Udham Singh Birth Anniversary: भारत को अंग्रेजों से आजाद कराने के लिए कई क्रांतिकारियों ने अपने प्राणों की आहुति दी थी. जिनमें से एक सरदार उधम सिंह (Sardar Udham Singh) थे. 13 अप्रैल 1919 को पंजाब के अमृतसर में स्थित जलियांवाला बाग में अंग्रेजों ने निहत्‍थे भारतीयों पर अंधाधुंध गोलियां चलाई थीं. इस हत्याकांड के मुख्य आरोपी जनरल माइकल ओ’ ड्वायर (Michael O’Dwyer) को 21 साल बाद ढूंढ़कर सरदार उधम सिंह ने गोली मारकर नरसंहार का बदला लिया था. आज उन्हीं जाबांज उधम सिंह की जयंती है. आइये जानते हैं सरदार उधम सिंह के बारे में.

जलियांवाला बाग हत्याकांड

अमृतसर (Amritsar) में बैसाखी के दिन रॉलेट एक्ट का विरोध कर रहे भारतीयों पर अंग्रेज शासक के ब्रिगेडियर जनरल डायर (Michael O’Dwyer) के आदेश के बाद ब्रिटिश सेना की एक टुकड़ी ने अंधाधुंध गोलियां बरसाई थी. इस गोलीबारी में 1200 से भी ज्यादा पंजाब के लोग घायल हुए थे. कई महिलाओं, बच्चों और बुजुर्गों ने अपनी जान बचाने के लिए एक कुएं में छलांग लगा दी थी, जिनकी मौत हो गई थी. इस नरसंहार में 1000 से ज्यादा लोगों की जान गई थी, जिसमें बच्चे, बुजुर्ग, महिला और पुरुष शामिल थे.

21 साल बाद उधम सिंह ने लंदन में जाकर लिया बदला

पंजाब में हुए नरसंहार का बदला सरदार उधम सिंह ने 21 साल बाद 13 मार्च 1940 में लंदन में लिया. सरदार उधम सिंह ने लंदन के कैक्सटन हॉल में जाकर माइकल ओ डायर (Michael O’Dwyer) को गोली मारी थी. ये बदला सरदार उधम सिंह ने उस समय लिया जब जनरल डायर ईस्ट इंडिया एसोसिएशन और रॉयल सेंट्रल एशियन सोसायटी की एक खास बैठक में भाषण दे रहे थे. गोली लगने के बाद देखते ही देखते जनरल डायर ने दम तोड़ दिया.

शहीद उधम सिंह का जीवन परिचय

26 दिसंबर 1899 को पंजाब के संगरूर जिले के सुनाम गांव में उधम सिंह का जन्म हुआ था. माता पिता का नाम नारायण कौर और सरदार तेहाल सिंह था. उधम सिंह केवल 3 साल के थे, जब उनकी मां का देहांत हो गया था. कुछ सालों के बाद उनके पिता भी इस दुनिया को छोड़ कर चले गए. अनाथ हो जाने के कारण उधम और उनके भाई मुक्ता सिंह को अमृतसर के एक अनाथालय में शरण लेनी पड़ी. इस दौरान उनके बड़े भाई की भी मौत हो गई. वह पूरे अकेले हो गए थे. 1919 में उन्होंने अनाथालय छोड़ दिया और आजादी की लड़ाई में शमिल हो गए. वह पेशे से क्रांतिकारी थे और गदर पार्टी, हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन जैसे राजनीतिक पार्टी में शामिल थे.

इन नामों से जाने जाते थे शहीद उधम सिंह

विदेशों में फ्रैंक ब्राजील और बावा सिंह के नाम से रहे, लेकिन उनकी डायरी में वह अपना नाम केवल राम मोहम्मद सिंह आजाद (एमएस आजाद) लिखते थे. लंदन की दो जेलों में बंद रहने के दौरान उन्होंने दर्जनों पत्र लिखे और सभी पर एमएस आजाद नाम ही दर्ज था. खुद को राम मोहम्मद सिंह आजाद के नाम से स्थापित करने के पीछे उधम सिंह का मकसद केवल भारतीयों के मन में धर्मनिरपेक्षता की आवाज बुलंद करना था.

उधम सिंह को दी गई थी फांसी

उधम सिंह को 4 जून 1940 को जनरल डायर के हत्या के आरोप में दोषी करार दिया गया. 31 जुलाई 1940 को लंदन के पेंटोनविले जेल में उनको फांसी की सजा दी गई थी. जिसके बाद उधम सिंह के मृत शरीर के अवशेषों को उनकी पुण्यतिथि के अवसर पर 31 जुलाई 1974 को भारत को सौंपा गया था. उधम सिंह की अस्थियों को सम्मान के साथ भारत लाया गया और उनकी अस्थियों से उनके गांव में समाधि बनाया गया. उधम सिंह ने मात्र 40 साल के उम्र में देश के लिए अपने आप को समर्पण कर दिया था. जिस दिन उधम सिंह को फांसी दी गई थी उस दिन भारत में क्रांतिकारियों और स्वतंत्रता सेनानियों का आक्रोश अंग्रेज के प्रति और भी ज्यादा बढ़ गया था. इनके शहीद होने के 7 साल बाद भारत देश अंग्रेजों की गुलामी से आजाद हो गया.