डॉ. वैभव बेमेतरिहा की रिपोर्ट, रायपुर। छत्तीसगढ़ में विधानसभा का चुनाव दो चरणों में हो रहा है. पहले चरण की 20 सीटों के लिए 7 नवंबर को मतदान हो चुका है. दूसरे चरण के लिए 17 नवंबर को मतदान है. दूसरे चरण के चुनाव में सरगुजा संभाग की 14 सीटों पर भी चुनाव है. इस रिपोर्ट में चर्चा सरगुजा संभाग की 14 सीटों की. भाजपा और कांग्रेस दोनों के लिए सरगुजा संभाग बहुत अहम है. 2018 में सरगुजा संभाग की सभी सीटों पर कांग्रेस ने जीत हासिल करके भाजपा का सूपड़ा साफ कर दिया था. लेकिन इस बार भी क्या 18 जैसी लहर सरगुजा में है ? इसी सवालों को समझने की कोशिश हमने इस रिपोर्ट में 2018 के आंकड़े, कांग्रेस-भाजपा में बदले गए चेहरे और सामाजिक समीकरणों के साथ स्थानीय जानकारों से हुई बातचीत के आधार पर की है.

सामाजिक समीकरणों की बात करे तो संभाग की 14 में 9 सीटें एसटी वर्ग के लिए आरक्षित हैं. वहीं 5 सीटें अनारक्षित हैं.

अनारक्षित सीटों में मनेन्द्रगढ़, बैंकुठपुर, भटगांव, प्रेमनगर और अंबिकापुर शामिल हैं. सामान्य सीटों में कांग्रेस ने 2 ओबीसी ( 1 कुर्मी, 1 रजवार, 1 समाज) से और 2 सामान्य( राजपूत) समाज और 1 आदिवासी समाज से उम्मीदवार खड़ा किया है.

वहीं भाजपा ने 3 ओबीसी ( 1 कलार, 2 रजवार ), 1 आदिवासी और 1 सामान्य( अग्रवाल) समाज से उम्मीदवार खड़ा किया है.

वहीं बदलाव की बात करे तो भाजपा ने 14 में 12 स्थानों पर चेहरा बदला है. 2018 में चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशियों को दोबारा मौका सिर्फ 2 सीटों पर मिला है. वहीं कांग्रेस ने सिर्फ सीटों में बदलाव किया है. इन चार सीटों में 2 मौजूदा विधायक को कांग्रेस इस बार मौका नहीं दिया है.

भरतपुर-सोनहत (एसटी आरक्षित सीट) – भाजपा ने बदला चेहरा, मायके से कांग्रेस को चुनौती

इस सीट पर भाजपा ने चेहरा बदल दिया है. भाजपा ने केंद्रीय राज्य मंत्री रेणुका सिंह को प्रत्याशी बनाया है. 2018 में इस सीट से चंपादेवी पावले लड़ीं थी. वहीं कांग्रेस ने विधायक गुलाब कमरो पर ही भरोसा जताया है.

विशेष बात- कांग्रेस प्रत्याशी गुलाब कमरो तीसरी बार चुनाव लड़ रहे हैं. गुलाब कमरो 2013 विधानसभा चुनाव हार चुके हैं. 2018 चुनाव में सहयोगी रहे कार्यकर्ताओं की नाराजगी का सामना कर रहे हैं. वहीं भाजपा प्रत्याशी रेणुका सिंह इससे पहले प्रेमनगर से चुनाव लड़ती रही हैं. 2013 में विधानसभा चुनाव हारने के बाद रेणुका सिंह को 2018 में विधानसभा की टिकट भाजपा ने नहीं दी थी. हालांकि 2019 में सरगुजा लोकसभा का टिकट मिला, चुनाव लड़ीं और जीतकर सांसद फिर केंद्रीय राज्यमंत्री बनीं. जानने योग्य दिलचस्प बात ये है कि रेणुका सिंह अपने मायके क्षेत्र से चुनाव मैदान में हैं.

