अगर सरकार संवेदनशील है तो फिर कोई राह मुश्किल नहीं है. बेटियों के मर्म को समझने वाली रमन सरकार अपनी इसी संवेदनशीलता के लिए जानी जाती है. बेटियों की शिक्षा उनकी पहली प्राथमिकता में है और सरस्वती सायकल योजना इस प्राथमिकता की अहम कड़ी रही है. सरकार  बेटियों को मिडिल से हाई और हाई से हायर तक की शिक्षा के लिए प्रेरित करने सायकल योजना का लगातर विस्तारित कर रही है. रमन सरकार ने तय कर लिया था कि सत्ता में आते ही लड़कियों को शिक्षा की ओर प्रेरित किया जाए. उनकी जो भी तकलीफ है उसे दूर किया जाए. इसके साथ-साथ किसी भी छात्र  किताबे या गणवेश की वजह स्कूल नहीं जाने से वंचित नहीं होने दिया जाएगा. सरकार ने जैसा कहा, वैसा किया. सरकार ने सत्ता में आने के बाद सरस्वती सायकल योजना की शुरुआत की. सरकार के इन प्रयासों का परिणाम है कि स्कूलों में लड़कों से कहीं ज्यादा प्रतशित लड़कियों का हो गया है. 

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छत्तीसगढ़ की बेटियों के चेहरे पर अब हंसी और खिलखिलाहट. पंगडियों से पक्की सड़क तक घूमते पहियों के संग टिनटिन बजती घंटियां और समय पर स्कूल पहुँचने की सुकूं भरी राहत है. रमन सरकार ने बेटियों को सरस्वती सायकल दी, तो सरस्वती सायकल ने जैसे लड़कियों को न जाने क्या-क्या सौगातें दे दी. चेहरे पर हंसी, जी भर खुशी, ना थकान. ना परेशान. मुश्किल राहें हुई आसान. तभी तो रमन सरकार के लिए ये कहती बेटियां. सायकल नहीं मुख्यमंत्री ने तो उन्हें विद्या की देवी सरस्वती दे दी. दरअसल डॉ रमन सिंह द्वारा सूबे की सत्ता संभालने से पहले प्रदेश में कन्या शिक्षा के आंकड़े बेहद चिंताजनक थे. वहीं शाला त्यागी कन्याओं की संख्या होश उड़ा देने से कम नहीं थी. 2003 में सत्ता संभालने के बाद रमन ने इसे बेहद गंभीरता से लिया और उन्होंने इस पूरे मामले की पड़ताल करवाई जिसमें कई बातें निकल कर सामने आई. सूबे में स्कूलों की संख्या कम होना, घर से स्कूल की दूरी ज्यादा होना सहित कई वजहें सामने थी. स्कूल कम होने की वजह से घर से उनकी दूरियां काफी ज्यादा थी. जिससे पैदल आने जाने में काफी ज्याद समय लग जाता था.  जिसके बाद मुख्यमंत्री ने बेटियों की शिक्षा के लिए इन सारी वजहों को दूर करने का फैसला लिया. इसी फैसले की देन है सरस्वती सायकल योजना. 2005 में यह योजना अस्तित्व में आई और हर साल स्कूली छात्राओं को सरकार द्वारा इस योजना के माध्यम से निशुल्क साइकिल वितरित की जा रही है. हालांकि प्रदेश में स्कूलों के विस्तार के लिए भी सरकार ने लंबी योजना बनाना शुरु कर दिया था.

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रमन सरकार द्वारा 2005 में शुरु की गई इस योजना के बेहद सकारात्मक परिणाम साल दर साल सामने आने लगे. पहले जहां स्कूल दूर होने की वजह से छात्राओं को पैदल स्कूल आना-जाना पड़ता था. घंटों पैदल चलने के बाद वे भी थक जाती थी. इस वजह से परिजन छात्राओं को स्कूल जाने से रोका करते थे. अब वही परिजन उन्हें स्कूल भेजना शुरु कर दिए हैं. खासतौर से बस्तर जैसे वनांचल इलाकों में इसका काफी प्रभाव पड़ा. यहां छात्राओं को स्कूल जाने का प्रतिशत बेहद कम था. जो कि इस योजना के बाद काफी बढ़ गया. यहां तक कि स्कूल में उपस्थिति के मामले में छात्राओं ने लड़कों को काफी पीछे छोड़ दिया. सरकार ने शुरुआत में तो योजना एससी और एसटी वर्ग की छात्राओं के लिए किया था. लेकिन बाद में इस योजना में पिछड़ा और सामान्य वर्ग की छात्राओं को भी शामिल कर लिया गया. सरस्वती सायकल योजना ने प्रदेश में बेटियों को सम्मान दिलाया है. बेहतर भविष्य दिया है, जिन बेटियों ने पढ़ाई बीच में छोड़ रखी थी, योजना के तहत मिली सायकल की वजह से आज वहीं बेटियां उच्च शिक्षा हासिल कर चुकी हैं. मुख्यमंत्री डाॅ.रमन सिंह कहते हैं कि-

