भारत का दिल कहे जाने वाले मध्यप्रदेश राज्य के छतरपुर जिले में स्थित खजुराहो (Khajuraho) का बहुत पुराना इतिहास (History) है। यह जगह विश्व धरोहर में भी शामिल है। यहां भारतीय आर्य स्थापत्य और वास्तुकला की बेमिसाल कला का दीदार किया जा सकता है। जिसे देखने के लिए देश से ही नहीं बल्कि विदेशों से भी पर्यटक आते हैं। मंदिरों में रतिक्रीड़ा, आध्यात्म, नृत्य मुद्राओं और प्रेम रस की प्रतिमाओं को बनाया गया है।

खजुराहो के लिए है अनमोल उपहार

खजुराहो के बनाए गए मंदिर कलात्मकता के अनमोल उपहार हैं। जिन्हें अतीत की संस्कृति ने सौंपा है। ये मंदिर दुनियाभर में प्रसिद्ध हैं, जो देश का गौरव हैं। इन मंदिरों का शिल्प अपने उदार अतीत की झांकी दिखाता है। ये मंदिर काम, धर्म, मोक्ष के जीवन दर्शन को दर्शाते हैं। प्रेम की उदात्त अभिव्यक्तियों को, जीवन के हर पक्ष को, धार्मिकता, युद्ध सभी को मूर्तिकारों ने बड़ी ज़ीवन्तता से पत्थरों पर उकेरा है।

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जानें मंदिरों का इतिहास

कहा जाता है कि राजपूतों के वंश की उत्पत्ति और इन मंदिरों के निर्माण के अतीत में एक कथा है। हेमावती, वन में स्थित एक सरोवर में स्नान कर रही थी तो उन्हे चन्द्रमा ने देखा और मुग्ध हो गया और उसे अपने वशीभूत कर उससे प्रेम-सम्बन्ध बना लिए। जिसके बाद हेमावती ने एक बच्चे को जन्म दिया। वहीं हेमावती और बालक को समाज ने अस्वीकार कर दिया। जिसके के बाद उसने वन में रह कर बच्चे का पालन पोषण किया और उसका नाम रखा चन्द्रवर्मन।

हेमावती ने मंदिर बनाने के लिए किया था प्रेरित

चन्द्रवर्मन ने बड़े होकर अपना राज्य कायम किया। कहा जाता है कि हेमावती ने चन्द्रवर्मन को प्रेरित किया कि वह मानव के भीतर दबे प्रेम व काम की उदात्त भावनाओं को उजागर करती मूर्तियों वाले मन्दिर बनाए। ऐसा करने से मानव को उसके अन्दर दबी इन कामनाओं का खोखला पन दिखाई दे और जब वे इन मन्दिरों में प्रवेश करें तो इन विचारों का त्याग चुके हों। चन्देल वंश के क्षरण में ये मन्दिर विस्मृति में डूबे सदियों घने जंगलों से घिरे रहे। जिसके बाद धीरे-धीरे समय का शिकार होते रहे। मंदिर का पूरी तरह बाहर आना पिछली सदी में ही संभव हुआ, तबसे अब तक ये मन्दिर कलात्मकता के विषय में दुनिया भर में प्रसिध्द हैं।

100 सालों में बनकर तैयार हुए थे मंदिर

ये मन्दिर मात्र 100 सालों में बन कर तैयार हो गए थे, लगभग 950 ए डी से लेकर 1050 के बीच। मन्दिर संख्या में करीब 85 थे, समय के प्रहारों से बचकर आज सिर्फ 22 ही मंदिर शेष हैं। जो कि कलात्मक ऊंचाइयों के उदाहरण है। साथ ही अपने सौंदर्य से आज भी संसार को चकित कर रहे हैं।

ये मंदिर अपने समय के मन्दिरों की बनावट से एकदम अलग हैं। हर मन्दिर एक ऊंचे विशाल प्लेटफार्म पर बना है। हर मन्दिर के मुख्य कक्ष की छत का मध्य भाग ऊंचाई पर है और बाहर की ओर आते-आते वह गोलाकार ढलान पर आ जाती है। वहीं छत के अन्दर बडी बारीक नक्काशियां की गईं हैं।

सभी मंदिर के है तीन मुख्य भाग

मन्दिर के तीन मुख्य भाग हैं। प्रथम जो द्वार है वह अर्धमण्डप है, द्वितीय भाग जहां लोग प्रार्थना करते हैं, वह मण्डप है, वहीं तृतीय भाग गर्भगृह कहलाता है, जहां देवता की मूर्ति की स्थापित होती है। और अधिक बड़े मन्दिरों में कई मण्डप व दो या अधिक गर्भगृह हैं। इन मंदिरों को भौगोलिक दृष्टि से ये देखे गो मन्दिर तीन विभिन्न समूहों में विभाजित हैं पश्चिमी, पूर्वी और दक्षिणी समूह।

कंदारिया महादेव मंदिर

कंदारिया महादेव मंदिर खजुराहो के मन्दिरों में सबसे बड़ा मंदिर है। इसकी ऊंचाई 31 मीटर है। यह मंदिर भगवान शिव का है, इसके गर्भगृह में एक विशाल शिवलिंग स्थापित है। इस मन्दिर के मुख्य मण्डप में देवी-देवताओं और यक्ष-यक्षिणियों की प्रेम लिप्त तथा अन्य प्रकार की मूर्तियां बनाई गई हैं। ये मूर्तियां इतनी बारीकी से गढी ग़ईं हैं कि इनके आभूषणों का एक-एक मोती अलग से नजर आया है। वहीं वस्त्रों की सलवटें तक स्पष्ट दिखाई देती हैं। वहीं शारीरिक गठन में एक-एक अंग थिरकता सा महसूस होता है।

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