2018 का आंकड़ा- गुलाब कमरो ने भाजाप प्रत्याशी चंपादेवी पावले को 16 हजार 533 वोटों से हराया था. गुलाब कमरो को 51732 और चंपादेवी को 35199 वोट मिले थे.

राज्य बनने के बाद- 2008 से लेकर अब तक 3 चुनाव हुए हैं. 2008 और 13 में भाजपा, जबकि 2018 में कांग्रेस जीती है.

स्थानीय जानकारों के मुताबिक मुकाबला इस सीट पर रेणुका सिंह का पलड़ा भारी है.

मनेन्द्रगढ़ (अनारक्षित सीट) – कांग्रेस ने चेहरा बदला, लेकिन मुकाबला पुराने चेहरों के बीच ही है

मनेन्द्रगढ़ सीट में कांग्रेस ने इस बार चेहरा बदल दिया है. कांग्रेस ने यहां रमेश सिंह को उम्मीदवार बनाया है. 2018 में इस सीट से डॉ. विनय जयसवाल कांग्रेस से चुनाव लड़े थे. वहीं भाजपा ने अपने पूर्व विधायक श्यामबिहारी जायसवाल ही भरोसा जताया है.

विशेष बात- भाजपा प्रत्यशी श्यामबिहारी तीसरी बार चुनाव लड़ रहे हैं. 2013 में विधायक बने थे. 2018 में हार गए थे. कई तरह के विवादों को लेकर चर्चा में रहे हैं.

कांग्रेस प्रत्याशी रमेश सिंह 2008 में निर्दलीय चुनाव लड़ चुके हैं. रमेश पेशे से अधिवक्ता हैं. उम्रदराज हैं. क्षेत्र में लोकप्रिय हैं. डॉ. विनय जायसवाल की नाराजगी का असर दिख सकता है.

2018 का आंकड़ा- कांग्रेस प्रत्याशी डॉ. विनय जायसवाल ने भाजपा प्रत्याशी श्यामबिहारी को 4 हजार 74 वोटों से हराया था.
डॉ. विनय को 35819 और श्यामबिहारी को 31745 वोट मिले थे.

राज्य बनने के बाद- राज्य बनने के बाद हुए चार चुनावों में 2 बार कांग्रेस और 2 बार भाजपा जीती है. 2003 में कांग्रेस, 2008 और 13 में भाजपा, 2018 में कांग्रेस जीती.

स्थानीय जानकारों के मुकाबला बराबरी का मुकाबला है.

बैंकुठपुर (अनारक्षित सीट)- पुराने चेहरों पर ही दांव, दोनों फिर से आमने-सामने.

इस सीट पर भाजपा और कांग्रेस प्रत्याशी फिर से आमने-सामने हैं. दोनों के बीच दूसरी बार चुनावी जंग है. पार्टी ने पुराने चेहरों ही दांव लगाया है. भाजपा से पूर्व मंत्री भईया राजवाड़े उम्मीदवार हैं. वहीं कांग्रेस ने विधायक अंबिका सिंहदेव पर फिर से भरोसा जताया है.

विेेशेष बात- भाजपा प्रत्याशी भैय्यालाल राजवाड़े पाचवीं बार चुनाव लड़ने जा रहे हैं. 2003 में पहला चुनाव हारे थे. 2008 और 13 में जीते थे, फिर 18 में हारे थे. . दो बार विधायक और रमन सरकार में मंत्री रह चुके हैं. अपने उटपटांग बयानों को लेकर चर्चाओं में रहते हैं. ओबीसी वर्ग से आते हैं

वहीं कांग्रेस प्रत्याशी अंबिका सिंहदेव दूसरी बार चुनाव लड़ रहीं हैं. अंबिका सिंहदेव कोरिया राजपरिवार की बेटी और स्व. रामचंद्र सिंहदेव की भतीजी हैं.

2018 का आंकड़ा- अंबिका सिंहदेव ने भैय्यालाल को 5 हजार 339 वोटों से हराया था. सिंहदेव को 48885, जबकि राजवाड़े को 43546 वोट मिले थे.

