्रिशक्ति का देवीय स्वरुप बरबस अपनी और आकर्षित करता है।

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प्रातःकाल में सूर्योदय से पहले ही सिंह मुखी द्वार से प्रवेश के साथ ही भक्तों का मां के दरबार में हाजरी लगाना और अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए अर्जी लगाना, यह सिलसिला अनादी काल से चला आ रहा है। भक्ति और उपासना की अनोखी डोर भक्तों को मां के आशीर्वाद से बांधे हुए खास दृश्य निर्मित करती है। मूर्ति की स्थापना के साथ जलने वाली अखंड ज्योत आस्था को प्रकाशमान किये हुए है।

5 हजार साल से भी पहले से स्थापित

मां बगलामुखी की इस विचित्र और चमत्कारी मूर्ति की स्थापना का कोई एतिहासिक प्रमाण नहीं मिलता। किवंदिती है कि यह मूर्ति स्वयं सिद्ध स्थापित है। काल गणना के हिसाब से यह स्थान करीब पांच हजार साल से भी पहले से स्थापित है। कहा जाता है की महाभारत काल में पांडव जब विपत्ति में थे तब भगवान श्री कृष्ण ने उन्हें मां बगलामुखी के इस स्थान की उपासना करने के लिए कहा था। तब मां की मूर्ति एक चबूतरे पर विराजित थी। पांडवो ने इस त्रिगुण शक्ति स्वरूपा की आराधना कर विपात्तियो से मुक्ति पायी और अपना खोया हुआ राज्य वापस पा लिया। यह एक ऐसा शक्ति स्वरूप है जहां कोई छोटा बड़ा नहीं, सभी के दुखों का निवारण करती है। यह शत्रु की वाणी और गति का नाश करती है और अपने भक्तों को अभयदान देती है।

देवीय शक्ति

बगलामुखी के इस मंदिर के आस पास की संरचना देवीय शक्ति के साक्षात होने का प्रमाणित करती है। मंदिर के उत्तर दिशा में भेरव महाराज का स्थान, पूर्व में हनुमान जी की प्रतिमा। हनुमान जी के पीछे चंपा नीम और बिल्व पत्र के पेडो एक साथ की मौजूदगी। दक्षिण भाग में राधा कृष्ण का प्राचीन मंदिर भक्ति का एक और खास मुकाम है। राधा कृष्ण मंदिर के पास ही शंकर, पार्वती और नंदी की स्थापना है। मंदिर परिसर में संत महात्माओं की सत्रह समाधिया और उनकी चरण पादुकाये है। महात्माओं द्वारा यहां ली गयी जिंदा समाधिया सत्य का प्रमाण है कि इस स्थान पर देवत्व का वास है। गर्भगृह के ठीक सामने कच्छप की मूर्ति इस बात का प्रमाण है कि प्राचीन काल में यहां बलि दी जाती रही होगी। मूल मंदिर के दक्षिण में बाहर की तरफ एक शिव मंदिर बना हुआ है जो पहले मठ के रूप में था। उसके पास ही एक पुरातात्विक महत्त्व की छत्री बनी हुई है। मंदिर के सामने बाहर सूर्य मुखी हनुमान मंदिर पर चल रहा अखंड रामायण पाठ आस्था की डोर को मजबूती प्रदान कर रहा है।

नवरात्र में विशेष महत्व

मंदिर परिसर में हवन कुण्ड है जिसमें आम और खास सभी भक्त अपनी आहुति देते है। नवरात्र के दौरान हवन की क्रियाओं को संपन्न कराने का विशेष महत्त्व है। अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए किये जाने वाले इस हवन में तिल, जो, घी, नारियल आदि का होम किया जाता है। कहते है माता के सामने हवन करने से सफलता के अवसर दोगुने हो जाते है।

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जानिए इतिहास

मांबगलामुखी के इस मंदिर का शिल्प नयनो को सुकून देने वाला है। मंदिर के मौजूदा स्वरुप का निर्माण करीब पंद्रह सौ साल पहले राजा विक्रमादित्य के काल में हुआ। गर्भगृह की दीवारों की मोटाई तीन फीट के आस पास है। दीवारों की बाहर की तरफ की गयी कला कृति आकर्षक है और पुरातात्विक गाथा को प्रतिबिंबित करती नजर आती है। मंदिर के ठीक सामने अस्सी फीट ऊंची दीपमाला दिव्य ज्योत को अलंकृत करती हुई विक्रमादित्य के शासन काल की अनुपम निर्माण की एक और कहानी बयान करती है। मंदिर में सोलह खम्बों का सभा मंडप बना हुआ है जो करीब 250 साल पहले बनाया गया है। शिला लेख पर अंकित वर्णन से मालूम होता है की इस सभा मंडप का निर्माण संवत 1815 में कारीगर तुलाराम ने कराया था।

पीला रंग खास

बगलामुखी की यह प्रतिमा पीताम्बर स्वरुप की है। पीत यानि पीला, इसलिए यहां पीले रंग की सामग्री चढ़ाई जाती है। पीला कपड़ा, पीली चूनरी, प्रसाद, फूल आदि। अनेकों अनेक चमत्कारों का पुलिंदा लिए इस मंदिर की पिछली दीवार पर पुत्र रत्न की प्राप्ति के लिए स्वस्तिक बनाने का प्रचलन है।

सालभर लगा रहता हैं भक्तों का तांता

मां के इस मंदिर में पूरे वर्ष भर भक्‍तों का तांता लगा रहता है। इस मंदिर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के परिवारजन सहित कई केंद्रीय मंत्री सहित दिग्‍गज नेताओं का आना हुआ है, तो कई अभिनेता व अभिनेत्रियां भी मां के दरबार में माथा टेक चुकी हैं। मां के मंदिर में हवन करने से शत्रुओं पर विजयी प्राप्‍त होती है। इसी के चलते चुनावों के समय तो मां के आर्शीवाद के लिए नेतागण मंदिर में माथा टेकते और हवन करते हुए आसानी से देखे जा सकते है।

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