लखनऊ. पिछले लोकसभा चुनाव में जीते कई भाजपा सांसदों के सिर पर टिकट कटने की तलवार लटक रही है. मिशन 2019 में जीत का तानाबाना बुन रही भाजपा के रणनीतिकारों ने ज्यादातर जगहों पर मौजूदा सांसदों के प्रति लोगों में नाराजगी और शिकायतों को देखते हुए इस पर विचार शुरू कर दिया है.

इनमें वे सांसद भी शामिल हैं जो लगभग एक साल से चल रहे पार्टी के अभियानों में रुचि नहीं ले रहे हैं और वे भी जिन्होंने अपने क्षेत्रों में विकास कार्य कराने में दिलचस्पी नहीं दिखाई. पार्टी आलाकमान ने साफ कर दिया है कि वह आधे से ज्यादा सांसदों के टिकट काटेगी. इनमें से प्रदर्शन के आधार पर सांसदों के टिकट काटे जाएंगे. पार्टी के इस ऐलान के बाद अपना टिकट कटने की आशंका रखने वाले सांसदों ने दूसरे दलों के दरवाजा खटखटाना शुरु कर दिया है.

दरअसल, पिछले दिनों दिल्ली में पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के साथ मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य व डॉ. दिनेश शर्मा और प्रदेश महामंत्री संगठन सुनील बंसल की बैठक में सांसदों के प्रदर्शन तथा उनकी अपने क्षेत्र में छवि एवं पकड़ की समीक्षा की गई. जिसमें पाया गया कि उत्तर प्रदेश के करीब आधे सांसद इस पैमाने पर खरे नहीं उतर रहे हैं.

कुछ सांसदों का विधायकों और कार्यकर्ताओं से तालमेल तथा संवाद व संपर्क न रखना भी भाजपा नेतृत्व के लिए चिंता की वजह है. कई जिलों के पदाधिकारी यह शिकायत कर चुके हैं कि उनके यहां के सांसद अपने निजी समर्थकों का गुट बनाकर काम करते हैं। कई विधायक भी यही करते हैं. इस कारण संगठन की साख प्रभावित हो रही है. यह स्थिति चुनाव में संकट बढ़ा सकती है. सावित्री बाई फुले सहित कुछ सांसद अपनी बयानबाजी से भाजपा की मुसीबत बढ़ा रहे हैं.

जानकारी के मुताबिक, ऐसे सभी सांसदों की जगह नए लोगों को चुनाव लड़ाने की नीति बनी है. यह भी तय हुआ कि यदि रणनीति या समीकरणों के लिहाज से किसी को चुनाव लड़ाना जरूरी हो तो उसका क्षेत्र बदल दिया जाए.