नई दिल्ली : चुनावी बॉन्ड स्कीम की कानूनी वैधता से जुड़े मामले पर सुप्रीम कोर्ट आज अपना फैसला सुनाएगा. मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने पिछले साल 2 नवंबर को अपना फैसला सुरक्षित रखा था.

केंद्र सरकार ने 2018 में बांड योजना की शुरुआत की थी. इसे राजनीतिक दलों को मिलने वाली फंडिंग में पारदर्शिता लाने के प्रयासों के तहत पेश किया गया था. इसे राजनीतिक दलों को दिए जाने वाले नकद चंदे के विकल्प के रूप में देखा गया था.

योजना के अनुसार, चुनावी बॉन्ड भारत के किसी भी नागरिक या देश में स्थापित ईकाई द्वारा खरीदा जा सकता है. कोई भी व्यक्ति अकेले या अन्य व्यक्तियों के साथ मिलकर चुनावी बॉन्ड खरीद सकता है. जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 29 (ए) के तहत पंजीकृत राजनीतिक दल और लोकसभा या विधानसभा के पिछले चुनावों में कम से कम एक प्रतिशत वोट पाने वाले दल चुनावी बॉन्ड प्राप्त कर सकते हैं. बॉन्ड को किसी पात्र राजनीतिक दल द्वारा अधिकृत बैंक के खाते के माध्यम से भुनाया जा सकता है.

हालांकि, इन बांड को सिर्फ वे ही राजनीतिक दल प्राप्त कर सकते हैं, जो लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 29ए के तहत रजिस्टर्ड हैं और जिन्हें पिछले लोकसभा या विधानसभा चुनाव में एक प्रतिशत से अधिक वोट मिले हों. 

याचिकाकर्ताओं के मुताबिक चुनावी बॉन्ड में गुमनामी राजनीतिक फंडिंग को बढ़ावा मिलता है, जो मतदाताओं के सूचना के अधिकार का उल्लंघन है. दूसरी ओर मोदी सरकार इस योजना का बचाव करते हुए कह रही है कि इसके जरिए ‘सफेद’ धन का उपयोग उचित बैंकिंग चैनलों के माध्यम से राजनीतिक फंडिंग के लिए किया जाएगा. एक राजनीतिक पार्टी को दान करने के लिए किसी भी व्यक्ति या कॉर्पोरेट यूनिट को अधिकृत बैंकों से बॉन्ड खरीदने की अनुमति होती है. पार्टियों द्वारा दी गई तय समय सीमा के भीतर ही रजिस्टर्ड खातों के जरिए ही इन्हें दिया जा सकता है.

चुनावी बॉन्ड पर किसने दायर की याचिकाएं?

सुप्रीम कोर्ट में चुनावी बांड की वैधता पर सवाल उठाते हुए कांग्रेस नेता जया ठाकुर, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी और एनजीओ एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) समेत कुल चार याचिकाएं दाखिल की गई हैं. याचिकाकर्ताओं का दावा है कि चुनावी बांड के जरिए हुई गुमनामी राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता को प्रभावित करती है और वोटर्स के सूचना के अधिकार का उल्लंघन करती है. उनका दावा है कि इस योजना में शेल कंपनियों के माध्यम से दान देने की अनुमति दी गई है.

कौन खरीद सकता है

चुनावी बॉन्ड योजना दानदाताओं को भारतीय स्टेट बैंक (SBI) से इसे खरीदने के बाद गुमनाम रूप से किसी राजनीतिक दल को पैसे भेजने की अनुमति देता है. कौन खरीद सकता है इलेक्टोरेल बॉन्ड और किसे दे सकता है? कोई भी भारतीय नागरिक, कंपनी या संस्थान इलेक्टोरल बॉन्ड खरीद सकता है. इसके लिए स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI) की तय ब्रांच से बॉन्ड खरीदा जाता है. जब भी बॉन्ड जारी होने की घोषणा होती है तो उसे कोई भी एक हजार से लेकर एक करोड़ का बॉन्ड खरीद सकता है. बैंक से बॉन्ड खरीदने के बाद चंदा देने वाला जिस पार्टी को चाहे वह उसका नाम भरकर उसे बॉन्ड दे सकता है.

किसे मिलता है इलेक्टोरल बॉन्ड?

जो भी रजिस्टर्ड पार्टी है उसे यह बॉन्ड मिलता है, लेकिन इसके लिए शर्त यह है कि उस पार्टी को पिछले आम चुनाव में कम-से-कम एक फीसदी या उससे ज्यादा वोट मिले हों. ऐसी ही रजिस्टर्ड पार्टी इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए चंदा पाने का हकदार होगी. सरकार के मुताबिक, ‘इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए ब्लैक मनी पर अंकुश लगेगा और चुनाव में चंदे के तौर पर दिए जाने वाली रकम का हिसाब-किताब रखा जा सकेगा. इससे चुनावी फंडिंग में सुधार होगा.’ केंद्र सरकार ने अपने जवाबी हलफनामे में कहा कि चुनावी बांड योजना पारदर्शी है.