नई दिल्ली। भारतीय कामगारों की मेहनत से इजराइल के बाद अब ताइवान संवरेगा. भारत ने एक निर्णायक कदम के दौर पर ‘वन चाइना’ नीति को दरकिनार करते हुए ताइवान में श्रम की कमी को कम करने के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किया है. हालांकि, यह समझौता चीन चीन को गुस्सा दिला सकता है, जो भारत के लिए सुरक्षा का मुद्दा बन सकता है. इसे भी पढ़ें : भारत ने संयुक्त राष्ट्र के बजट में की बड़ी कटौती, विशेषज्ञ अब शांति मिशन से हटने की कर रहे वकालत…

भारत ने ताइवान श्रम कमी को कम करने के उद्देश्य से 16 फरवरी को एक समझौते पर हस्ताक्षर कर द्विपक्षीय संबंधों के मजबूत होने का संकेत दिया है. ताइवान में महत्वपूर्ण श्रमशक्ति की कमी को दूर करने के लिए भारतीय प्रवासी श्रमिकों की भर्ती पर केंद्रित है. हालांकि, इस रिपोर्ट को दाखिल करने के समय चीन की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है, लेकिन इस कदम से कड़ी प्रतिक्रिया भड़कने की संभावना है. 

इसे भी पढ़ें : CG के स्कूलों में अब होगा ‘न्योता भोजन’ : आम लोग भी खिला सकेंगे खाना, बच्चों से पूछकर तैयार किया जाएगा मेन्यू

ताइवान के श्रम मंत्रालय के अनुसार, ताइवान और भारत के क्रमशः ताइपे और दिल्ली में दूतावासों के बीच एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए हैं. हालांकि, ताइवान के साथ श्रम समझौते की बारीकियों का खुलासा नहीं किया गया है.  

यह समझौता व्यापक बातचीत के जरिए आया था. दोनों देशों के बीच श्रम सहयोग पर बातचीत 2020 की शुरुआत में शुरू हुई थी, लेकिन कोरोना महामारी की वजह से चर्चा बाधित हो गई. महामारी के बाद बातचीत फिर से शुरू हुई, समझौते के प्रमुख तत्वों को सितंबर तक काफी हद तक सुलझा लिया गया. 

इसे भी पढ़ें : ChatGPT मेकर OpenAI ने पेश किया Sora, अब सिर्फ प्रोम्प्ट से जनरेट कर पाएंगे HD वीडियो

सेमीकंडक्टर उत्पादन के लिए प्रसिद्ध ताइवान आबादी के बढ़ते उम्र की समस्या से जूझ रहा है, वर्तमान में लगभग 700,000 प्रवासी श्रमिक ताइवान में काम कर रहे हैं, जो मुख्य रूप से वियतनाम, इंडोनेशिया, फिलीपींस और थाईलैंड से हैं. इनमें से कई श्रमिक विनिर्माण भूमिकाओं में या बुजुर्गों के लिए देखभाल करने वालों के रूप में कार्यरत हैं. 

मंत्रालय ने नोट किया कि ताइवान में विनिर्माण, निर्माण और कृषि जैसे क्षेत्रों में फैले श्रम की मांग स्थानीय उपलब्धता से आगे निकल रही है, जिससे प्रवासी श्रमिकों की मांग में वार्षिक वृद्धि हो रही है. 

भारतीय श्रम को विश्वसनीय और मेहनती बताते हुए मंत्रालय ने प्रारंभिक पायलट कार्यक्रम की योजना का खुलासा किया. इसकी सफलता के आधार पर भारतीय कामगारों को आगे प्रवेश देने पर विचार किया जाएगा. हालांकि, भर्ती किए जाने वाले श्रमिकों की सही संख्या ताइवान द्वारा निर्धारित की जाएगी. 

इसे भी पढ़ें : मिशन 2024 : पीसीसी ने की विभिन्न समिति प्रभारी समेत वॉर-रूम डेस्क प्रमुख और सदस्यों की नियुक्ति, कुल 19 लोगों को दी गई जिम्मेदारी, देखिए लिस्ट

दिसंबर 2023 में ताइवान में 100,000 भारतीय श्रमिकों के संभावित प्रवेश के बारे में रिपोर्ट सामने आई थी. हालांकि, ताइवान के अधिकारियों ने इन रिपोर्टों को तुरंत खारिज कर दिया. 

इस फैसले ने उस समय ताइवान में विरोध प्रदर्शन किया, प्रदर्शनकारियों ने सरकार से अपनी योजना को रद्द करने का आह्वान किया. उन्होंने तर्क दिया कि “एक और स्रोत देश” से श्रमिकों को पेश करने की आवश्यकता को सही ठहराने में अपर्याप्त पारदर्शिता थी, और निर्णय के व्यापक मूल्यांकन की मांग की. 

श्रम मंत्रालय के अनुसार, वर्तमान में लगभग 2,700 भारतीय पेशेवर ताइवान में मुख्य रूप से उच्च तकनीक क्षेत्र में कार्यरत हैं. इसके अतिरिक्त, मंत्रालय ने नोट किया कि लगभग 18 मिलियन भारतीय श्रमिक ऑस्ट्रेलिया, जापान, सिंगापुर, संयुक्त राज्य अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम और सऊदी अरब सहित विश्व के विभिन्न देशों में फैले हुए हैं. 

इसे भी पढ़ें : WhatsApp को टक्कर देने आ रहा देसी Samvad ऐप, DRDO के सिक्योरिटी टेस्ट में हुआ पास

भारत-ताइवान के बढ़ते संबंध 

अधिकांश देशों की तरह भारत और ताइवान के साथ औपचारिक राजनयिक संबंधों का अभाव है, इसके बजाय ताइवान के प्रतिनिधि कार्यालयों पर निर्भर करता है, जो वास्तविक राजनयिक मिशनों के रूप में कार्य करते हैं. इसी तरह ताइपे में नई दिल्ली के प्रतिनिधित्व भारत-ताइपे एसोसिएशन की देखरेख एक वरिष्ठ राजनयिक द्वारा की जाती है. 

ताइवान के साथ राजनीतिक जुड़ाव पर एक आरक्षित रुख बनाए रखने के बावजूद, भारत ने हाल के वर्षों में द्वीप राष्ट्र के साथ व्यापारिक संबंधों में महत्वपूर्ण विस्तार देखा है. ताइवान ने नई दिल्ली के साथ संबंधों को मजबूत करने के अपने प्रयास तेज कर दिए हैं. पिछले साल, ताइपे ने मुंबई में एक प्रतिनिधि कार्यालय स्थापित करके भारत में अपनी उपस्थिति बढ़ाने की योजना का खुलासा किया.