राज्य बनने के बाद- राज्य बनने के बाद हुए चार चुनावों में 2 बार भाजपा और 2 बार कांग्रेस जीती है. 2003 में कांग्रेस, 2008 और 13 में भाजपा, 2018 में कांग्रेस जीती.

स्थानीय जानकारों के मुताबिक भाजपा इस बार बाजी मार सकती है.

प्रेमनगर (अनारक्षित सीट)- भाजपा ने बदला चेहरा, नए-पुराने के बीच जंग

इस सीट पर भाजपा ने चेहरा बदल दिया है. यहां मुकाबला पुराने और नए चेहरे के बीच है. कांग्रेस ने अपने वरिष्ठ विधायक खेल साय सिंह को एक बार से उम्मीदवार बनाया है. वहीं भाजपा ने भूलन सिंह मरावी को प्रत्याशी बनाया है. 2018 में भाजपा से विजय प्रताप सिंह लड़े थे.

विशेष बात- यह सीट अनारक्षित सीट है. लेकिन इस सीट पर आदिवासी वर्ग का ही वर्चस्व रहा है.

कांग्रेस प्रत्याशी खेलसाय सिंह चार बार विधायक और तीन बार सांसद रह चुके हैं. सरगुजा संभाग के सबसे वरिष्ठ विधायक हैं. अविभाजित मध्यप्रदेश में मंत्री रह चुके हैं.

भाजपा प्रत्याशी भूलन सिंह मरावी पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ रहे हैं. सूरजपुर जिला भाजपा उपाध्यक्ष हैं. जिला पंचायत के सदस्य रह चुके हैं.

2018 का आंकड़ा- कांग्रेस प्रत्याशी खेलसाय सिंह ने भाजपा प्रत्याशी विजय प्रताप को 15 हजार 340 वोटों से हराया था. साय को 66475, जबकि विजय को 51135 वोट मिले थे.

राज्य बनने के बाद- राज्य बनने के बाद हुए चार चुनावों में 2 बार बीजेपी और 2 बार कांग्रेस जीती है. 2003 और 08 में भाजपा, जबकि 2013 और 18 में कांग्रेस.

स्थानीय जानकारों के मुताबिक खेलसाय सिंह का पलड़ा भारी है.

भटगांव ( अनारक्षित सीट )- भाजपा ने बदला चेहरा, कांग्रेस को पारस पर ही भरोसा

इस सीट पर भी भाजपा ने चेहरा बदल दिया है. भाजपा ने इस बार लक्ष्मी राजवाड़े को उम्मीदवार बनाया है. 2018 में रजनी रविशंकर त्रिपाठी प्रत्याशी थीं. वहीं कांग्रेस ने विधायक पारसनाथ राजवाड़े पर ही भरोसा जताया है.

विशेष बात- कांग्रेस प्रत्याशी पारसनाथ राजवाड़े लगातार दो बार के विधायक हैं. तीसरी बार चुनाव लड़ रहे हैं. रजवार समाज के प्रांतीय संरक्षक हैं. सामाजिक रूप से सक्रिय रहते हैं. लोप्रोफाइल नेता की छवि है.

भाजपा प्रत्याशी लक्ष्मी राजवाड़े पहली बार चुनाव लड़ रही हैं. जिला पंचायत सदस्य हैं. सूरजपुर जिला महिला मोर्चा की अध्यक्ष हैं. आर्थिक रूप से मध्यमवर्गीय परिवार से हैं. ओबीसी वर्ग से हैं.

राजवाड़े समाज की आबादी सर्वाधिक है. इस बार दोनों ही प्रत्याशी इसी समाज से हैं.

2018 का आंकड़ा- पारसनाथ राजवाड़े ने कांग्रेस प्रत्याशी रजनी रविशंकर त्रिपाठी को 15 हजार 734 वोट से हराया था. पारसनाथ को 74623 वोट और रजनी रविशंकर को 46043 वोट मिले थे.

