शिखिल ब्यौहार, भोपाल। मध्य प्रदेश में सत्ता का गलियारा आदिवासी मतदाताओं के बीच से होकर गुजरता है। इस बार के चुनाव में आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र में हुई जबरदस्त वोटिंग ने सियासतदारों की नींद उड़ा दी है। दूसरी बात यह कि इस बार आदिवासियों का मतदान भी साइलेंट रहा। दरअसल बीते चुनावी आंकड़ों के मुताबिक इस बार 15 फीसदी अधिक मतदान आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र में हुआ। बीते विधानसभा चुनावों की बात की जाए तो 47 सीटों में 16 पर बीजेपी, 30 पर कांग्रेस और एक पर निर्दलीय उम्मीदवार ने विजय श्री हासिल की थी। 

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पिछले तीन विधानसभा चुनावों को देखें तो आदिवासियों ने बढ़-चढ़कर मतदान में भाग लिया। 2018 में 11 विधानसभा क्षेत्र तो ऐसे थे जहां 80 प्रतिशत से अधिक मतदाताओं ने मताधिकार का उपयोग किया। 2008 के विधानसभा चुनाव में जो मतदान प्रतिशत 69.78 था वह 2013 में 72.13 और 2018 में 75.63 हो गया। निर्वाचन आयोग के आंकड़े बताते हैं कि 19 सीटों पर 80 प्रतिशत से ज्यादा मतदान हुआ है। 

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आदिवासियों की बंपर वोटिंग को देखते हुए कांग्रेस और बीजेपी अलग-अलग दावा कर रही है। कांग्रेस प्रदेश प्रवक्ता अवनीश बुंदेला का दावा है कि आदिवासियों का मतदान पिछली बार की तर्ज पर इस बार भी कांग्रेस के पक्ष में रहा है। कारण आदिवासियों के प्रति अत्याचार, नेमावर कांड, पेशाब कांड और एनसीआरबी की रिपोर्ट को बताया गया। जबकि बीजेपी प्रदेश प्रवक्ता सत्येंद्र जैन ने लाडली बहन योजना, तेंदूपत्ता को लेकर उठाए गए कदम, पेसा एक्ट, आदिवासियों की जीवन स्तर में सुधार जैसे मुद्दों पर पक्ष में मतदान का दावा किया है। साथ ही पलटवार किया कि 15 महीने की कांग्रेस सरकार में आदिवासियों पर सबसे ज्यादा अत्याचार हुए। लिहाजा आदिवासियों का वोट मोदी शिवराज की डबल इंजन सरकार को मिला है। 

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