सरस्वती साइकिल योजना से राज्य की लड़कियों का हौसला बढ़ा है, ये योजना छात्राओं के उच्च शिक्षा में सहायक साबित हुई है. ‘मेरा विश्वास है कि एक शिक्षित महिला एक शिक्षित समाज का निर्माण करती है. ‘ये बात मुझे खुशी देती है कि सरस्वती साइकिल योजना छत्तीसगढ़ की लड़कियों का आत्मविश्वास बढ़ा रही है.

सरस्वती सायकल योजना का परिणाम ये है कि आज स्कूलों में छात्राओं की संख्या छात्रों से ज्यादा हो गई है. स्कूल शिक्षा मंत्री बताते हैं कि अब 98 प्रतिशत छात्राएं स्कूलों पढ़ने जा रही हैं. केदार कश्यप इसके लिए सरस्वती सायकल योजना को बेहद अहम बताते हैं. वे कहते हैं कि मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने के प्रयासों की वजह से आज बस्तर से लेकर सरगुजा तक बेटियां नंबर वन है.

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जिंदली मानो उड़ान भर रही

सरस्वती सायकल योजना के तहत जिन बेटियों को सरकार की योजना का फायदा मिला. उनके अरमानों को भी पंख लग गए. बेटियां अब किसी पर निर्भर न रही. दूर तक अकेले जाने की चिंता भी अब उन्हें नहीं होती. ऐसी ही एक हितग्राही है जागृति. वह कहती है कि पहले उन्हें पैदल दूर से आना पड़ता था, लेकिन अब ये दूरियां सायकल ने जैसे मिटा दी है. जागृति की तरह ही पिंकी भी कुछ ऐसा ही कहती है. वो बताती अब सायकल से स्कूल पहुँचने की वजह से दूर का पता तो नहीं चलता साथ ही समय की बचत भी हो जाती है. पूर्णिमा भी रमन सरकार की इस योजना से बेहद खुश है.
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योजना एक नजर में-

  • 2005 में सरस्वती सायकल योजना की शुरुआत.
  • 2003 तक प्रदेश में लड़कों के मुकाबले 65 प्रतिशत तक लड़कियां हाईस्कूल तक की शिक्षा ग्रहण कर पाती थी.
  • 2015 में यह आंकड़ा बढ़कर लड़कों के मुकाबले 93 फीसदी तक पहुँच गया.
  • इस योजना के तहत वर्ष 2017-18 में 1 लाख 82 हजार 476 छात्राओं को निशुल्क सायकल का वितरण किया गया.

सरकार की इस योजना से लाभांवित छात्राओं की खुशी देखते बनती है. वहीं छात्राओं के परिजनों को भी चिंता मुक्त होते हुए देखा जा सकता है. जिस उद्देश्य के साथ सरकार ने योजना की शुरुआत की थी उसे छात्राओं ने सफल कर दिया. वाकई में राज्य सरकार शिक्षा पर जोर देकर उसमें बालिका शिक्षा पर जोर देकर प्रदेश को विकास की राह में सबसे तेजी के साथ आगे बढ़ते हुए राज्यों में श्रेणी में ला खड़ा किया है. सच्चे अर्थों में कहे तो शिक्षा से वंचित रहने वाली बेटियों की इच्छा को पूरा कर एक सच्चे अभिभावक की भूमिका अदा की है मुख्यमंत्री ने. ऐसे में भला उस नारे को हम क्यों ना दोहराए …..स्कूल आ पढ़े बर….जिनगी ला गढ़े बर….

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