राज्य बनने के बाद- भटगांव विधानसभा 2008 में बना है. एक उपचुनाव सहित चार चुनावों में 2 बार भाजपा और 2 बार कांग्रेस जीती है. 2008 में भाजपा, 2010 उपचुनाव में भाजपा, 2013 और 18 में कांग्रेस.

स्थानीय जानकारों के मुताबिक इस बार यहां मुकाबला 50-50 का है.

प्रतापपुर ( एसटी आरक्षित सीट)- भाजपा और कांग्रेस दोनों ने बदला चेहरा, महिलाओं को दिया मौका

इस सीट पर भाजपा और कांग्रेस दोनों ही नए चेहरों पर दांव लगाया है. दोनों ही दल ने इस बार महिलाओं को मौका दिया है. बीते कई चुनावों में यहां परंपरागत रूप से भाजपा नेता रामसेवक पैकरा और कांग्रेस नेता डॉ. प्रेमसाय सिंह टेकाम के बीच मुकाबला होता रहा है. लेकिन इस कांग्रेस ने राजकुमारी मरावी को प्रत्याशी बनाया. वहीं भाजपा ने शकुंतला पोर्ते को उम्मीदवार बनाया है.

विशेष बात- भाजपा प्रत्याशी शंकुतला पोर्ते पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ रही हैं. बलरामपुर जिला महिला मोर्चा की अध्यक्ष हैं. क्षेत्र में बीते कई सालों से सक्रिय हैं. वहीं कांग्रेस प्रत्याशी राजकुमारी मरावी जिला पंचायत अध्यक्ष हैं. पहली बार चुनाव लड़ रही हैं. कांग्रेस को यहां गुटबाजी का सामना करना पड़ रहा है.

2018 का आंकड़ा- डॉ. प्रेमसाय सिंह टेकाम ने रामसेवक पैकरा को 44 हजार 105 वोटों के रिकॉर्ड अंतर से हराया था. टेकाम को 90148 वोट, जबकि पैकरा को 46043 वोट मिले थे.

राज्य बनने के बाद- राज्य बनने के बाद हुए चार चुनावों में 2 बार भाजपा और 2 बार कांग्रेस जीती है. 2003 और 13 में भाजपा, 2008 और 18 में कांग्रेस.

स्थानीय जानकारों के मुताबिक भाजपा यहां मजबूत है.

रामानुजगंज ( एसटी आरक्षित सीट) भाजपा और कांग्रेस दोनों ने बदला चेहरा, पूर्व मंत्री और महापौर में मुकाबला

इस सीट पर इस बार दोनों ही पार्टियों ने चेहरा बदल दिया है. भाजपा ने इस बार रामविचार नेताम पर फिर से भरोसा जताया है. वहीं कांग्रेस ने लगातार दो बार के तेज-तर्रार विधायक बृहस्तप सिंह को टिकट न देकर अंबिकापुर महापौर डॉ. अजय तिर्की को उम्मीदवार बनाया है.

विशेष बात- डॉ. अजय तिर्की पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ रह हे हैं. टीएस सिंहदेव के करीबी हैं. जनता के बीच लोकप्रिय और साफ-सुथरे छवि के नेता हैं. वहीं रामविचार नेताम दिग्गज आदिवासी नेता हैं. 5 बार विधायक और राज्यसभा सांसद रह चुके हैं. रमन सरकार में गृहमंत्री रहे हैं. सरगुजा अंचल में भाजपा के सबसे बड़े नेता हैं.

2018 का आंकड़ा- बृहस्तप सिंह ने रामकिशुन सिंह को 32 हजार 916 मतों से हराया था. बृहस्पत को 64580 और रामकिशुन को 31664 वोट मिले थे.

स्थानीय जानकारों के मुताबिक भाजपा प्रत्याशी नेताम की स्थिति मजबूत है. कांग्रेस को बृहस्पत की नाराजगी भारी पड़ सकती है.

