गोरखपुर. जिले में एक कथावाचक के वाहन चालक को साधना के दौरान अंर्तमन से आवाज आई कि उसे भारत रत्न मिलना चाहिए और उसने कमिश्नर कार्यालय में मांग पत्र दे दिया. किसी भी अफसर ने चालक के अंर्तमन से उठी आवाज के बाद की गई मांग की गंभीरता और औचित्य पर विचार करने की जहमत नहीं उठाई. तीन महीने में यह मांग पत्र अफसरों के टेबल से होता हुआ रिपोर्ट के लिए लेखपाल तक पहुंच गया. इस बीच सोशल मीडिया पर वायरल हुआ मांग पत्र चर्चा का विषय बना हुआ है.

पिपराइच इलाके के महराजा उत्तर टोला निवासी विनोद कुमार गौड़ ने कमिश्नर को संबोधित मांग पत्र में बताया है कि वह एक कथावाचक की गाड़ी चलाता है. संध्या वंदन के दौरान उसके अंर्तमन से आवाज उठी कि उसे भारत रत्न मिलना चाहिए. इसके बाद 30 सितंबर को उसने कमिश्नर कार्यालय में मांग पत्र दे दिया. कमिश्नर कार्यालय से 11 अक्तूबर को मांग पत्र अपर आयुक्त न्यायिक को भेज दिया गया.

वहां से पत्र डीएम कार्यालय पहुंचा. अगले ही रोज 12 अक्तूबर को डीएम कार्यालय से सीडीओ को मार्क कर दिया गया. इसके बाद एसडीएम सदर और तहसील के अन्य अफसरों के यहां से होते रिपोर्ट के लिए पत्र लेखपाल के पास पहुंच गया. अफसरों के दस्तखत और मुहर के साथ मांग पत्र मातहतों को बढ़ाया गया है. लेखपाल ने आवेदक से संपर्क किया है.

बकौल विनोद, लेखपाल ने उसके कामकाज के बारे में पूछा है कि किस काम के लिए भारत रत्न दिया जाना चाहिए. वहीं विनोद, सांसद से भी गुहार लगा रहा है.

साधना से हुआ जुड़ाव

भारत रत्न की मांग करने वाला विनोद ई-रिक्शा चलाकर परिवार का भरण-पोषण कर रहा था. उसके दो बेटे हैं एक बीए फाइनल में है और दूसरा बी-फार्मा कर रहा है. 21 जुलाई को ई-रिक्शा चोरी हो गया. इसके बाद वह एक कथावाचक का ड्राइवर बन गया और साधना भी करने लगा. साधना के दौरान उसके अंर्तमन से आवाज आई कि वह जो कर रहा है, उसके लिए भारत रत्न मिलना चाहिए.

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विनोद सबसे पहले मांग पत्र लेकर पैडलेगंज चौकी पर गया था. विनोद का कहना है कि वहां पुलिसकर्मियों ने प्रार्थना पत्र पढ़ा और उसे गंभीरता से नहीं लिया. आपस में बातचीत करने लगे कि ये भारत रत्न क्या होता है. बकौल विनोद- मैं समझ गया कि मेरी बातों को गंभीरता से नहीं ले रहे हैं. इसके बाद मैं कमिश्नर के पास गया. वहां पर भी मेरी बात अनसुनी की गई, लेकिन फिर मांग पत्र देने को कहा गया.

‘यह एक विशिष्ट केस’

बीआरडी मेडिकल कॉलेज मानसिक रोग विभाग के अध्यक्ष डॉ. तापस कुमार आईच ने कहा कि यह एक विशिष्ट केस है. पहले तो इस व्यक्ति के व्यक्तित्व का परीक्षण कर यह पता लगाना होगा कि वह जान बूझकर झूठ तो नहीं बोल रहा. इसके बाद किसी मनोविज्ञानी से केस स्टडी कराना होगा. तब जाकर पता लगेगा कि यह मानसिक रोग या जान बूझकर किया गया कृत्य है.