रायपुर. महात्मा गांधी की 150वीं जयंती के अवसर पर सरकार और नक्सलियों के बीच मध्य भारत में शांति बहाली के लिए एक शांति पदयात्रा निकाली गई. जिसकी शुरुआत 2 अक्टूबर से हुई है. यह शांति यात्रा शुभ्रांशु चौधरी के द्वारा निकाला गया है. जो कि यह पदयात्रा तेलंगाना से प्रारंभ होकर जगदलपुर तक जाएगी. इस पदयात्रा में देश भर के सैकड़ों बुद्धिजीवी सामाजिक कार्यकर्ता पत्रकार एवं स्थानीय आदिवासी शामिल हुए. शांति पदयात्रा का माओवादियों ने विरोध जताया है. साथ ही शुभ्रांशु चौधरी का भी विरोध किया है. माओवादियों ने इस पदयात्रा को सरकार द्वारा प्रयोजित कार्यक्रम बताया है.
यह पदयात्रा कोंटा, सुकमा, तुंगापाल और झीरम होते हुए 10 दिन बाद शांति मार्च जगदलपुर पहुंचेगी. कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ माओवादी के दंडकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी के प्रवक्ता विकल्प में मंगलवार को एक ऑडियो जारी करते हुए कहा कि वे जनता के सुख चैन के लिए सरकार से वार्ता के लिए तैयार हैं, लेकिन सरकार को चाहिए कि वह बेहतर माहौल तैयार करे. माओवादियों ने बदले में बस्तर से पुलिस के जवानों और अर्धसैनिक बलों को वापस भेजने, उनके नेताओं को रिहा करने, झूठे माओवादी मामले में जेल में बंद ग्रामीणों को रिहा करने व उनकी पार्टी पर लगाए प्रतिबंध को हटाने की मांग की है.
माओवादियों ने यह मांगे पूरी होने पर ही शांति मार्च के संयोजक शुभ्रांशु चौधरी को रैली निकालने के लिए कहा है. प्रवक्ता ने सीपीआई पार्टी पर आरोप लगाते हुए कहा कि वे सीट पाने की लालच में अपनी विचारधारा से हट गए हैं. कुछ समय पहले पार्टी ने जो पदयात्रा की बात कही थी यह उसी का संशोधित वर्जन है. केंद्र में भाजपा की सरकार बनने के बाद गृहमंत्री राजनाथ सिंह कहते हैं कि हथियार छोड़ो तो शांति वार्ता की बात होगी. इधर रमन सिंह कहते हैं कि समर्पण करें नहीं तो गोली खाए. विरोधाभास सरकार के बीच में ही है इसलिए शांति वार्ता के लिए सरकार अपना रुख साफ करे.
शांति मार्च का आगाज सबरी आश्रम से शुरू होकर बस्तर वासियों को शांति दो आज़ादी दो नारे के साथ हुआ. किसान आदिवासियों का दल पारंपरिक लोक संगीत व गांधी जी के भजन गाते हुए निकला. देर शाम करीब 15 किलोमीटर सफर तय कर रैली इंजरम पहुंची. बुधवार 3 अक्टूबर को रैली में शामिल लोग यहां रात बिताने के बाद सुबह रवाना होकर 19 किलोमीटर का रास्ता तय कर बिरला पहुंचेंगे. दल में शामिल लोगों ने बताया कि बस्तर में सरकार और माओवादियों के बीच युद्ध में आदिवासी फंसे हुए हैं. जब तक यह लड़ाई थम नहीं जाती तब तक इन यहां रहने वाले आदिवासियों को राहत नहीं मिलेगी. संयोजक ने कहा कि कार्य में पिछले 40 साल से हिंसा का दौर चल रहा है, लेकिन इस अशांति के खिलाफ यहां शांति है. इस चुप्पी को तोड़ने व शांति के लिए माहौल का बनाने के लिए यह शुरुआत की गई है. दंडकारण्य के सभी 6 राज्यों के आदिवासी इस मार्च में शामिल है.