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सामरी (एसटी आरक्षित सीट )- कांग्रेस और भाजपा ने दोनों ने बदला चेहरा, पहली बार लड़ रहे हैं चुनाव

इस सीट पर भी कांग्रेस और भाजपा ने अपने पुराने चेहरों की जगह नए चेहरों पर भरोसा जताया है. कांग्रेस ने दो बार के विधायक चिंतामणि महराज की टिकट काट दी है, जबकि भाजपा ने भी सिद्धनाथ पैकरा को दोबारा मौका नहीं दिया है. कांग्रेस ने विजय पैकरा को उम्मीदवार बनाया. वहीं भाजपा ने उद्धेश्वरी पैकरा पर दांव लगाया है.

विशेष बात- दोनों ही प्रत्याशी पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ रहे हैं. भाजपा प्रत्याशी उद्धेश्वरी पैकरा दो बार जनपद रह चुकी हैं. तीन बार जिला पंचायत सदस्य रही हैं. भाजपा प्रदेश उपाध्यक्ष हैं. वहीं कांग्रेस प्रत्याशी विजय पैकरा भी पहली विधानसभा चुनाव लड़ रहे हैं. दो बार सरपंच रहे हैं. जनपद सदस्य रहे हैं. जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष रह चुके हैं.

चिंतामणि महराज की भाजपा में वापसी कांग्रेस के लिए चिंता की बात है.

2018 का आंकड़ा- चिंतामणि महारज ने सिद्धनाथ पैकरा को 21 हजार 923 वोटों से हराया था. महराज को 80620, जबकि पैकरा को 58697 वोट मिले थे.

राज्य बनने के बाद- राज्य बनने के बाद हुए चार चुनावों में 2 बार भाजपा और 2 बार कांग्रेस जीती है. 2003 और 08 में भाजपा और 2013 और 18 में कांग्रेस.

स्थानीय जानकारों के मुताबिक दोनों प्रत्याशियों के बीच कड़ी टक्कर है. चिंतामणि महराज बिगाड़ सकते हैं कांग्रेस का समीकरण.

लूंड्रा (एसटी आरक्षित सीट)- भाजपा ने बदला चेहरा, कांग्रेस राम भरोसे

इस सीट पर भाजपा ने चेहरा बदल दिया है. भाजपा ने अंबिकापुर के पूर्व महापौर प्रबोध मिंज को उम्मीदवार बनाय है. 2018 में विजय पैकरा चुनाव लड़े थे. वहीं कांग्रेस दो बार से लगातार विधायक डॉ. प्रीतम राम पर ही भरोसा जताया है.

विशेष बात- कांग्रेस प्रत्याशी डॉ. प्रीतम राम सहज-सरल छवि के नेता माने जाते हैं. दो बार से लगातार विधायक हैं. टीएस सिंहदेव के करीबी हैं. वहीं भाजपा प्रत्याशी प्रबोध मिंज अंबिकापुर से दो बार महापौर रहे हैं. पहले कांग्रेस में रह चुके हैं.

2018 का आंकड़ा- डॉ. प्रीतम राम ने विजय पैकरा को 22 हजार 179 वोटों से हराया था. डॉ. प्रीतम को 77773, जबकि विजय पैकरा को 55594 वोट मिले थे.

राज्य बनने के बाद- राज्य बनने के बाद हुए चार चुनावों में 3 बार कांग्रेस और 1 बार भाजपा जीती है. 2003 में भाजपा और 2008, 13 और 18 में कांग्रेस.

स्थानीय जानकारों के मुताबिक कांग्रेस मजबूत है.

अंबिकापुर (अनारक्षित सीट) – भाजपा ने बदला चेहरा, सिंहदेव बनाम अग्रवाल

इस बार इस सीट पर मुकाबला नए और पुराने चेहरों के बीच है. कांग्रेस से उपमुख्यमंत्री टीएस सिंहदेव चौथी बार चुनावी मैदान में हैं. वहीं भाजपा ने कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आने वाले नेता राजेश अग्रवाल को उम्मीदवार बनाया है. 2018 में अनुराग सिंहदेव भाजपा से चुनाव लड़े थे.

