पुरुषोत्तम पात्र, गरियाबंद। गरियाबंद जिले का प्रदेश की राजनीतिक तस्वीर में अलग स्थान है. एक ओर तीन बार सीएम देने वाला हाईप्रोफाइल राजिम कांग्रेस का गढ़ है. वहीं दूसरी ओर बिंद्रनवागढ़ कमोबेश भाजपा का गढ़ माना जाता है. आइए जानते हैं इन दोनों सीटों का इतिहास…

जिले के दोनों सीट पर सियासी विरोधाभास

1993 के चुनाव में गरियाबंद जिले के दो विधानसभा सीट – राजिम और बिंद्रनवागढ़ पर कांग्रेस का कब्जा था. इस वर्ष को छोड़ दिया जाए तो इन दोनों सीट पर एक साथ अब तक किसी पार्टी का कब्जा नहीं रहा. कांग्रेस का गढ़ माने जाने वाले राजिम में भाजपा ने तो भाजपा के गढ़ माने जाने वाले बिंद्रानवागढ़ में कांग्रेस ने 1985 में खाता खोला था. बिंद्रानवागढ़ में 2003 और 2013 में कांग्रेस के विधायक बने, इसी वर्ष में राजिम का सीट भाजपा के कब्जे में रहा.

राजिम ने दिए तीन-तीन मुख्यमंत्री

प्रदेश की राजिम एक ऐसी हाई प्रोफाइल विधानसभा सीट है, जिसने तीन-तीन बार मुख्यमंत्री दिए. श्‍यामाचरण शुक्‍ल पहली बार 1957 में राजिम सीट से विधायक बने. इसी सीट से उन्‍हें 1962, 1967, 1972, 1990, 1993 और 1998 में विधायक बने. इसी बीच श्याम चरण शुक्ल तीन मौकों पर 1969 से 1972, 1975 से 1977, 1989 से 1990 तक मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री रहे हैं. हालांकि, किसी न किसी राजनीतिक घटनाक्रम के चलते वे एक बार भी पांच साल का कार्यकाल पूरा नहीं कर सके.

सिर्फ एक बार शुक्ल से परे रही सीट

1977 में जनता पार्टी की सरकार बनने के बाद कांग्रेस दो हिस्सों में बंट गई. इंदिरा और ग्रहनंद रेड्डी के बीच की लड़ाई में श्यामाचरण ने रेड्डी का साथ दिया. इस तरह श्यामचरण लगभग 12 साल तक कांग्रेस से बाहर रहे. इसलिए 1980 में हुए चुनाव में कांग्रेस से जीवनलाल साहू प्रत्याशी बनाए गए और वे जीते भी इसके बाद 1985 में भाजपा ने अपना खाता खोला था. तब पुनीतराम साहू भाजपा से जीते थे. 1990 में फिर नतीजा बदला और पंडित शुक्ल लगातार 1998 तक विधायक रहे.

99 में श्यामाचरण लोकसभा गए

1999 में श्यामाचरण लोकसभा चले गए और राजिम विधानसभा सीट खाली हो गई थी, तब उनके पुत्र अमितेश को उपचुनाव में मौका मिला और वे जीते. 2003 में चंदूलाल साहू ने अमितेश को हरा दिया. 2008 में अमितेश ने जीत से वापसी की, लेकिन 2013 में वे भाजपा के संतोष उपाध्याय से हार गए. 2018 में अमितेश ने पुनः वापसी की इस तरह देखा जाए तो सिर्फ 1980 के चुनाव में यह सीट शुक्ल से परे रही.

अमितेश को मंत्री तक नहीं बनाया

अविभाजित मध्य प्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री बनाए गए रहे पंडित रविशंकर शुक्ल, उनके बेटे श्यामाचरण ने भी तीन बार सीएम की कुर्सी संभाली, लेकिन 4 बार प्रत्याशी और दो बार विधायक रह चुके छत्तीगढ़ सरकार में प्रथम पंचायत मंत्री बनने का सौभाग्य हासिल करने वाले अमितेश को, 15 साल बाद सरकार में वापस आने के बाद मंत्री नहीं बनाया गया. ऐतिहासिक राजनीतिक विरासत वाले अमितेश का मंत्री नहीं बनाना क्षेत्र की जनता के मन में कई सवाल खड़ा करता रहा है.