Rajasthan News: जोधपुर. राजस्थान हाईकोर्ट ने जोधपुर नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी (एनएलयू) में राजस्थान के मूल निवासी छात्रों को 25 प्रतिशत आरक्षण दिए जाने की अधिसूचना की वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर जवाब मांगा है.

न्यायाधीश दिनेश मेहता तथा न्यायाधीश राजेंद्र प्रकाश सोनी की खंडपीठ में याचिकाकर्ता अनिंदिता बिस्वास की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ अग्रवाल तथा अधिवक्ता विनय कोठारी ने जोधपुर स्थित नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी में राजस्थान के मूल निवासी छात्रों को 25 प्रतिशत आरक्षण देने की अधिसूचना को चुनौती देते हुए कहा कि 1999 में नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी जोधपुर अधिनियम, 1999 लागू हुआ था, जिसके आधार पर 19 नवंबर, 1999 को यूनिवर्सिटी को औपचारिक रूप से स्थापित किया गया.

उन्होंने कहा कि 12 मई, 2001 को यूनिवर्सिटी के कुलाधिपति एवं तत्कालीन राजस्थान हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता में आयोजित सामान्य परिषद, कार्यकारी परिषद और अकादमिक परिषद की पहली संयुक्त बैठक में राजस्थान के मूल निवासी छात्रों को आरक्षण के मामले पर चर्चा हुई थी. उन्होंने कहा कि भौगोलिक सीमाओं के आधार पर यूनिवर्सिटी में सीटों की संख्या पर स्पष्ट रूप से विचार-विमर्श किया गया और ऐसे प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया गया था. बैठक की कार्यवाही में कुलपति और अन्य सदस्यों ने मत जताया था कि चूंकि यह एक राष्ट्रीय यूनिवर्सिटी है, इसलिए भौगोलिक सीमाओं के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जाए.

उन्होंने कहा कि वर्ष 2018 में यूनिवर्सिटी के छात्रों ने राजस्थान के मूल निवासियों को आरक्षण दिए जाने के प्रस्ताव के खिलाफ कुलपति व रजिस्ट्रार को ज्ञापन भी दिया. इस दौरान यूनिवर्सिटी की अकादमिक परिषद ने सेवानिवृत्त न्यायाधीश मंजू गोयल की अध्यक्षता में एक समिति गठित करने का निर्णय लिया.

समिति को राजस्थान राज्य के मूल निवासी छात्रों के लिए 25 प्रतिशत सीटों के आरक्षण के कार्यान्वयन की व्यवहार्यता और जरूरत के संबंध में राय और सलाह देनी थी. समिति ने 6 मार्च, 2020 को अपनी रिपोर्ट यूनिवर्सिटी को सौंपी, जिसमें कहा गया था कि यूनिवर्सिटी अधिनियम मूल निवास आधारित आरक्षण के लिए प्रावधान नहीं करता है और न ही राज्य सरकार को आरक्षण की कोई भी योजना लागू करने में सक्षम बनाता है.

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