रोहित कश्यप, मुंगेली. ‘कविता चौराहे पर’ सुनने में थोड़ा अजीब जरूर लगता है, लेकिन एक साहित्यकार अपने लिखी हुई नए-नए कविताओं को बोर्ड में लिखकर चौराहे पर इसलिए रख देता है ताकि वहां आने जाने वाले आमजन के साथ साथ स्कूली छात्र-छात्राएं उसकी कविताओं को पढ़े. और ऐसा वह 2005 से करते आ रहा है. अब तक इस साहित्यकार ने 246 अंक बोर्ड में लिख चुका है, जिससे इनको कई सम्मान भी हासिल हुए हैं. लोगों के मन से हटते साहित्य को बोर्ड में लिखकर अलख जगा रहे हैं इस साहित्यकार की हम आपको पूरी कहानी बता रहे हैं.
साहित्यिक दुनिया में आपने कई कवियों के नाम सुने होंगे जो अपनी कविताओं के माध्यम से मंच पर समा बांधते हैं और लोगों को रिझाये रहते हैं मगर आज हम आपको मुफलिसी जीवन यापन करने वाले एक ऐसे कवि से मिला रहे हैं जो अपनी कविताओं को किसी किताब में लिखकर या मंच पर पढ़कर नहीं सुनाते बल्कि चौराहे पर लिखा करते हैं, और यह काम वो लगातार 13 वर्षों से करते आ रहे हैं. इसके लिए उन्हें कई बार सम्मानित भी किया जा चुका है. पेशे से दर्जी का काम करने वाले इस शख्स का नाम राकेश निर्मल गुप्त है जो कि मुंगेली का रहने वाला है. राकेश निर्मल गुप्त ने अपनी काबिलियत और अंदर छिपी कला के माध्यम से न बल्कि मुंगेली जिले का बल्कि पूरे छत्तीसगढ़ का मान बढ़ाया है.
दरअसल पेशे से ट्रेलरी का काम कर मुफ़लिसी का जीवन यापन करने वाला राकेश निर्मल गुप्त मुंगेली के सबसे व्यस्तम मार्ग कहे जाने वाले चौक में 13 सालों से लोगों को प्रेरणा देने वाली कविता लिखते आ रहे है. और यह कविता समसामयिक परिस्थिति पर लिखी जाती है जो कि हमेशा लोगों मे चर्चा का विषय बना रहता है. निर्मल गुप्त जो कि खुद ही एक साहित्यकार है और मुंगेली में एक साहित्यकार समिति के अध्यक्ष भी है. वे बताते हैं कि बचपन से वह कविता प्रेमी रहे हैं और यही वजह है कि कविता पढ़ते पढ़ते खुद ही कविता लिखना सीख गए. गरीबी की वजह से अपनी कविताओं के संकलन का किताब में छपवाना मुमकिन नहीं था.
यही वजह है उन्हें एक नई तरकीब सूझी और अपनी कविताओं को लोगों को पढ़ाने के लिए चौक में एक बोर्ड लगा दिया, जिस पर रोजाना कविता लिखना प्रारम्भ किया. पहले खास अवसर पर ही यह साहित्यकार लिखा करते थे, लेकिन अब यह नए-नए कविताओं को चौराहों पर लिखकर रखते हैं. शुरुआती तौर पर कुछ लोग इसे देखकर हंसते भी थे तो आज वही लोग इनके कविताओं के मुरीद हो गए हैं.
निर्मल गुप्त बताते हैं जब लोग उनकी कविताओं को पढ़ते थे तो उन्हें अंदर से खुशी महसूस होती है. यही वजह है कि वो लागातार 13 वर्षों से यह अनोखा कार्य कर रहे हैं, जिसके लिए उन्हें देश के कई जगहों में सम्मानित भी किया जा चुका है. आज जब लोग अपनी साहित्य का उपयोग व्यवसाय के लिए करते हैं ऐसे समय में राकेश निर्मल गुप्त जैसे कवि के विचारधारा को जानकर लोगों के लिए यह किसी प्रेरणा से कम नहीं है. यही वजह है कि इस चौक से गुजरने वाले लोग पढ़ने वाले स्कूली बच्चे चौराहे में लिखे कविता को बिना पढ़े अपने आपको रोक नहीं पाते.
मुफलिसी में जीवन यापन कर साहित्य की अलख जगाने वाले इस जनाब ने अब तक 246 कविताएं लिख चुके हैं, लेकिन किसी पुस्तक में नहीं आया. अपनी कविताओं से यह आज लोगों के मन को मोह रहे हैं. कपड़ों की सिलाई करके दर्जी का काम करने वाले इस साहित्यकार को वाकई में बड़ा मंच मिलना चाहिए, जिससे ये अपने अंदर छिपी प्रतिभाओं को सबके सामने ला सके.