नई दिल्ली. प्रसिद्ध शास्त्रीय गायिका डॉ. सोमा घोष ने कहा कि मैं इंसानियत को धर्म मानती हूं. यह भाव मैंने बाबा (उस्ताद बिस्मिल्लाह खान ) में पाया. उनके हृदय में जो सुर था, वह असली और शुद्ध था. उन्होंने सुर के साथ कभी अन्याय नहीं किया. जब हमारी जुगलबंदी थी, तब उन्होंने अपने आसन पर मुझे बैठाया और अपने 70 साल के बेटे को नीचे बैठाया. वह सुर से कोई समझौता नहीं करते थे.
डॉ. घोष ने यह बातें प्रसिद्ध शहनाई वादक उस्ताद बिस्मिल्लाह खान और उनसे जुड़ी स्मृतियों पर लिखी पुस्तक ‘बाबा एंड मी भारत रत्न उस्ताद बिस्मिल्लाह खान थ्रू द आई ऑफ डॉ. सोमा घोष’ के विमोचन के अवसर पर कहीं. यह कार्यक्रम राजधानी के इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र में सोमवार को आयोजित किया गया. इस अवसर पर शुभंकर घोष द्वारा उस्ताद बिस्मिल्लाह खान के जीवन आधारित एक लघु फिल्म भी दिखाई गई. रस, सुर, शहनाई और बनारस की चर्चा के बीच डॉ. सोमा घोष ने अपनी गुरु वागेश्वरी देवी के अभाव का प्रसंग साझा करते हुए सरकार से कलाकारों की तरफ और ध्यान देने की अपील भी की. इस अवसर पर उन्होंने उस्ताद बिस्मिल्लाह खान से जुड़े प्रसंग भी साझा किए और कहा कि बाबा ने मुझसे कहा था कि अपना वजूद मत खोना, जो गाती हो वह गाती रहना, भीड़ देखकर बहक मत जाना.
पुस्तक विमोचन के अवसर पर आध्यात्मिक गुरु सदगुरु दयाल, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के अध्यक्ष राम बहादुर राय, पुस्तक के प्रकाशक प्रभात कुमार और पत्रकार हेमंत शर्मा ने भी बिस्मिल्लाह खान पर अपने विचार रखे.