वीरेंद्र गहवई, बिलासपुर. वकीलों को वरिष्ठ अधिवक्ता पद दिए जाने के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका लगाई गई थी, जिसे हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया है. हालांकि चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और रविन्द्र कुमार अग्रवाल की डबल बेंच ने नियमों में संशोधन की जरूरत बताई है. साथ ही कहा है कि वर्तमान नियमों के दुरुपयोग की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता है.
बता दें कि बिलासपुर के बादशाह सिंह ने हाईकोर्ट में याचिका लगाई थी, जिसमें कहा गया था कि वकीलों को वरिष्ठ अधिवक्ता का पद देना वकीलों के बीच एक अलग वर्ग को जन्म देता है. याचिका में अभिषेक सिन्हा, आशीष श्रीवास्तव, फौजिया मिर्जा, गोविंद राम मिरी, किशोर भादूड़ी, प्रफुल्ल कुमार भारत, राजीव श्रीवास्तव, राजेश कुमार पांडे, पूर्व महाधिवक्ता सतीश चंद्र वर्मा, शर्मिला सिंघई, विवेक रंजन तिवारी और योगेश चंद्र वर्मा को वरिष्ठ अधिवक्ता बनाए जाने पर आपत्ति की गई थी. याचिका में कहा गया था कि महाधिवक्ता रहते हुए सतीश चंद्र वर्मा ने खुद को ही नामिनेट कर दिया. इसके साथ ही कुछ खास चहेते वकीलों को ही वरिष्ठ अधिवक्ता बनाया गया, जो गलत है.
मामले की सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने शासन और वरीष्ठ वरिष्ठ के तौर पर नियुक्त वकीलों को नोटिस जारी किया था. जवाब में तात्कालीन महाधिवक्ता रहे वर्मा की ओर से कहा गया कि उन्होंने चयन के दौरान अपने आप को कमेटी से अलग कर लिया था. बता दें कि वरिष्ठ अधिवक्ताओं की नियुक्ति के लिए हाईकोर्ट में एक कमेटी बनी है. इस कमेटी में चीफ जस्टिस के अलावा दो सीनियर जस्टिस, एक सीनियर एडवोकेट और एक महाधिवक्ता रहते हैं. इसमें से एक की भी अनुपस्थिति के कारण परमानेंट कमेटी नहीं बन पाती. वरिष्ठ अधिवक्ताओं को हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान प्रमुखता दी जाती है. मामले में दोनों पक्षों को सुनने के बाद हाईकोर्ट ने याचिका को खारिज कर दिया है.
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