विशेष बात- टीएस सिंहदेव 2008 से लगातार जीत रहे हैं. सरगुजा के महाराजा है. मुख्यमंत्री पद के रेस में हैं. सौम्य छवि के लोकप्रिय नेता हैं. वहीं राजेश अग्रवाल पहले कांग्रेस में रह चुके हैं. कांग्रेस के गढ़ वाले लखनपुर-उदयपुर इलाके में लोकप्रिय हैं. लखनपुर से नगर पंचायत अध्यक्ष रह चुके हैं. भाजपा में आने से पहले सिंहदेव के करीबी रहे हैं. पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ रहे हैं.

2018 का आंकड़ा- टीएस सिंहदेव ने अनुराग सिंहदेव को 39 हजार 624 वोटों से हराया था. टीएस बाबा को 100439, जबकि अनुराग को 60815 वोट मिले थे.

राज्य बनने के बाद- राज्य बनने के बाद हुए चार चुनावों में 1 बार भाजपा और 3 बार कांग्रेस जीती है. 2003 में भाजपा और 2008 से 18 तक लगातार कांग्रेस.

स्थानीय जानकारों के मुताबिक मुकाबला दिलचस्प होगा, लेकिन बाबा भारी पड़ेंगे.

सीतापुर (एसटी आरक्षित सीट) – भाजपा ने चेहरा बदला, मंत्री को पूर्व सैनिक की चुनौती

इस सीट पर भाजपा ने चेहरा बदल दिया है. भाजपा ने नए चेहरे पर दांव लगाया है. पूर्व सैनिक रामकुमार टोप्पो को उम्मीदवार बनाया है. 2018 में प्रो. गोपाल राम चुनाव लड़े थे. वहीं कांग्रेस ने मंत्री अमरजीत भगत पर ही भरोसा जताया है.

विशेष बात- कांग्रेस प्रत्याशी अमरजीत भगत- लगातार चार बार के विधायक हैं. खाद्य एवं संस्कृति मंत्री हैं. अजीत जोगी के बेहद करीबी रहे हैं. वर्तमान भूपेश बघेल के सबसे करीबी नेताओं में से एक हैं. सरगुजा अंचल के चर्चित नेता हैं. वहीं भाजपा प्रत्याशी रामकुमार टोप्पो से मुकाबला है. रामकुमार टोप्पो भूतपूर्व सैनिक हैं. चुनाव के ठीक पहले भाजपा प्रवेश कर राजनीति में आए हैं.

2018 का आंकड़ा- अमरजीत भगत ने प्रो. गोपाल राम को 36 हजार 137 वोटों से हराया था. भगत को 86670 और प्रो. गोपाल को 50533 वोट मिले थे.

राज्य बनने के बाद- राज्य बनने के बाद हुए चार चुनावों में कांग्रेस ही जीती है. 2003 से लगातार कांग्रेस जीत रही है.

स्थानीय जानकारों के मुताबिक मुकाबला इस सीट पर दिलचस्प है. मंत्री के लिए इस बार चुनाव आसान नहीं है.

जशपुर ( एसटी आरक्षित सीट )- भाजपा ने बदला चेहरा, कांग्रेस में विनय बरकार

जशपुर सीट में भी भाजपा ने चेहरा बदला है. यहाँ इस बार रायमुनि भगत उम्मीदवार हैं. 2018 में गोविंद राम भगत चुनाव लड़े थे. कांग्रेस ने अपने मौजूदा विधायक पर ही भरोसा जताया है.

विशेष बात- विनय भगत दूसरी बार चुनावी मैदान में हैं. विवादों से दूर रहने वाले और समाज में सक्रिय नेता हैं. रायमुनि भगत संघ की पृष्ठभूमि से आती हैं. राजनीति में आने से पहले शिक्षक रही हैं. जिला पंचायत अध्यक्ष हैं. क्षेत्र में सक्रिय और जुझारू महिला नेत्री हैं.

2018 का आंकड़ा- विनय भगत ने गोविंद राम को 8 हजार 26 वोटों से हराया था. विनय को 71963 और गोविंद राम को 63937 वोट मिले थे.

