रायपुर. जलसंवर्धन की अनुपम संस्कृति व परंपरा के संकलन, रोड़ मैप विषय पर आधारित आयोजित कार्यशाला में हिस्सा लेने गए छत्तीसगढ़ सरकार के मंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने विचार रखते हुए कहे कि परम्पराओं और संस्कृति के माध्यम से जल को संरक्षित किया जा सकता है. इस दौरान उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ एक ऐसा प्रदेश है जहां के निवासी बादलों की पूजा करते है. यहां के लोककथाओं, गीते व छत्तीसगढ़ी संस्कृति में जल संरक्षण के महत्व की क्षलक मिलती है.

उन्होंने कहा कि जल संस्कृति व जल के संरक्षण की कहानी मानव सभ्यता के विकास के समान ही पुरानी हैं. खास कर जब बात छत्तीसगढ़ की हो तो नदी,  तालाब,  कुंए के बिना इसके इतिहास को समझना नामुमकिन ही हैं. छत्तीसगढ़ की लोककथाओं, परंपराओं में तालाब, कुएं आदि के निर्माण तथा इसके संरक्षण के उपायों की कई गाथाएं दर्ज हैं। छत्तीसगढ़ में लोकगीतों, गाथाओं में ऐसी कई कहानियां बसती हैं जिनका सीधा संबंध जल संरक्षण से हैं. कार्यशाला का आयोजन दीनदयाल शोध संस्थान द्वारा आयोजित किया गया था. इस अवसर पर  सुरेश सोनी सहित देश के अनेक राज्यों से आए गणमान्य नागरिकगण भी उपस्थित रहे.

पुरानी संस्कृति के माध्यम से जलसंरक्षण को दिया जा सकता मूर्तरुप

कार्यक्रम के दौरान जलसंरक्षण विषय़ पर विचार रखते हुए छत्तीसगढ़ सरकार के मंत्री अग्रवाल ने कहा कि,  जल संरक्षण के संबंध में हमारे देश में जो पुरानी संस्कृति रही हैं यदि हम उन संस्कृति को फिर से जीवित करेंगे तो हमारे नदी, नाले, तालाब, पानी से फिर से भर जाएंगे. प्राचीन समय में किस प्रकार जल को संरक्षित कर उसका महत्व लोक-कथाओं, तीज त्यौहारो में देखने को मिलता था. उसका उन्होने विस्तृत उदाहरण कार्यशाला में दिया. उन्होने बताया कि, छत्तीसगढ़ का ’जल’ के साथ अनोखा रिश्ता हैं।

प्रदेश के सरगुजा में होती है बादलों की पूजा

अपनी अनोखी परंपरा व विभिन्न प्रचीन कलाओं से संपन्न प्रदेश, जहां पूरे दुनिया भर में एक ऐसा संस्कृति को मानने वालों में से है. जहां बादलों की पूजा की जाती है. प्रदेश के सरगुजा जिले के रामगढ़ में हर साल आषाढ़ के महीने के प्रथम दिन बादलों की पूजा की जाती है. महाकवि कालिदास ने यहीं आकर ’’मेघदूतम’’ महाकाव्य की रचना की थी। मंत्री अग्रवाल ने कहा कि, पानी की समृध्द संस्कृति को संरक्षित कर उसका डाक्युमेंनटेशन किया जाना आवश्यक हैं. आज यह आवश्यक हो गया है कि, परम्पराओं व संस्कृति का उपयोग पानी बचाने के लिए कैसे करे इस पर ध्यान देना होगा.

तालब के रुप में होती है प्रदेश की पहचान

मंत्री अग्रवाल ने कहा छत्तीसगढ़ की पहचान तालाबों से ही होती हैं. छत्तीसगढ़ के कई कहावतों से भी तालाबों के महत्व का पता चलता हैं। बिलासपुर के रतनपुर, मल्हार, खरौद आदि गांवो को ’छै आगर, छै कोरी’ यानि 126 तालाबों वाला गॉव कहा जाता है. सरगुजा, बस्तर के गांवो को ’सात आगर सात कोरी’ यानि 147 तालाबों वाला गॉव माना जाता हैं। ’लखनपुर में लाख पोखरा’ यानि सरगुजा की लखनपुर में लाख तालाब कहे जाते थे, आज भी यहां कई तालाब संरक्षित हैं. हमें फिर से कुओं की पुरानी संस्कृति को शुरू करना होगा. कुएं जल के स्तर को बनाए रखते हैं जिससे सिंचाई व पीने के लिए पानी की कमी दूर हो सकती है. उन्होंने कहा कि भाजपा सरकार किसानों की बेहतरी के लिए  व्यवस्था के लिए निरंतर प्रयास कर रही है. भैंसझार, केलो परियोजना, सुतियापाट और मोहड जैसी योजनांए संचालित की गई है. समुदायिक विकास तथा संसाधनों की उपलब्धता के विकेंद्रीकरण की नीति पर चलते हुए हमारी सरकार ने 600 से अधिक मिनी एनिकट और 3 हजार से ज्यादा लघु सिंचाई योजनांए बनाई है.