राज्य बनने के बाद- राज्य बनने के बाद हुए चार चुनावों में 3 बार भाजपा और 1 बार कांग्रेस जीती है. 2003, 08 और 13 में भाजपा, 2018 में कांग्रेस

स्थानीय जानकारों के मुताबिक रायमुनि बाजी पलट सकती है.

कुनकुरी ( एसटी आरक्षित सीट) – भाजपा ने बदला चेहरा, कांग्रेस में मिंज प्यारे

इस सीट पर भी भाजपा ने चेहरा बदल दिया है, लेकिन प्रत्याशी नए नहीं है. भाजपा ने पूर्व केंद्रीय मंत्री विष्णुदेव साय को उम्मीदवार बनाया. साय पहले भी विधायक रह चुके हैं. हालांकि छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद पहली बार विधानसभा का चुनाव लड़ रहे हैं. 2018 में इस सीट भरत साय चुनाव लड़े थे. कांग्रेस ने मौजूदा विधायक यूडी मिंज पर ही भरोसा जताया है.

विशेष बात- भाजपा प्रत्याशी विष्णुदेव साय – दो बार प्रदेश अध्यक्ष र चुके हैं . मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में केंद्रीय राज्य मंत्री रहे हैं. तीन बार सांसद और विधायक रह चुके हैं. करीब तीन दशक बाद फिर से विधानसभा चुनाव लड़ रहे हैं. वहीं कांग्रेस प्रत्याशी यू.डी. मिंज से मुकाबला है. यू.डी. मिंज पहली बार के विधायक हैं, दूसरी बार चुनाव लड़ रहे हैं. मतांतरित आदिवासी समाज में मजबूत पकड़ रहे हैं.

2018 का आंकड़ा- यूडी मिंज ने भरत साय को 4 हजार 293 वोटों से हराया था. मिंज को 69896 और साय को 65603 वोट मिले थे.

राज्य बनने के बाद- राज्य बनने के बाद हुए चार चुनावों में 3 बार भाजपा और 1 बार कांग्रेस जीती है. 2003, 08 और 13 में भाजपा, 2018 में कांग्रेस.

स्थानीय जानकारों के मुताबिक विष्णुदेव साय बाजी पलट सकते हैं.

पत्थलगांव (एसटी आरक्षित सीट) – भाजपा ने बदला चेहरा, कांग्रेस से 10वीं बार पुकार

इस सीट पर भी भाजपा ने चेहरा बदल दिया है. भाजपा ने सांसद गोमती साय पर भरोसा जताया है. 2018 में इस सीट से शिवशंकर पैकरा लड़े थे. वहीं कांग्रेस ने अपने दिग्गज आदिवासी नेता और 90 सीटों में सबसे वरिष्ठ विधायक रामपुकार सिंह पर ही भरोसा जताया है.

विशेष बात- कांग्रेस प्रत्याशी रामपुकार सिंह – छत्तीसगढ़ विधानसभा के सबसे वरिष्ठ विधायक हैं. 8 बार के विधायक हैं. 10वीं बार विधानसभा चुनाव लड़ रहे हैं. जोगी सरकार में मंत्री रहे हैं. अपनी सहजता-सरलता और सौम्य छवि के लिए लोकप्रिय हैं. वहीं भाजपा प्रत्याशी गोमती साय से मुकाबला है. गोमती साय पहली विधानसभा चुनाव लड़ रही हैं. पहली बार की सांसद हैं. जशपुर जिला पंचायत की अध्यक्ष रह चुकी हैं.

2018 का आंकड़ा- रामपुकार सिंह ने शिवशंकर पैकरा को 36 हजार 686 वोटों से हराया था. सिंह को 96599 और पैकरा को 59913 वोट मिले थे.

राज्य बनने के बाद- राज्य बनने के बाद हुए चार चुनावों में 3 बार कांग्रेस और 1 बार भाजपा जीती है. 2003, 08 और 18 में कांग्रेस, 2013 में भाजपा.

स्थानीय जानकारों के मुताबिक मुकाबला कड़ा है, लेकिन रामपुकार मजबूत हैं.

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